अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳
अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳
June 18, 2025 at 12:21 AM
*"अखिल विश्व अखण्ड सनातन सेवा फाउंडेशन"*(पंजीकृत) *द्वारा संचालित* *अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳* *क्रमांक~ ०२* https://photos.app.goo.gl/YEuuYWwWnH71suy67 🚩🚩 🚩🚩 *`!! श्रीमद्भागवत महापुराण !!`* `{अष्टम स्कन्ध}` *【चतुर्विंशति : अध्याय:】* *(श्लोक~ 32 से 62 तक)* *_भगवान्के मत्स्यावतारकी कथा..._* *श्रीभगवान्ने कहा-* सत्यव्रत! आज से *सातवें दिन भूलोक आदि तीनों लोक प्रलय के समुद्र में समा जाएंगे।* उस समय जब तीनों लोक प्रलयकाल की जलराशि में डूबने लगेंगे, *तब मेरी प्रेरणा से तुम्हारे पास एक बहुत बड़ी नौका आएगी।* उस समय तुम समस्त प्राणियों के सूक्ष्म शरीरों को लेकर *सप्तर्षियों के साथ उस नौका पर चढ़ जाना और समस्त धान्य तथा छोटे-बड़े अन्य प्रकार के बीजों को साथ रख लेना।* उस समय सब ओर एकमात्र महासागर लहराता होगा। प्रकाश नहीं होगा। *केवल ऋषियों की दिव्य ज्योति के सहारे ही बिना किसी प्रकार की विकलता के तुम उस बड़ी नाव पर चढ़कर चारों ओर विचरण करना।* जब प्रचण्ड आंधी चलने के कारण नाव डगमगाने लगेगी, तब मैं इसी रूप में वहाँ आ जाऊँगा *और तुम लोग वासुकि नाग के द्वारा उस नावको मेरे सींग में बाँध देना।* सत्यव्रत ! इसके बाद जबतक ब्रह्माजी की रात रहेगी, *तबतक मैं ऋषियों के साथ तुम्हें उस नाव में बैठाकर उसे खींचता हुआ समुद्र में विचरण करूंगा।* उस समय जब तुम प्रश्न करोगे, तब मैं तुम्हें उपदेश दूँगा। मेरे अनुग्रह से मेरी *वास्तविक महिमा, जिसका नाम 'परब्रह्म' है, तुम्हारे हृदय में प्रकट हो जाएगी और तुम उसे ठीक-ठीक जान लोगे।* भगवान् राजा सत्यव्रत को यह आदेश देकर अन्तर्धान हो गये। अतः अब राजा सत्यव्रत उसी समय की प्रतीक्षा करने लगे, *जिसके लिए भगवान्ने आज्ञा दी थी।* कुशों का अग्रभाग पूर्व की ओर करके राजर्षि सत्यव्रत उन पर पूर्वोत्तर मुख से बैठ गये और *मत्स्यरूप भगवान्के चरणों का चिन्तन करने लगे।* इतने में ही भगवान्‌का बताया हुआ वह समय आ पहुँचा। *राजा ने देखा कि समुद्र अपनी मर्यादा छोड़कर बढ़ रहा है। प्रलयकाल के भयङ्कर मेघ वर्षा करने लगे।* देखते-ही-देखते सारी पृथ्वी डूबने लगी। तब राजा ने भगवान्की आज्ञा का स्मरण किया और देखा कि नाव भी आ गयी है। *तब वे धान्य तथा अन्य बीजों को लेकर सप्तर्षियों के साथ उसपर सवार हो गये।* सप्तर्षियों ने बड़े प्रेम से राजा सत्यव्रत से कहा- 'राजन् ! तुम भगवान्का ध्यान करो। *वे ही हमें इस सङ्कट से बचायेंगे और हमारा कल्याण करेंगे।* उनकी आज्ञा से राजा ने भगवान्‌ का ध्यान किया। उसी समय उस महान् समुद्र में *मत्स्य के रूप में भगवान् प्रकट हुए।* मत्स्य भगवान्का शरीर सोने के समान देदीप्यमान था *और शरीर का विस्तार था चार लाख कोस।* उनके शरीर में एक बड़ा भारी सींग भी था। भगवान्ने पहले जैसी आज्ञा दी थी, *उसके अनुसार वह नौका वासुकि नाग के द्वारा भगवान्के सींग में बाँध दी गयी और राजा सत्यव्रत ने प्रसन्न होकर भगवान्की स्तुति की।* *राजा सत्यव्रतने कहा—* प्रभो! संसार के जीवों का आत्मज्ञान अनादि अविद्या से ढक गया है। *इसी कारण वे संसार के अनेकानेक क्लेशों के भार से पीड़ित हो रहे हैं।* जब अनायास ही आपके अनुग्रह से वे आपकी शरण में पहुँच जाते हैं, *तब आपको प्राप्त कर लेते हैं।* इसलिए हमें बन्धन से छुड़ाकर वास्तविक मुक्ति देने वाले परम गुरु आप ही हैं। *यह जीव अज्ञानी है,* अपने ही कर्मों से बँधा हुआ है। सुख को इच्छा से दुःखप्रद कर्म का अनुष्ठान करता है। *जिनकी सेवा से उसका यह अज्ञान नष्ट हो जाता है, वे ही मेरे परम गुरु आप मेरे हृदय की गाँठ काट दें।* जैसे अग्नि के तपाने से सोने-चाँदी के मल दूर हो जाते हैं और उनका सच्चा स्वरूप निखर आता है, *वैसे ही आपकी सेवा से जीव अपने अन्तःकरण का अज्ञानरूप मल त्याग देता है* और अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित हो जाता है। आप सर्वशक्तिमान् अविनाशी प्रभु ही *हमारे गुरुजनों के भी परम गुरु हैं।* अतः आप ही हमारे भी गुरु बनें। जितने भी देवता, गुरु और संसार के दूसरे जीव है-ये सब यदि स्वतन्त्ररूप से एक साथ मिलकर भी कृपा करें, *तो आपकी कृपा के दस हजारवें अंश के अंश की भी बराबरी नहीं कर सकते प्रभो।* आप ही सर्वशक्तिमान् हैं। मैं आपकी शरण ग्रहण करता हूँ। जैसे कोई अंधा अंधे को ही अपना पथप्रदर्शक बना ले, *वैसे ही अज्ञानी जीव अज्ञानी को ही अपना गुरु बनाते हैं।* आप सूर्य के समान स्वयंप्रकाश और समस्त इन्द्रियों के प्रेरक हैं। हम आत्मतत्त्व के जिज्ञासु आपको ही गुरुके रूप में वरण करते हैं। *अज्ञानी मनुष्य अज्ञानियों को जिस ज्ञान का उपदेश करता है, वह तो अज्ञान ही है।* उसके द्वारा संसाररूप घोर अन्धकार की अधिकाधिक प्राप्ति होती है। परन्तु आप तो उस अविनाशी और अमोघ ज्ञान का उपदेश करते हैं, *जिससे मनुष्य अनायास ही अपने वास्तविक स्वरूप को प्राप्त कर लेता है।* आप सारे लोक के सुहृद्, प्रियतम, ईश्वर और आत्मा हैं गुरु, के द्वारा प्राप्त होने वाला ज्ञान और अभीष्ट की सिद्धि भी आपका ही स्वरूप है। *फिर भी कामनाओं के बन्धन में जकड़े लोग अंधे हो रहे हैं।* उन्हें इस बात का पता ही नहीं है कि आप उनके हृदय में ही विराजमान् हैं। *आप देवताओं के भी आराध्यदेव, परम पूजनीय परमेश्वर हैं।* मैं आपसे ज्ञान प्राप्त करने के लिए आपकी शरण में आया हूँ। भगवन्! आप परमार्थ को प्रकाशित करने वाली अपनी वाणी के द्वारा *मेरे हृदय की ग्रन्थि काट डालिये और अपने स्वरूप को प्रकाशित कीजिये।* *श्रीशुकदेवजी कहते हैं-* परीक्षित्! जब राजा सत्यव्रत ने इस प्रकार प्रार्थना की; तब *मत्स्यरूपधारी पुरुषोत्तम भगवान्ने प्रलय के समुद्र में विहार करते हुए उन्हें आत्मतत्त्वत्का उपदेश किया।* भगवान्‌ ने राजर्षि सत्यव्रत को अपने स्वरूप के सम्पूर्ण रहस्य का वर्णन करते हुए *ज्ञान, भक्ति और कर्मयोग से परिपूर्ण दिव्य पुराण का उपदेश किया, जिसको 'मत्स्यपुराण' कहते हैं।* सत्यव्रत ने ऋषियों के साथ नाव में बैठे हुए ही सन्देहरहित होकर भगवान्‌ के द्वारा उपदिष्ट सनातन *ब्रह्मस्वरूप आत्मतत्त्व का श्रवण किया।* इसके बाद जब पिछले प्रलय का अन्त हो गया *और ब्रह्माजी की नींद टूटी, तब भगवान्ने हयग्रीव असुर को मारकर उससे वेद छीन लिये और ब्रह्माजीको दे दिये।* भगवान्‌ की कृपा से राजा सत्यव्रत ज्ञान और विज्ञान से संयुक्त होकर इस कल्प में वैवस्वत मनु हुए। *अपनी योगमाया से मत्स्यरूप करनेवाले भगवान् विष्णु और राजर्षि सत्यव्रत का यह संवाद एवं श्रेष्ठ आख्यान सुनकर मनुष्य सब प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है।* जो मनुष्य भगवान्‌ के इस अवतार का प्रतिदिन कीर्तन करता है, उसके सारे सङ्कल्प सिद्ध हो जाते हैं और उसे परमगति की प्राप्ति होती है। *प्रलयकालीन समुद्र में जब ब्रह्माजी सो गये थे, उनकी सृष्टिशक्ति लुप्त हो चुकी थी,* उस समय उनके मुख से निकली हुई श्रुतियों को चुराकर *हयग्रीव दैत्य पाताल में ले गया था।* भगवान्ने उसे मारकर वे श्रुतियाँ ब्रह्माजी को लौटा दीं एवं सत्यव्रत तथा सप्तर्षियों को ब्रह्मतत्त्वका उपदेश किया। उन *समस्त जगत्के परम कारण लीलामत्स्यभगवान्‌ को मैं नमस्कार करता हूँ॥* *।। इस प्रकार श्रीमदभागवत महापुराण के अष्टम स्कंध के चौबीसवां अध्याय का(श्लोक~ 32 से 62) तक पूरा हुआ।।* *ॐ नमो भगवते वासुदेवाय🙏🏻🙏🏻* 🕉️🌞🔥🔱🐚🔔🌷

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