अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳
अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳
June 18, 2025 at 09:16 AM
*"अखिल विश्व अखण्ड सनातन सेवा फाउंडेशन"*(पंजीकृत) *द्वारा संचालित* *अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳* *क्रमांक~ ११* *_हड़प्पा से भी 5000 साल पहले बस चुका था कच्छ, रहने वाले समुद्र से जुटाते थे खाना: शंख-सीप पर हुई नई रिसर्च से आया सामने..._* https://hindi.opindia.com/miscellaneous/others/people-lived-in-kutch-region-5000-years-before-than-harappan-civilization-says-research/ *गुजरात के कच्छ में भारतीय पुरातत्व के लिए एक महत्वपूर्ण खोज सामने आई है। इससे भारत के मानव इतिहास की समय रेखा को और भी पीछे धकेल दिया है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गांधीनगर (IITGN) के नेतृत्व में किए गए इस शोध में यह पाया गया कि इस क्षेत्र में इंसानों की मौजूदगी हड़प्पा सभ्यता से लगभग 5,000 साल पहले भी थी।* *यह जानकारी खोज में मिले शैल मिडेंस (सीपों के ढेर), पत्थर के औजारों और अन्य सांस्कृतिक अवशेषों की जाँच सामने आई है।* *इस अध्ययन में IIT कानपुर, PRL अहमदाबाद और IUAC दिल्ली जैसे संस्थानों के वैज्ञानिकों ने भी सहयोग किया है। इस शोध से पता चला है कि उस समय के शिकार और भोजन जुटाने वाले समुदय तटीय संसाधनों पर निर्भर थे और अपने पर्यावरण के अनुसार जीवनशैली अपनाए हुए थे।* *यह शोध कच्छ के सांस्कृतिक विकास को समझने और भारत की प्राचीन सभ्यताओं के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ने में सहायक सिद्ध हो सकता है।* *शोधकर्ताओं ने कच्छ के खादिर द्वीप और उसके आस-पास के क्षेत्रों में गहराई से खुदाई करके कई अद्भुत चीजें खोजीं। जिनमें सबसे अहम सीपों के ढेर और पत्थर के औजार है। इन दोनों चीजों यह जानकारी मिलती हैं कि यहाँ कोई इंसानी आबादी बहुत पहले रह रही थी, जो समुद्र से मिलने वाले जीव-जंतुओं को खाकर जीवन यापन करती थी।* *ये असल में शंख, सीप, गैस्ट्रोपोड जैसे समुद्री जीवों के खोलों के ढेर होते हैं जिन्हें इंसान खाकर फेंक देता है। इस बात का अंदाजा तब लगा जब खुदाई में खुरचने, काटने और चीरने जैसे रोजमर्रा के कामों में इस्तेमाल होने वाले उपकरण मिले।* *शोध में बताया गया है कि इन औजारों के लिए इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल अंदाजन खादिर द्वीप से लाया गया होगा, जो बाद में हड़प्पा शहर धोलावीरा के लिए प्रसिद्ध हुआ। इस खोज से यह भी पता लगता है कि यह वस्तुएं संभवतः हड़प्पा काल से भी 5,000 साल पहले के समय की है।* *पहले यह माना जाता था कि कच्छ क्षेत्र में मानव बस्तियाँ मुख्य रूप से सिंधु घाटी सभ्यता के प्रभाव से आईं, लेकिन यह खोज बताती है कि यहाँ का विकास स्थानीय स्तर पर और बहुत पहले शुरू हो चुका था। शोधकर्ताओं ने कितनी पुरानी हैं ये वस्तुएँ, इसका वैज्ञानिक प्रमाण मिला है।* *जिसके लिए उन्होंने एक्सेलेरेटर मास स्पेक्ट्रोमेट्री (AMS) तकनीक का इस्तेमाल किया। विशेषज्ञों की भूमिका की बात करें तो PRL अहमदाबाद के प्रो रवि भूषण और IUAC दिल्ली के डॉ. पंकज कुमार जैसे विशेषज्ञों ने इसकी जाँच पड़ताल में सहयोग किया। इन वैज्ञानिकों ने इस बात का ध्यान रखा की जो भी परिणाम है, वो विश्वसनीय और सटीक हो।* *इस पूरी तकनीक से न सिर्फ खोज की उम्र का पता लगता है, बल्कि यह भी पता चलता है की भारत में वैज्ञानिक पुरातत्व का स्तर किस हद तक आगे बढ़ चुका है।* *शोध में यह भी सामने आया कि इस क्षेत्र में रहने वाले लोग प्राचीन शिकारी और भोजन जुटाने वाले समुदाय से थे। ये लोग मैंग्रोव वनों से घिरे इलाकों में रहते थे और समुद्र से मिलने वाले जीवों जैसे सीप और शंख पर निर्भर थे। इससे पता चलता है कि उन्होंने अपने वातावरण के अनुसार अपने जीवनशैली को विकसित कर लिया था।* *जिससे इस समुदाय के लोग स्थायी खेती करने वाले नहीं थे, बल्कि ये लोग तटीय संसाधनों को इकट्ठा करके अपने जीवन को जिया करते थे। उन्होंने शायद मौसमी रूप से विभिन्न क्षेत्रों में जाकर शिकार करना और भोजन को इकट्ठा करना सीख लिया हो।* *इन लोगों ने स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर के पत्थर के औजार भी बनाए जिनका इस्तेमाल किया जो सामग्री इस्तेमाल हुई, वह भी स्थानीय थी। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि उस समय के लोग न सिर्फ संसाधनों का उपयोग कर रहे थे, बल्कि उनके उपयोग के बारे में पूरी जानकारी भी रखते थे।* *डॉ शिखा राय ने बताया कि इस अध्ययन ने हमें सोचने पर मजबूर करता है कि जब उस दौर में तकनीक नाम मात्र की थी, तब भी लोग जलवायु और परिस्थिति के अनुसार जीवन जीने में सफल थे।* *शोध टीम अब गुजरात में प्रागैतिहासिक काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक के सांस्कृतिक विकास का अध्ययन करना चाहती है, ताकि यह समझा जा सके कि समय के साथ मानव जीवन कैसे बदला।* *इस अध्ययन के महत्वपूर्ण निष्कर्षों को 2025 में आयोजित होने वाले प्रमुख अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय मंचों पर प्रस्तुत किया जाएगा, जिनमें हार्टविक कॉलेज और शिकागो विश्वविद्यालय की वार्षिक कार्यशाला, सोरबोन विश्वविद्यालय (पेरिस) की सेमिनार श्रृंखला और आईएसपीक्यूएस (रायपुर) का 50वां वार्षिक सम्मेलन शामिल है।* 🕉️🌞🔥🔱🐚🔔🌷

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