अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳
अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳
June 20, 2025 at 12:12 AM
*"अखिल विश्व अखण्ड सनातन सेवा फाउंडेशन"*(पंजीकृत) *द्वारा संचालित* *अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳* *क्रमांक~ ०२* https://photos.app.goo.gl/YEuuYWwWnH71suy67 🚩🚩 🚩🚩 *`!! श्रीमद्भागवत महापुराण !!`* `{नवम स्कन्ध}` *【द्वितीय: अध्याय:】* *_पृषध, आदि मनुके पाँच पुत्रोंका वंश..._* *श्रीशुकदेवजी कहते हैं-* परीक्षित्! इस प्रकार जब सुद्युम्न तपस्या करने के लिये वन में चले गये, *तब वैवस्वत मनु ने पुत्र की कामना से यमुना के तट पर सौ वर्ष तक तपस्या की।* इसके बाद उन्होंने सन्तान के लिये *सर्वशक्तिमान् भगवान् श्रीहरि की आराधना की* और अपने ही समान दस पुत्र प्राप्त किये, जिनमें *सबसे बड़े इक्ष्वाकु थे।* उन मनुपुत्रों में से एक का नाम था *पृषध।* गुरु वसिष्ठजी ने उसे गायों की रक्षा में नियुक्त कर रखा था, *अतः वह रात्रि के समय बड़ी सावधानी से वीरासन से बैठा रहता और गायों की रक्षा करता।* एक दिन रात में वर्षा हो रही थी। उस समय गायों के झुंड में *एक बाघ घुस आया।* उससे डरकर सोयी हुई गौएँ उठ खड़ी हुईं। वे गोशाला में ही इधर-उधर भागने लगीं। *बलवान् बाघ ने एक गाय को पकड़ लिया।* वह अत्यन्त भयभीत होकर चिल्लाने लगी। *उसका वह क्रन्दन सुनकर पृषध गाय के पास दौड़ आया।* एक तो रात का समय और दूसरे घनघोर घटाओं से आच्छादित होनेके कारण तारे भी नहीं दीखते थे। *उसने हाथ में तलवार उठाकर अनजान में ही बड़े वेग से गाय का सिर काट दिया।* वह समझ रहा था कि यही बाघ है। तलवार की नोक से बाध का भी कान कट गया, *वह अत्यन्त भयभीत होकर रास्ते में खून गिराता हुआ वहाँ से निकल भागा।* शत्रुदमन पृषध ने यह समझा कि बाघ मर गया। परंतु रात बीतने पर उसने देखा कि *मैंने तो गाय को ही मार डाला है, इससे उसे बड़ा दुःख हुआ।* यद्यपि पृषध ने जान-बूझकर अपराध नहीं किया था, फिर भी कुलपुरोहित वसिष्ठजी ने उसे शाप दिया कि *'तुम इस कर्म से क्षत्रिय नहीं रहोगे; जाओ, शूद्र हो जाओ।* पृषधने अपने गुरुदेव का यह शाप अञ्जलि बाँधकर स्वीकार किया और इसके बाद सदा के लिए *मुनियों को प्रिय लगने वाले नैष्ठिक ब्रह्मचर्य व्रत को धारण किया।* वह समस्त प्राणियों का अहैतुक हितैषी एवं सबके प्रति समान भाव से युक्त होकर भक्ति के द्वारा *परम विशुद्ध सर्वात्मा भगवान् वासुदेव का अनन्य प्रेमी हो गया।* उसकी सारी आसक्तियाँ मिट गयीं। वृत्तियाँ शान्त हो गयीं। इन्द्रियाँ वश में हो गयीं। *वह कभी किसी प्रकार का संग्रह परिग्रह नहीं रखता था जो कुछ दैववश प्राप्त हो जाता, उसीसे अपना जीवन निर्वाह कर लेता।* वह आत्मज्ञान से सन्तुष्ट एवं अपने चित्त को परमात्मा में स्थित करके प्रायः समाधिस्थ रहता। *कभी-कभी जद, अंधे और बहरे के समान पृथ्वी पर विचरण करता।* इस प्रकारका जीवन व्यतीत करता हुआ वह एक दिन वन में गया। *वहाँ उसने देखा कि दावानल धधक रहा है।* मननशील पृषध अपनी इन्द्रियों को उसी अग्नि में भस्म करके परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त हो गया। *मनुका सबसे छोटा पुत्र था कवि* विषयों से वह अत्यन्त निःस्पृह था। *वह राज्य छोड़कर अपने बन्धुओं के साथ वन में चला गया और अपने हृदयमें स्वयंप्रकाशपरमात्मा को विराजमान कर किशोर अवस्था में ही परम पद को प्राप्त हो गया।* *मनुपुत्र करूष से कारूष नामक क्षत्रिय उत्पन्न हुए।* वे बड़े ही ब्राह्मणभक्त, धर्मप्रेमी एवं उत्तरापथ के रक्षक थे। *धृष्ट के धार्ष्ट नामक क्षत्रिय हुए।* अन्त में वे इस शरीर से ही ब्राह्मण बन गये। *नृग का पुत्र हुआ सुमति,* उसका पुत्र भूतज्योति और भूतज्योतिका पुत्र वसु था। *वसु का पुत्र प्रतीक और प्रतीक का पुत्र ओघवान्।* ओघवान्‌ के पुत्र का नाम भी ओघवान् ही था। *उनके एक ओघवती नाम की कन्या भी थी,* जिसका विवाह सुदर्शन से हुआ। *मनुपुत्र नरिष्यन्त से चित्रसेन, उससे ऋक्ष, ऋक्ष से मीढ्वान्, मीवान्से कुर्च और उससे इन्द्रसेन की उत्पत्ति हुई।* इन्द्रसेन से वीतिहोत्र, उससे सत्यश्रवा, सत्यश्रवासे उरुश्रवा और उससे देवदत्त की उत्पत्ति हुई। *देवदत्तके अग्निवेश्य नामक पुत्र हुए, जो स्वयं अग्निदेव ही थे।* आगे चलकर वे ही कानीन एवं महर्षि जातूकर्ण्य के नाम से विख्यात हुए। *परीक्षित्! ब्राह्मणोंका 'आमिवेश्यायन गोत्र उन्हीं से चला है।* इस प्रकार नरिष्यन्तके वंश का मैंने वर्णन किया, अब दिष्ट का वंश सुनो। *दिष्टके पुत्रका नाम था नाभाग।* यह उस नाभाग से अलग है, जिसका मैं आगे वर्णन करूंगा। वह *अपने कर्म के कारण वैश्य हो गया।* उसका पुत्र हुआ भलन्दन और उसका वत्सप्रीति। वत्सप्रीति का प्रांशु और प्रांशुका पुत्र हुआ प्रमति। *प्रमति के खनित्र, सत्रि के चाक्षुष और उनके विविंशति हुए।* विविंशति के पुत्र रम्भ और रम्भ के पुत्र सनिनेत्र दोनों ही परम धार्मिक हुए *उनके पुत्र कथम और कथम के अवीक्षित् महाराज परीक्षित् अवीक्षित्के पुत्र मरुत चक्रवर्ती राजा हुए।* उनसे अङ्गिरा के पुत्र महायोगीसंवर्त ऋषि ने यज्ञ कराया था। *मरुत्त का यज्ञ जैसा हुआ, वैसा और किसी का नहीं हुआ।* उस यज्ञ के समस्त छोटे-बड़े पात्र अत्यन्त सुन्दर एवं सोने के बने हुए थे। *उस यज्ञ में इन्द्र सोमपान करके मतवाले हो गये थे और दक्षिणाओं से ब्राह्मण तृप्त हो गये थे* उसमें परसने वाले थे मरुद्गण और विश्वेदेव सभासद् थे। *मरुत के पुत्र का नाम था दम।* दम से राज्यवर्धन, उससे सुधृति और सुधृति से नर नामक पुत्र की उत्पत्ति हुई। *नर से केवल, केवल से बन्धुमान्, बन्धुमान्से वेगवान्, वेगवान्से बन्धु और बन्धु से राजा तृणविन्दु का जन्म हुआ।* तृणबिन्दु आदर्श गुणों के भण्डार थे। अप्सराओं में श्रेष्ठ अलम्बुषा देवी ने उनको वरण किया, *जिससे उनके कई पुत्र और इडविडा नाम की एक कन्या उत्पन्न हुई।* मुनिवर विश्रवा ने अपने योगेश्वर पिता पुलस्त्यजी से उत्तम विद्या प्राप्त करके *इडविडा के गर्भ से लोकपाल कुबेर को पुत्ररूप में उत्पन्न किया।* महाराज तृणविन्दुके अपनी धर्मपत्नी से तीन पुत्र हुए- *विशाल, शून्यबन्धु और धूम्रकेतु* उनमें से राजा विशाल वंशधर हुए और उन्होंने *वैशाली नामकी नगरी बसायी।* विशाल से हेमचन्द्र, हेमचन्द्र से भूम्राक्ष, धूम्राक्ष से संयम और संयम से दो पुत्र हुए- कृशाश्च और देवज। *कृशाश्व के पुत्रका नाम था सोमदत्त।* उसने अश्वमेध यज्ञों के द्वारा यज्ञपति भगवान्‌की आराधना की और *योगेश्वर संतों का आश्रय लेकर उत्तम गति प्राप्त की।* *सोमदत्त का पुत्र हुआ सुमति और सुमति से जनमेजय। ये सब तृणबिन्दु की कीर्ति को बढ़ाने वाले विशालवंशी राजा हुए।।* *।। इस प्रकार श्रीमदभागवत महापुराण के नवम स्कंध का दूसरा अध्याय पूरा हुआ।।* *ॐ नमो भगवते वासुदेवाय🙏🏻🙏🏻* 🕉️🌞🔥🔱🐚🔔🌷
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