अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳
                                
                            
                            
                    
                                
                                
                                June 18, 2025 at 11:39 PM
                               
                            
                        
                            *"अखिल विश्व अखण्ड सनातन सेवा फाउंडेशन"*(पंजीकृत) *द्वारा संचालित*
*अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳*
*क्रमांक~ ०२*
https://photos.app.goo.gl/YEuuYWwWnH71suy67
🚩🚩                    🚩🚩
   *`!! श्रीमद्भागवत महापुराण !!`*
               `{नवम स्कन्ध}`
            *【प्रथम : अध्याय:】*
         
*_वैवस्वत मनुके पुत्र राजा सुद्युम्न की कथा..._*
*राजा परीक्षितने पूछा-* भगवन्! आपने सब मन्वन्तरों और उनमें अनन्त शक्तिशाली *भगवान्के द्वारा किए हुए ऐश्वर्यपूर्ण चरित्रों का वर्णन किया* और मैने उनका श्रवण भी किया। आपने कहा कि पिछले कल्प के अन्त में *द्रविड़ देश के स्वामी राजर्षि सत्यव्रत ने भगवान्की सेवा से ज्ञान प्राप्त किया* और वही इस कल्प में वैवस्वत मनु हुए। आपने उनके इक्ष्वाकु आदि नरपति पुत्रों का भी वर्णन किया। *ब्रह्मन् ! अब आप कृपा करके उनके वंश और वंश में होने वालों का अलग-अलग चरित्र वर्णन कीजिये।* महाभाग ! हमारे हृदय में सर्वदा ही कथा सुनने की उत्सुकता बनी रहती है। वैवस्वत मनु के वंश में जो हो चुके हों, इस समय विद्यमान हों *और आगे होने वाले हों— उन सब पवित्रकीर्ति पुरुषों के पराक्रम का वर्णन कीजिये।*
*सूतजी कहते हैं-* शौनकादि ऋषियो ! ब्रह्मवादी ऋषियों को सभा में राजा परीक्षित्ने जब यह प्रश्न किया, तब धर्म के परम मर्मज्ञ भगवान् श्रीशुकदेवजी ने कहा–
*श्रीशुकदेवजीने कहा-* परीक्षित्! तुम मनुवंश का वर्णन संक्षेप से सुनो। *विस्तार से तो सैकड़ों वर्ष भी उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।* जो परम पुरुष परमात्मा छोटे-बड़े सभी प्राणियों के आत्मा हैं, प्रलय के समय केवल वही थे; *यह विश्व तथा और कुछ भी नहीं था।* महाराज! उनकी नाभि से एक *सुवर्णमय कमलकोष प्रकट हुआ। उसी में चतुर्मुख ब्रह्माजी का आविर्भाव हुआ।* ब्रह्माजी के मनसे मरीचि और मरीचि के पुत्र कश्यप हुए। उनकी धर्मपत्नी *दक्षनन्दिनी अदिति से विवस्वान् (सूर्य) का जन्म हुआ।* विवस्वान्की संज्ञा नामक पत्नी से *श्राद्धदेव मनु का जन्म हुआ।* परीक्षित्! परम मनस्वी राजा श्राद्धदेव ने अपनी पत्नी श्रद्धा के गर्भ से दस पुत्र उत्पन्न किए। *उनके नाम थे— इक्ष्वाकु, नृग, शर्याति, दिष्ट, धृष्ट, करूष, नरिष्यन्त, पृषभ, नभग और कवि।*
वैवस्वत मनु पहले सन्तानहीन थे उस समय सर्वसमर्थ *भगवान् वसिष्ठ ने उन्हें सन्तान प्राप्ति कराने के लिए मित्रावरुण का यज्ञ कराया था।* यज्ञ के आरम्भ में केवल दूध पीकर रहने वाली वैवस्वत मनु की धर्मपत्नी *श्रद्धा ने अपने होता के पास जाकर प्रणामपूर्वक याचना की कि मुझे कन्या ही प्राप्त हो।* तब अध्वर्यु की प्रेरणा से होता बने हुए ब्राह्मण ने श्रद्धा के कथन का स्मरण करके *एकाग्र चित्त से वषट्कार का उच्चारण करते हुए यज्ञकुण्ड में आहुति दी।* जब होता ने इस प्रकार विपरीत कर्म किया, तब यज्ञ के फलस्वरूप *पुत्र के स्थान पर इला नाम की कन्या हुई।* उसे देखकर श्राद्धदेव मनु का मन कुछ विशेष प्रसन्न नहीं हुआ। उन्होंने अपने गुरु वसिष्ठजी से कहा-  *'भगवन्! आपलोग तो ब्रह्मवादी हैं, आपका कर्म इस प्रकार विपरीत फल देने वाला कैसे हो गया ? अरे, यह तो बड़े दुःखकी बात है। वैदिक कर्म का ऐसा विपरीत फल तो कभी नहीं होना चाहिए। आप लोगों का मन्त्रज्ञान तो पूर्ण है ही इसके अतिरिक्त आपलोग जितेन्द्रिय भी हैं तथा तपस्या के कारण निष्पाप हो चुके है देवताओं के असत्य की प्राप्ति के समान आपके संकल्प का यह उलटा फल कैसे हुआ ?* परीक्षित्! हमारे वृद्धमपितामह ने उनकी यह बात सुनकर जान लिया कि होता ने विपरीत संकल्प किया है। *इसलिए उन्होंने  मनु से कहा- 'राजन् ! तुम्हारे होता के विपरीत संकल्प से ही हमारा संकल्प ठीक-ठीक पूरा नहीं हुआ। फिर भी अपने तप के प्रभाव से मैं तुम्हें श्रेष्ठ पुत्र दूँगा'।*
परीक्षित्! परम यशस्वी भगवान् वसिष्ठ ने ऐसा निश्चय करके उस *इला नाम की कन्या को ही पुरुष बना देने के लिये पुरुषोत्तम भगवान् नारायण की स्तुति की।* सर्वशक्तिमान् भगवान् श्रीहरि ने सन्तुष्ट होकर उन्हें मुँहमाँगा वर दिया, जिसके प्रभाव से वह कन्या ही *सुद्युम्न नामक श्रेष्ठ पुत्र बन गयी।*
महाराज! एक बार राजा सुद्युन शिकार खेलने के लिये *सिन्धु देश के घोड़े पर सवार होकर कुछ मन्त्रियों के साथ वन में गये।* वीर सुद्युम्न कवच पहनकर और हाथ में सुन्दर धनुष एवं अत्यन्त अद्भुत वाण लेकर *हरिनों का पीछा करते हुए उत्तर दिशा में बहुत आगे बढ़ गये।* अन्त में सुधुम्र मेरुपर्वत की तलहटी के एक वन में चले गये। उस वन में *भगवान् शङ्कर पार्वती के साथ विहार करते रहते हैं।* उसमें प्रवेश करते ही वीरवर सुद्युम्न ने देखा कि *मैं स्त्री हो गया हूँ और घोड़ा घोड़ी हो गया है।* परीक्षित् ! साथ ही उनके *सब अनुचरों ने भी अपने को स्त्रीरूप में देखा।* वे सब एक-दूसरे का मुँह देखने लगे, उनका चित्त बहुत उदास हो गया।
*राजा परीक्षितने पूछा-* भगवन्! उस भूखण्ड में ऐसा विचित्र गुण कैसे आ गया ? *किसने उसे ऐसा बना दिया था ?* आप कृपा कर हमारे इस प्रश्न का उत्तर दीजिये; क्योंकि हमें बड़ा कौतूहल हो रहा है।
*श्रीशुकदेवजीने कहा-* परीक्षित्! एक दिन भगवान् शङ्कर का दर्शन करने के लिये *बड़े-बड़े व्रतधारी ऋषि अपने तेज से दिशाओं का अन्धकार मिटाते हुए उस वन में गये।* उस समय अम्बिका देवी वस्त्रहीन थीं। ऋषियों को सहसा आया देख *वे अत्यन्त लज्जित हो गयीं।* झटपट उन्होंने भगवान् शङ्कर की गोद से उठकर वस्त्र धारण कर लिया।
ऋषियोंने भी देखा कि भगवान् *गौरी-शङ्कर इस समय विहार कर रहे हैं, इसलिए वहाँ से लौटकर वे भगवान् नर-नारायणके आश्रम पर चले गये।* उसी समय भगवान् शङ्कर ने अपनी प्रिया भगवती अम्बिका को प्रसन्न करने के लिए कहा कि *'मेरे सिवा जो भी पुरुष इस स्थान में प्रवेश करेगा, वह स्त्री हो जायेगा'।* परीक्षित्! तभी से पुरुष उस स्थान में प्रवेश नहीं करते। अब तुम स्त्री हो गये हो *इसलिए अपने स्त्री बने हुए अनुचरों के साथ एक वन से दूसरे वन में विचरते रहो।*
उसी समय शक्तिशाली बुध ने देखा कि मेरे आश्रम के पास ही बहुत-सी स्त्रियों से घिरी हुई *एक सुन्दरी स्त्री विचर रही है।* उन्होंने इच्छा की कि यह मुझे प्राप्त हो जाए। *उस सुन्दरी स्त्री ने भी चन्द्रकुमार बुध को पति बनाना चाहा।* इस पर बुध ने उसके गर्भ से पुरूरवा नामका पुत्र उत्पन्न किया। *इस प्रकार मनुपुत्र राजा सुद्युन स्त्री हो गये।* ऐसा सुनते हैं कि उन्होंने उस अवस्था में अपने कुलपुरोहित वसिष्ठजी का स्मरण किया।
सुद्युम्न की यह दशा देखकर *वसिष्ठजी के हृदय में कृपा अत्यन्त पीड़ा हुई। उन्होंने सुद्युम्न को पुनः पुरुष बना देने के लिये भगवान् शङ्करकी आराधना की।* भगवान् शङ्कर वसिष्ठजी पर प्रसन्न हुए। परीक्षित्! उन्होंने उनकी अभिलाषा पूर्ण करने के लिये अपनी वाणी को सत्य रखते हुए ही यह बात कही- *'वसिष्ठ ! तुम्हारा यह यजमान एक महीने तक पुरुष रहेगा और एक महीने तक स्त्री।* इस व्यवस्था से सुद्युम्न इच्छानुसार पृथ्वी का पालन करे'। इस प्रकार वसिष्ठजी के अनुग्रह से *व्यवस्थापूर्वक अभीष्ट पुरुषत्व लाभ करके सुद्युम्न पृथ्वी का पालन करने लगे।* परंतु प्रजा उनका अभिनन्दन नहीं करती थी। *उनके तीन पुत्र हुए- उत्कल, गय और विमल।* परीक्षित्! वे सब दक्षिणापथ के राजा हुए। बहुत दिनों के बाद वृद्धावस्था आने पर प्रतिष्ठान नगरी के *अधिपति सुद्युम्न ने अपने पुत्र पुरूरवा को राज्य दे दिया और स्वयं तपस्या करने के लिये वन की यात्रा की॥*
*।। इस प्रकार श्रीमदभागवत महापुराण के नवम स्कंध का पहला अध्याय पूरा हुआ।।*
*ॐ नमो भगवते वासुदेवाय🙏🏻🙏🏻*
🕉️🌞🔥🔱🐚🔔🌷