
अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳
June 16, 2025 at 11:35 AM
*"अखिल विश्व अखण्ड सनातन सेवा फाउंडेशन"*(पंजीकृत) *द्वारा संचालित*
*अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳*
*क्रमांक~ १४*
*_क्या यहूदी द्वारिका से पश्चिम की ओर गये यदुवंशी हैं...??_*
https://truehistoryofindia.in/yahudi-is-yaduvanshi-of-dwarika/
*महाभारत युद्ध के बाद पतिव्रता गांधारी के श्राप के प्रभाव से भगवान कृष्ण के वंशज यदुवंशी सत्तासंघर्ष में जुट गये और एक दुसरे पर मूसल (आणविक अस्त्र या रेडियोधर्मी पदार्थ) से प्रहार कर मरने लगे. भगवान कृष्ण की देहत्याग पश्चात यदुवंशियों और द्वारिका (सौराष्ट्र की राजधानी) का पतन और तेज हो गया. रेडियो उत्सर्जन, भूकम्प आदि कारकों ने द्वारिका और द्वारिकावासियों पर तबाही लाया और समुद्र ने द्वारिका को अपने में समाहित कर लिया. इन सम्पूर्ण तबाही के दौरान कुछ को छोड़कर यदुवंशी २२ जत्थों में द्वारिका से विभिन्न क्षेत्रों में प्रस्थान कर गये.*
*उनमे से कुछ भगवान कृष्ण के आदेश पर युधिष्ठिर के राज्य(१) चले गये. कुछ जत्थे अगस्त्य ऋषि के साथ दक्षिण भारत में प्रस्थान कर गये. प्राचीन भारत के इतिहास पुस्तक में झा और श्रीमाली लिखते हैं की, “अगस्त्य ऋषि द्वारा द्वारका से अट्ठारह राजाओं के समूह, वेलिर के अठारह कुलों एवं अरुवालरों का नेतृत्व किया. इन्होने मार्ग में आने वाले वनों का नाश कर कृषि योग्य बनाया और बसते गये. दक्षिण के वेलिर जाति द्वारिकाधीश कृष्ण के वंशज माने जाते हैं.”*
*कुछ जत्थे उत्तर की ओर बढे और कश्मीर, तुर्किस्तान होते हुए इलावर्त (रूस) चले गये. १२ जत्थे पश्चिम एशिया की ओर निकले. उनमे से एक जत्था इराक के मोसूल में आकर रहने लगा. पश्चिम की ओर आने वाले ये सम्भवतः पहले यदुवंशी जत्थे थे जो मूसल युद्ध से हताहत होकर इस प्रदेश में आकर बसे थे (आधुनिक यजदी?). अन्य ग्यारह जत्थे भी मध्य एशिया से लेकर ग्रीक तक विभिन्न देशों में बस गये.*
*वैसे इजरायल के यहूदी भ्रमवश खुद को ईजिप्त से इजराइल भागकर आये हुए समझते हैं क्योंकि एसा हिब्रू बायबल में लिखा है. परन्तु विस्तृत अध्ययन से पता चलता है कि इस बात का न तो कोई एतिहासिक और न ही पुरातात्विक आधार है. सभी स्रोतों में इसे मिथक कहा गया है. हलांकि फिर भी कुछ लोग मानना है की ये कभी दक्षिण ईजिप्त में रहे थे परन्तु वे मूलतः Cannan(2) के कननाईट थे अर्थात वे ईजिप्त के मूल निवासी नहीं थे. अतः ईजिप्त यहूदियों का अपना देश नहीं था. Cannan मूलतः कान्हा शब्द है और कननाईट कान्हापंथी ही थे. अतः सम्भव है की जो यदुवंशी यहूदी कहलाये वे द्वारिका से निकलकर पहले Cannan में बसे हों, फिर वहां से अधिकांश लोग निकलकर ईजिप्त गये हों परन्तु वहां अनुकूल परिस्थिति नहीं होने के कारन वे वापस इस्रायल आ गये हों.*
*इतिहासकार पी एन ओक के दिए आंकड़े के अनुसार यहूदी लोगों का ईसवी सन २०१९-२० में ५७८० वा वर्ष चल रहा है. उनके संवत को Passover वर्ष कहते हैं. Passover का अर्थ है देश छोड़कर निकल जाना. अर्थात उन्हें द्वारिका राज्य छोड़े और कृष्ण से बिछड़े हुए ५७८० वर्ष हो गये. वे जब द्वारिका से बिछड़े तब से उन्होंने निजी सम्वत गणना आरम्भ की. अतः महाभारतीय युद्ध हुए लगभग ५७८१ वर्ष होना चाहिए.*
*यहाँ मैं कुछ संशोधन प्रस्तुत करना चाहता हूँ. कुछ इतिहासकार ज्योतिष और वैज्ञानिक गणना से महाभारत युद्ध के काल को ५५६१ ईसवी पूर्व से लेकर ३०६७ ईसवी पूर्व तक अपनी शोध रखते हैं. इतिहासकार पी एन ओक महाभारत युद्ध को ३७६१ ईसवी पूर्व हुआ मानते हैं जो यहूदियों के अनुसार सृष्टि निर्माण का वर्ष है. महान ज्योतिषाचार्य और गणितज्ञ पंडित आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत युद्ध ३१३६ ईसवी पूर्व (एहोल अभिलेख के अनुसार ३१३७ ईसवी पूर्व) में हुआ था और भगवान श्रीकृष्ण का परिनिर्वाण १८ फरवरी, ३१०२ ईसवी पूर्व हुआ था और यही सर्वमान्य तिथि है. मैं भी आर्यभट्ट जैसे महान ज्योतिषविद और गणितज्ञ की गणना को ही सर्वोचित मानने के पक्ष में हूँ. तो फिर भगवान श्रीकृष्ण के देहत्याग का वर्ष और यहूदियों के गृहत्याग के वर्ष में अंतर क्यों दिखाई देता है?*
*इस सवाल का जबाब ढूंढने केलिए मैंने विकिपीडिया(३) हिब्रू केलेंडर और अन्य सम्बन्धित विकिपीडिया तथा इतिहास देखा तो पता चला की यहूदियों का जीवन एक दुर्धर्ष संघर्ष का काल रहा है. प्रारम्भ में तो इनके केलेंडर भारतीय पञ्चांग से बिलकुल मिलते थे परन्तु उन्हें सैकड़ों वर्ष बेबीलोनियनों (इराक में) के गुलाम बनकर भी रहना पड़ा जहाँ इनके केलेंडर में काफी परिवर्तन हुआ. फिर २०० ईसवी से ५०० ईसवी के बिच भी हिब्रू केलेंडर में कई गणितीय सुधार लागु हुआ. मेरा मत है यह जो समय का अंतर है वह मूल हिब्रू केलेंडर में हुए विभिन्न सुधारों और एडजस्टमेंट का परिणाम है. परन्तु, इनके केलेंडर से सम्बन्धित दो बातें महत्वपूर्ण है-एक तो ये passover फेस्टिवल बसंत ऋतू में मार्च-अप्रैल में अपने देश से बिछड़ने की याद में मनाते हैं. दूसरा, ये अपने केलेंडर को सृष्टि निर्माण के समय से प्रारम्भ मानते हैं और ये मानते हैं की ३७६० ईसवी पूर्व में “एडम” पैदा हुआ था और तभी से उसका केलेंडर शुरू हुआ.*
*उपर्युक्त में से एक बात मैंने पहले ही बता दिया की ये ईजिप्त के मूल निवासी थे ही नहीं अर्थात ईजिप्त इनका अपना देश था ही नहीं तो ईजिप्त से बिछड़ने का सवाल ही नहीं उठता. दूसरी बात सिर्फ ३७६० ईसवी पूर्व सृष्टि निर्माण की बात भी झूठी है क्योंकि भारतीय पञ्चांग के अनुसार सृष्टि निर्माण का काल १९७२६४८०८४ वर्ष पूर्व है.* *आधुनिक भौतिक शास्त्रियों का भी यही हिसाब है. परन्तु “बाईबल” में सृष्टि निर्माण का वर्ष महज ४००४ ईसवी पूर्व(४) दिया हुआ है जिसके कारण यहूदी भी लगता है किसी कालखंड में भ्रम के शिकार हो गये. इसी बाईबल के ज्ञान से अंधे होकर यूरोप के इतिहासकार यूरोप के ईसापूर्व काल के इतिहास का कचड़ा कर रखें हैं और हजारों वर्ष के इतिहास को ४००४ वर्ष में एडजस्ट नहीं कर पाने के कारन ईसापूर्व काल के इतिहास को अंधकार युग बताकर पल्ला झाड़ चुके हैं. बाईबल के इसी मूर्खतापूर्ण चश्मे से देखने के कारण अंग्रेजों ने भारतवर्ष के लाखों वर्ष पुराणी गौरवशाली इतिहास को मिथक बताकर झुठला दिया और भारत में भी १००० ईसापूर्व से पीछे के काल को नवपाषाण काल,* *पाषाणकाल और पुरापाषाण काल जैसे पगलबुद्धियों में बाँट दिया. उसी चश्मे के भीतर एडजस्टमेंट हेतु विक्रमादित्य, शालिवाहन जैसे कई महाप्रतापी हिन्दू सम्राटों को मिथक बताकर भारतीय इतिहास से गायब कर दिया है. मुर्ख वामपंथी* *इतिहास्यकार इसी मुर्खता को* *अंग्रेजों का अद्भुत ज्ञान मानकर* *आजतक दुर्गन्ध फैला रहे हैं. अस्तु,*
*फिर भी उपर्युक्त दोनों बातों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है की प्रारम्भिक यहूदी अपने देश से बिछड़ने के वर्ष से अपना केलेंडर प्रारम्भ किये थे पर वो देश ईजिप्त न होकर भारत था. उनका पञ्चांग वैदिक पञ्चांग का ही हिस्सा था क्योंकि उनका नया साल भी पहले वैदिक पञ्चांग की तरह बसंत ऋतू में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही प्रारम्भ होता था. ये अभी भी passover week बसंत ऋतू के प्रारम्भ में मार्च-अप्रैल में ही मनाते हैं. उनका पञ्चांग भी वैदिक पञ्चांग ही था क्योंकि वैदिक पञ्चांग ही सृष्टि के आरम्भ से प्रारम्भ होता है. पर लम्बे कालखंड और उथल पुथल में यहूदियों में इन दोनों बातों की अब स्मृति मात्र शेष रह गयी है.*
*और भी, यहूदी केलेंडर भी भारतीय पञ्चांग चन्द्रमास के अनुसार ही बारह चन्द्र मासों का होता है और प्रत्येक तिन वर्ष पर एक मल मास जुड़कर १३ महीने का वर्ष हो जाता है. दिन भी भारतीय पञ्चांग की तरह फिक्स नहीं है. भारतीय पञ्चांग की तरह सूर्यास्त से सूर्योदय तक रात्रि और सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन कहा जाता है. इस तरह हम देखते हैं की यहूदियों का हिब्रू केलेंडर भी यहूदियों के भारतीय मूल के होने का मजबूत प्रमाण उपलब्ध कराता है.*
*The Chosen People ग्रन्थ के लेखक अलेंग्रो लिखते हैं की, “यहूदियों के प्रख्यात पूर्वज तथा उनके भगवान के नाम सेमेटिक (अर्थात अरबी) परम्परा के नहीं है. वे तो किसी प्राचीनतम पौर्वात्य सभ्यता ही नहीं अपितु प्राचीनतम जागतिक परम्परा के हैं.”*
*यहूदियों के पूर्वज और भगवान प्राचीनतम पौर्वात्य सभ्यता के होने का मतलब स्पष्ट है भारतीय पूर्वज और कृष्ण भगवान.*
*यहूदियों के प्रथम नेता अब्राहम माने गये हैं. यह ब्रह्मा शब्द ही है. उनके दुसरे देवता मोज़ेस कहलाते हैं जो महेश शब्द का विकृत उच्चार है. मोज़ेस की जन्मकथा कृष्ण की जन्मकथा से मेल खाती है. श्रीकृष्ण का जैसा विराट रूप कुरुक्षेत्र में अर्जुन ने देखा वैसा ही विराट रूप यहूदी लोगों ने रेगिस्तान में मोज़ेस का देखा, ऐसा यहूदियों की दंतकथा है.*
*यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत*
*अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम*
*श्रीमद्भगवत गीता की यही भविष्यवाणी यहूदी लोगों में भी प्रचलित है. अतः यह महा-ईश भगवान कृष्ण हो सकते हैं-पी एन ओक*
*“यहूदियों के नेता मोझेस के धर्मतत्व एक ईश्वर की कल्पना पर ही आधारित थे. वेदों का तात्पर्य भी वही है. मोझेस की धर्म-प्रणाली और सृष्टि-उत्पत्ति की धारणाएँ कुछ मात्रा में उसी हिन्दू वैदिक स्रोत की दिखती है.” (पृष्ठ १४४, The Theogony of the Hindus by कौन्ट विअन्स्तिअर्ना)*
*यदुवंशी जब द्वारिका से निकले थे तब भगवन कृष्ण की मूर्ति और अनेक ग्रन्थ लेकर निकले थे. परन्तु वे सैकड़ों वर्ष तक इधर उधर जंगल, पहाड़, रेगिस्तान में भटकते रहे, उधर का समाज भारत की तरह विकसित नहीं था. इसलिए ग्रन्थ धीरे धीरे कुछ यादों में सिमटकर खत्म हो गये. दूसरी बात, कठिन प्रवास के दौरान मूर्तियों का भार ढोना कठिन था, मूर्तियाँ टूट-फूट जाती थी, मन्दिर बनाकर मूर्ति स्थापित करना भी सम्भव नहीं था क्योंकि उनका जीवन खुद स्थायी नहीं था, उधर जल का भी आभाव था जो पूजा पाठ की पवित्रता में व्यवधान था. इन सब कारणों से उनके हाथों से देव मूर्तियाँ निकलती चली गयी और मूर्ति पूजा बंद हो गया. अब वे एकजुट होकर किसी भी एक स्थान पर भगवान की प्रार्थना करने लगे. जहाँ प्रार्थना करते उस स्थान को संगम या समागम कहते जो बाद में Synagogue हो गया.*
*एडवर्ड पोकोक अपने ग्रन्थ इंडिया इन ग्रीस के पृष्ठ २२४ पर लिखते हैं, “यहूदी लोगों से यदि कोई पाप होता तो वे पहाड़ के उपर कुञ्जवनों में या वृक्ष के तले मन्दिर बनाते और उसमे “बाल” की मूर्ति स्थापना कर देते. मन्दिर के आगे स्तम्भ होता था. मन्दिर की वेदी पर धुप जलाते थे.”*
*उपर जिस ‘बाल’ की मूर्तिस्थापना की बात लिखी है वह बालकृष्ण की मूर्ति ही हो सकती है. बायबिल में भी यहूदी लोगों के भगवान का नाम “बाल” उल्लिखित है जो स्पष्टतया बालकृष्ण ही हैं-पी एन ओक*
*यहूदियों के इतिहास में यहूदियों के मन्दिरों में बाल(कृष्ण) के मन्दिर के अतिरिक्त सोने के गोवत्स की मूर्ति होने के भी उल्लेख मिलते हैं. यहूदियों का इतिहास उनके मदिरों के आधार पर प्रथम मन्दिर के काल का इतिहास, द्वितीय मन्दिर के कालखंड का इतिहास आदि लिखा जाता है.*
*इजिप्त से निकलकर यहूदी लोग उनके प्रदेश (इस्राएल) में आने से पूर्व कननाइट लोगों ने मूर्तिपूजा आरम्भ कर दिया था (पेज ४३, A complete History of Druids). अर्थात जो यहूदी/यदुवंशी Cannan में ही रह गये थे वे वहां फिर मूर्तिपूजा करने लगे थे परन्तु जो यहूदी/यदुवंशी ईजिप्त चले गये थे उन्होंने मूर्तिपूजा बंद कर दिया था.*
*इतिहासकार पी एन ओक लिखते हैं सातवीं शताब्दी में मुस्लिमों द्वारा अधिकार करने से पूर्व जेरुसलेम के पूर्वी पहाड़ी पर स्थित Dome on the Rock मस्जिद स्वयंभू महादेव का मन्दिर था और अलअक्सा मस्जिद बालकृष्ण का मन्दिर था. इसका मतलब है ईजिप्त से आये यहूदियों के प्रभाव तथा इस्लामिक आधिपत्य के काल में मन्दिरों और मूर्तिपूजा के अंत के कारन यहूदियों में मूर्तिपूजा पूरी तरह खत्म हो गया.*
*बालकृष्ण प्राचीन इराक के लोगों के भी प्रतिष्ठित देवता थे और उनका चित्र अभी भी इराक में सुरक्षित है. ऐसे ही चित्रों पर १९७९ में वसंतोत्सव के अवसर पर डाक टिकट जारी किए गये थे. इराक के मुसलमानों को नहीं पता की वे वास्तव में कौन हैं पर हम भारतवासी उन्हें देखते ही पहचान लेंगे की यह बाल श्रीकृष्ण हैं. (चित्र कमेन्ट में है)*
*यहूदी को अंग्रेजी में Jew कहा जाता है. यह मूल शब्द जदु अर्थात यदु का अपभ्रंश है. यहूदी पंथ को Judaism कहा जाता है, यह Yeduism का अपभ्रंश है. य का ज उच्चारण भी होता है जैसे यादव का जादव या जाधव, यदु-ज से जडेजा, यात्रा से जात्रा आदि. इसी पंथ का एक और नाम है Xionism यह Jewnism या जदुनिज्म अर्थात यदुपंथ शब्द है जिसका मतलब है यदुवंशी श्रीकृष्ण के अनुयायी.*
*मेरा मानना है Xionism शब्द कृष्निज्म अर्थात कृष्णपंथ भी हो सकता है. इसे समझने केलिए यूरोपीय देशों में अक्षरों और ध्वनियों के परिवर्तन को समझना पड़ेगा.*
*लेखक Spencer Lewis ने अपने ग्रन्थ The mystical Life of jesus के पृष्ठ १५६ पर लिखा है की “क्रिस्तस नाम या उपाधि पूर्ववर्ती देशों के अनेक गूढ़ पंथों में देवावतार की द्योतक थी. क्रिस्तस यह मूलतः ईजिप्त के एक देवता का नाम था. ईजिप्त के लोग जिसे ‘ख’ कहते थे उसे ग्रीक ‘क्ष’ लिखते थे. ग्रीक ‘क्ष’ का उच्चारण ‘क’ भी किया जाता था. इसी कारन ईजिप्त का ‘खरु’ ग्रीक भाषा में ‘कृ’ लिखा जाता था.”*
*यहाँ क्रिस्तस मूलतः कृष्णस शब्द है. ‘ष्ण’ का उच्चारण ही ष्ट या स्त था. एसा उच्चारण भारत के कई प्रदेशों में भी होता है. अतः स्पष्ट है की कृष्ण ही कृष्ट, कृष्त, ख्रीष्ट है और कृष्णनीति ही कृष्टनीति, क्रिस्तनीति, ख्रीष्टनीति या क्रिश्चियनीति है. ईशस कृष्ण का ग्रीक/रोमन उच्चार ही जीसस कृष्ट या जीसस क्राईस्ट है. जीसस नाम का कोई व्यक्ति कभी पैदा ही नहीं हुआ था. ईश्वर का संस्कृत शब्द इशस बाइबिल में Jesus, यहूदी में जबतक ‘c’ का उच्चारण ‘स’ होता रहा तब तक issac का उच्चारण इशस; ‘c’ का उच्चारण ‘क’ होने पर आयझेक हो गया. उसी तरह इस्लाम का इशाक (issac) भी ईशस ही है-पी एन ओक*
*दूसरी बात, ईजिप्त में ब्रिटिश-फ़्रांस युद्ध (१७७८-१७८३ ईसवी) के समय भी कृष्ण मन्दिर था और ग्रीक के कोरिन्थ नगर के म्यूजियम में गौ चराते, बांसुरी बजाते कृष्ण की प्राचीन चित्र अभी भी है जो इस बात का प्रमाण है की ग्रीक में भी भगवान कृष्ण की पूजा होती थी. Spencer Lewis ने लिखा है की, “प्राचीन ग्रीक के लोग शुभ अक्षर XP लिखा करते थे”. X कृष्ण शब्द का अद्याक्षर था क्योंकि ग्रीक ‘क्ष’ का उच्चारण ‘क’ भी किया जाता था. उसी तरह P परमात्मा या परमेश्वर का. अतः शुभ अक्षर XP का मतलब था कृष्ण परमात्मा या कृष्ण परमेश्वर. इसी तरह X’mas का मतलब संस्कृत कृष्णमास था जिसका अपभ्रंश अब क्रिसमस हो गया है.*
*उपर के विश्लेष्ण से स्पष्ट है X कृष्ण शब्द का प्रतीक या आद्य अक्षर था. इसलिए Xionism वास्तव में कृष्निज्म अर्थात कृष्णपंथ शब्द है.*
*यहूदियों की भाषा हब्रू के बारे में Encyclopaedia Judaica में लिखा है की शब्द का पहला अक्षर ‘ह’ परमात्मा के नाम का संक्षिप्त रूप है. पर किस परमात्मा का किसी को पता नहीं है. ब्रू का क्या मतलब है इसपर चर्चा ही नहीं है क्योंकि उन्हें पता ही नहीं होगा. हम भारतीय बता सकते हैं की ‘ह’ से हरि अर्थात विष्णु या कृष्ण और ‘ब्रू’ अर्थात ब्रूते या बोलता है. इस प्रकार हब्रू का मतलब है हरि बोलता था वह भाषा.*
*यहूदी का धर्म चिन्ह षटकोण है जो वैदिक अनाहत चक्र या शक्तिचक्र का केन्द्रीय चक्र है. शक्ति के पूजक उसे शक्ति का प्रतीक मानकर पूजते हैं. दिल्ली के हुमायूँ की कब्र कही जाने वाली जो विशाल इमारत है उसमें देवी भवानी का मन्दिर था. उसके उपरले भाग में चारों तरफ बीसों ऐसे शक्तिचक्र बने हुए हैं जो संगमरमर प्रस्तर से ढंक दिए गये हैं-पी एन ओक*
*बंगाल के त्रिवेणी, हुगली में स्थित विष्णु मन्दिर जो अब जफर खान गाजी मस्जिद और मकबरा कहा जाता है उसके दीवार पर भी ठीक यहूदियों के धर्म चिन्ह जैसा ही वैदिक अनाहत चक्र या शक्ति चक्र बना हुआ है.*
*यहूदी लोग भी आर्य संस्कृति की तरह प्रेम विवाह की जगह कुटुंबसम्मत विवाह को वरीयता देते हैं. वे भी मंडपों में विवाह संस्कार कराना शुभ समझते हैं. यहूदी लोग भी दीपावली की तरह दीप जलाकर एक पर्व मनाते हैं. यहूदी भी वृक्ष पूजन करते हैं.*
*मार्कोपोलो ने अपने प्रवास वर्णन के ग्रन्थ में पृष्ठ ३४६ पर चीन के कायफुन्गफु नगर में यहूदियों की एक बस्ती में मिले एक यहूदी शिलालेख में लिखी बातों का उल्लेख किया है. उसमें लिखा है, “With respect to the Israelitish religion we find an inquiry that its first ancestor, Adam came originally from India and that during the (period of the) Chau State the sacred writings were already in existence. The sacred writings embodying eternal reason consist of 53 sections. The principles therein contained are very abstruse and the external reason therein revealed is very mysterious being treated with the same veneration as Heaven. The founder of the religion is Abraham, who is considered the first teacher of it. Then came Moses, who established the law, and handed down the sacred writings. After his time this religion entered China”*
*उपर के उद्धरण से स्पष्ट है यहूदी धर्म का मूलव्यक्ति Adam (संस्कृत आदिम) भारतीय था, sacred writings से वेदों या गीता की बात कही गयी है, संस्थापक अब्राहम कोई और नहीं ब्रह्मा हैं, मोज़ेस विष्णु (या कृष्ण) हैं और अंतिम पंक्ति की अंतिम बात यह की उसके बाद चीन में वह धर्म अर्थात वैदिक धर्म प्रवेश किया अर्थात चीन वैदिक आर्य संस्कृति और वैदिक धर्मी हो गया था.*
*१. युधिष्ठिर चक्रबर्ती सम्राट थे जिसकी राजधानी इन्द्रप्रस्थ थी. महाभारत के बाद लगभग सम्पूर्ण भारतवर्ष इंद्रप्रस्थ के सीधे नियन्त्रण में था या स्थानीय क्षत्रप इन्द्रप्रस्थ के अधीन शासन करते थे. परीक्षित को भारतवर्ष का सम्राट कहा गया है. भारतवर्ष को कुछ लोग ईरान सीमा से वर्तमान अफगान, तिब्बत, कश्मीर होते हुए ब्रह्मदेश, बांग्लादेश सहित दक्षिण तक मानते हैं. वहीं कुछ लोगों का मत है की प्राचीन भारतवर्ष पुरे जम्बुद्वीप में विस्तृत था.*
*२. सम्भवतः इस्राएल (ईश्वरालय)*
*३. en.wikipedia.org/wiki/Hebrew_calendar”*
*४. Also see* *https://en.wikipedia.org/wiki/Dating_creation#septuagint*
*मुख्य स्रोत: वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास, लेखक-पी एन ओक*
*अन्य स्रोत: विकिपीडिया एवं अन्य*
*Whatsapp on 9477459017 to read true history of India or visit our website.*
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