
Islamic Theology
June 13, 2025 at 12:22 PM
*हवाई जहाज़ का सफर*
हाल ही में एक दुखद एयर क्रैश में 300 लोगों की जान चली गई। यह खबर दिल दहला देने वाली है, और ज़ाहिर है कि हमारे मन में डर पैदा होता है। कई लोग सोचने लगते हैं – क्या अब हमें हवाई जहाज़ से सफर करना छोड़ देना चाहिए?
लेकिन सोचने की बात ये है कि —
जो लोग नीचे ज़मीन पर थे, एक हॉस्टल में खाना खा रहे थे, उन पर भी प्लेन गिर गया और वो भी मर गए।
तो सवाल ये है: _क्या वो प्लेन में थे?_ *नहीं।* फिर भी मौत आई।
📌 *इस्लाम क्या कहता है?*
इस्लाम हमें सिखाता है कि:
असबाब (ज़रूरी उपाय) अपनाओ,
और फिर तवक्कल (अल्लाह पर भरोसा) करो।
रसूल अल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
> “अपनी ऊँटनी को बाँधो और फिर अल्लाह पर भरोसा करो।”
(तिर्मिधी: 2517)
📖 क़ुरआन मेें अल्लाह फरमाता है:
> *"हर जान को मौत का स्वाद चखना है…"*
(सूरह आल-इमरान: 185)
> *"तुम जहाँ कहीं भी हो, मौत तुम्हें आकर रहेगी, चाहे तुम मजबूत किलों में ही क्यों न हो।"*
(सूरह अन-निसा: 78)
🛫 *क्या सफर छोड़ देना हल है?*
_नहीं।_ डर से काम छोड़ना या सफर रोक देना इस्लामी सोच नहीं है।
हमें हिकमत और तवक्कल के साथ ज़िन्दगी जीनी चाहिए।
🤲 *सफर की दुआ:*
> “सुब्हानल्लज़ी सख्ख़र लना हाज़ा वमा कुन्ना लहू मुक़रिनीन, व इन्ना इला रब्बिना लमुनक़लिबून।”
(सूरह अज़-ज़ुख़रुफ़ 13-14)
जिनके अपने चले गए, अल्लाह उन्हें सब्र अता फरमाए। और जो घायल हैं उन्हे शिफा।
लेकिन हमें डर के बजाए ईमान, दुआ और समझदारी से ज़िंदगी जीनी है। *मौत तो मुक़र्रर है* — वो न प्लेन देखती है, न जगह — जब अल्लाह का हुक्म होगा, वो आकर रहेगी।
इसलिए, डर के बजाय अल्लाह पर भरोसा रखें — और ज़िम्मेदारी के साथ सफर करें।
और अल्लाह के सामने हाज़िर होने की तैयारी जारी रखें, क्योंकि मौत का वक्त अल्लाह के सिवा कोई नही जानता।
_*"या अल्लाह! हमें ख़ातिमा बिल-ख़ैर अता फरमा। हमें उस वक़्त 'ला इलाहा इल्लल्लाह' कहने की तौफ़ीक़ दे जब हमारी रूह निकल रही हो। हमारी ज़िंदगी भी ईमान पर रहे और मौत भी कलिमा-ए-शहादत के साथ हो। हमें बेहतर अंजाम अता फरमा, और जन्नतुल फिरदौस में जगह दे।"*_
*आमीन*
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