
अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳
June 19, 2025 at 12:27 AM
*"अखिल विश्व अखण्ड सनातन सेवा फाउंडेशन"*(पंजीकृत) *द्वारा संचालित*
*अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳*
*क्रमांक~ ०३*
*।। भूतनाथ अष्टकम ।।*
*श्री कृष्णदास जी महाराज द्वारा रचित भूतनाथ अष्टकम भगवान शिव को समर्पित एक गहन भक्ति भजन है। मेरी नेपाल की यात्रा के दौरान जब मैं पशुपतिनाथ के दर्शन के लिए मंदिर में लगी हुई लाइन में खड़ा था उस समय वहां एक बोर्ड पे मेरा ध्यान गया जहां यह भूतनाथ अष्टकम लिखा हुआ था जो कि वहां दशमहाविद्या का जो स्थान है उस के आगे था। मैने वहां लाइन में खड़े रहते है पूरा अष्टकम पढ़ा और अष्टकम पढ़ते ही एक अलग सी ऊर्जा महसूस किया।*
https://youtu.be/culV5VsfJw4?si=ODGUouZ0ALuw4J65
*इस अष्टकम में श्री कृष्णदास जी महाराज ने बहुत ही सुन्दर तरीके से अलग अलग बीज मंत्रों को पिरोया हैं जिस वजह से जब भी कोई ऐसे साधक जो ऊर्जा को महसूस कर सकता है इस अष्टकम का पाठ करता है तो उस दिव्य ऊर्जा को महसूस कर सकता है। आप सब के लिए यह अष्टकम यहां प्रस्तुत किया जा रहा है-*
* *`भूतनाथ अष्टकम`* •
शिव शिव शक्तिनाथं संहारं शं स्वरूपं
नव नव नित्यनृत्यं ताण्डवं तं तन्नादम्।
घन घन घूर्णिमेघं घङ्घोरं घं निनादं
भज भज भस्मलेपं भजामि भूतनाथम्।।१।।
कल कल कालरूपं कल्लोलं कं करालं
डम डम डमनादं डम्बुरुं डङ्कनादम्।
सम सम शक्तग्रीवं सर्वभूतं सुरेशं (सितग्रीवं)
भज भज भस्मलेपं भजामि भूतनाथम्।।२।।
रम रम रामभक्तं रमेशं रां रारावं
मम मम मुक्तहस्तं महेशं मं मधुरम्। (मुक्तहासं)
बम बम ब्रह्मरूपं वामेशं बं विनाशं
भज भज भस्मलेपं भजामि भूतनाथम्।।३।।
हर हर हरिप्रियं त्रितापं हं संहारं
खम खम क्षमाशीलं सपापं खं क्षमणम्।
द्दग द्दग ध्यानमूर्त्तिं सगुणं धं धारणं
भज भज भस्मलेपं भजामि भूतनाथम्।।४।।
पम पम पापनाशं प्रज्वलं पं प्रकाशं
गम गम गुह्यतत्त्वं गिरीशं गं गणानाम्।
दम दम दानहस्तं धुन्दरं दं दारुणं
भज भज भस्मलेपं भजामि भूतनाथम्।।५।।
गम गम गीतनाथं दूर्गमं गं गन्तव्यं
टम टम रुण्डमालं टङ्कारं टङ्कनादम्।
भम भम भ्रं भ्रमरं भैरवं क्षेत्रपालं
भज भज भस्मलेपं भजामि भूतनाथम्।।६।।
त्रिशूलधारी संहारकारी गिरिजानाथं ईश्वरं
पार्वतीपति त्वं मायापति शुभ्रवर्णं महेश्वरम्।
कैलासनाथ सतिप्राणनाथ महाकालं कालेश्वरं
अर्धचन्द्रं शिरकिरीटं भूतनाथं शिवं भजे।।७।।
नीलकण्ठाय सत्स्वरूपाय सदाशिवाय नमो नमः
यक्षरूपाय जटाधराय नागदेवाय नमो नमः।
इन्द्रहाराय त्रिलोचनाय गङ्गाधराय नमो नमः
अर्धचन्द्रं शिरकिरीटं भूतनाथं शिवं भजे।।८।।
तव कृपा कृष्णदासः भजति भूतनाथं
तव कृपा कृष्णदासः स्मरति भूतनाथम्।
तव कृपा कृष्णदासः पश्यति भूतनाथं
तव कृपा कृष्णदासः पिबति भूतनाथम्।।९।।
यः पठति निष्कामभावेन सः शिवलोकं सगच्छति।।
।। इति श्री कृष्णदासविरचितं भूतनाथाष्टकगीतं सम्पूर्णम् ।।
*श्लोक १ में शिव को शक्ति के सर्व-मंगलकारी भगवान के रूप में दर्शाया गया है, जो अपने शाश्वत नृत्य, तांडव के माध्यम से विनाश का प्रतीक हैं। उनका ध्यान अटूट है, जो एक भयंकर तूफान की याद दिलाने वाली शक्तिशाली ध्वनि के साथ गूंजता है। भक्त उनकी दिव्य उपस्थिति के लिए उनका सम्मान करते हैं, जिसे अक्सर उनके रूप को सुशोभित करने वाली राख द्वारा दर्शाया जाता है।*
*श्लोक २ में शिव को काल का अवतार और भय का नाश करने वाला बताया गया है। उनका शक्तिशाली वाद्य यंत्र, डमरू, ब्रह्मांड में गूंजता है, जो सभी भूतों के साथ उनके संबंध का प्रतीक है। नाग वासुकी को धारण करने वाली उनकी मजबूत गर्दन की छवि उनकी शक्ति और अनुग्रह को उजागर करती है।*
*श्लोक ३ में शिव को श्री राम का शाश्वत भक्त बताया गया है, जो निरंतर उनका नाम जपते रहते हैं। यह श्लोक शिव के सौम्य और उदार स्वभाव को दर्शाता है, जो ब्रह्म का अवतार है और जो लोग उनका अनुग्रह चाहते हैं, उन्हें वरदान देने में उनकी उदारता को दर्शाता है।*
*श्लोक ४ में शिव को करुणामयी, दुखों का नाश करने वाले, क्षमाशील और ध्यान के साक्षात स्वरूप के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उन्हें परम रक्षक के रूप में दर्शाया गया है, जो अपने भक्तों के दुखों को दूर करते हैं और दया और कृपा के गुणों को बनाए रखते हैं।*
*श्लोक ५ में शिव को पापों का नाश करने वाले के रूप में दर्शाया गया है, जो सभी प्राणियों को प्रकाश के मार्ग की ओर ले जाते हैं। उनका निवास उनके गणों के साथ एक पर्वत पर है, जहाँ उनका उग्र लेकिन उदार स्वभाव चमकता है, जो सभी भूतों के भगवान के रूप में उनकी भूमिका पर जोर देता है।*
*श्लोक ६ में शिव की रहस्यमयी प्रकृति को दर्शाया गया है, जिसमें उन्हें 'पहुंचने में कठिन' गंतव्य के रूप में दर्शाया गया है, जो खोपड़ियों की माला से सुशोभित हैं। यह छंद पवित्र क्षेत्रों के रक्षक भैरव के रूप में उनके रूप को भी स्वीकार करता है, और उनकी उत्कृष्टता के प्रतीक के रूप में राख से उनके शाश्वत संबंध को भी स्वीकार करता है।*
*श्लोक ७ में शिव को त्रिशूल धारण करने वाले के रूप में सम्मानित किया गया है, जिसमें उनकी विनाशकारी शक्ति और माता पार्वती के साथ उनके गहरे संबंध को स्वीकार किया गया है। उनके सिर के ऊपर अर्धचंद्र की छवि कैलाश में रहने वाले महान नियंत्रक के रूप में उनकी दिव्य स्थिति को पुष्ट करती है।*
*श्लोक ८ सदा शिव को भावपूर्ण प्रणाम के साथ समाप्त होता है, जिसमें उनके वासुकी नाग से सजे रूप और गंगा से उनके संबंध का वर्णन किया गया है। यह श्लोक भक्ति के सार को समाहित करता है, शिव को परम सत्य और शाश्वत आशीर्वाद के स्रोत के रूप में सम्मानित करता है।*
*भूतनाथ अष्टकम के माध्यम से भक्त भगवान शिव के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा व्यक्त करते हैं, उनकी कृपा और सुरक्षा की कामना करते हैं। माना जाता है कि इस स्तोत्र का पाठ शुद्ध इरादे से करने पर भक्त शिव लोक, भगवान शिव के निवास स्थान पर पहुँच जाता है।*
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