
अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳
June 20, 2025 at 04:12 AM
*"अखिल विश्व अखण्ड सनातन सेवा फाउंडेशन"*(पंजीकृत) *द्वारा संचालित*
*अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳*
*क्रमांक~ ०६*
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*_मेरा सनातन धर्म :विश्व का सबसे श्रेष्ठ व प्राचीन धर्म...(भाग~ 5)_*
*सनातन धर्म की विशेषताएं*
*`कृण्वन्तो विश्वमार्यम’`*
*अर्थात सारी दुनिया को श्रेष्ठ, सभ्य एवं सुसंस्कृत बनाएंगे।*
*कल से आगे-----*
*उदार, सहिष्णु और सर्वपंथ समादर भाव पर आस्था रखने वाला हिन्दू समाज विस्तारवादी विचारधाराओं के साथ सह-अस्तित्व की भावनाओं के साथ कब तक रह पाएगा? यह देखना होगा। मजहबी कट्टरता के चलते कालांतर में पश्चिमी धर्म द्वारा धर्म प्रचार, लालच, फसाद और आतंक के माध्यम से धर्म का विस्तार किया जाता रहा है। इसका परिणाम सबसे ज्यादा हिन्दू, जैन और यहूदियों को भुगतना पड़ा।*
*`प्रकृति से निकटता :` अक्सर हिन्दू धर्म की इस बात के लिए आलोचना होती है कि यह प्रकृति पूजकों का धर्म है। ईश्वर को छोड़कर ग्रह और नक्षत्रों की पूजा करता है। यह तो जाहिलानापन है। दरअसल, हिन्दू मानते हैं कि कंकर-कंकर में शंकर है अर्थात प्रत्येक कण में ईश्वर है। इसका यह मतलब नहीं कि प्रत्येक कण को पूजा जाए। इसका यह मतलब है कि प्रत्येक कण में जीवन है। वृक्ष भी सांस लेते हैं और लताएं भी।*
*दरअसल, जो दिखाई दे रहा है पहला सत्य तो वही है। प्रत्येक व्यक्ति करोड़ों मिल दूर दिखाई दे रहे उस टिमटिमाते तारे से जुड़ा हुआ है इसलिए क्योंकि उसे दिखाई दे रहा है। दिखाई देने का अर्थ है कि उसका प्रकाश आपकी आंखों तक पहुंच रहा है। हमारे वैदिक ऋषियों ने कुदरत के रहस्य को अच्छे से समझा है। वे कहते हैं कि प्रकृति ईश्वर की अनुपम कृति है। प्रकृति से मांगो तो निश्चित ही मिलेगा।*
*दुनिया के तीन बड़े धर्म मरुस्थल में जन्मे हैं जबकि हिन्दू धर्म हिमालय से निकलने वाली नदियों के किनारे हरे-भरे जंगलों में पनपा है। स्वाभाविक रूप से ही धर्मों पर वहां की भौगोलिक स्थिति का असर होगा ही। धर्म, संस्कृति, पहनावे और रीति-रिवाज पर स्थान विशेष का भौगोलिक असर जरूर पड़ता है, लेकिन वैदिक ऋषियों की सोच इससे आगे की थी।*
*जिन्होंने वेद, उपनिषद और गीता का अच्छे से अध्ययन किया है, वे जानते हैं कि प्रकृति क्या है। हालांकि हिन्दू धर्म में प्रकृति और समाधि पूजा का निषेध है। कोई गृहिणी चांद को देखकर अपना व्रत तोड़ती है तो इसका यह मतलब नहीं कि वह चांद की पूजा करती है। लेकिन सूर्य और चन्द्र के आपके जीवन पर हो रहे असर को भी नकारा नहीं जा सकता इसीलिए प्रकृति से प्रेमपूर्ण संबंध स्थापित करने के लिए कुछ नियम बताए गए हैं। कोई भी व्यक्ति प्रकृति से अलग या विरुद्ध रहकर अपना जीवन-यापन नहीं कर सकता। प्रकृति एक शक्ति है जिसके प्रति प्रेमपूर्ण भावना से भरकर हम एक श्रेष्ठ जीवन को विकसित कर सकते हैं। यही पर्यावरण की सोच को विकसित करने का एकमात्र तरीका भी है।*
*वेदों में प्रकृति के हर तत्व के रहस्य और उसके प्रभाव को उजागर किया गया है इसीलिए वेदों में प्रकृति को ईश्वर का साक्षात रूप मानकर उसके हर रूप की वंदना की गई है। इसके अलावा आसमान के तारों और आकाश मंडल की स्तुति कर उनसे रोग और शोक को मिटाने की प्रार्थना की गई है। धरती और आकाश की प्रार्थना से हर तरह की सुख-समृद्धि पाई जा सकती है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि 'ब्रह्म' अर्थात ईश्वर को छोड़कर हम तारे-सितारों की पूजा करने लगें।*
*आम हिन्दू आमतौर पर एकेश्वरवादी नहीं होते, जबकि हिन्दू धर्म एकेश्वरवादी धर्म है जिसे ब्रह्मवाद कहते हैं। अधिकतर हिन्दू ईश्वर, परमेश्वर या ब्रह्म को छोड़कर तरह-तरह की प्राकृतिक एवं सांसारिक वस्तुएं, ग्रह-नक्षत्र, देवी-देवता, नाग, नदी, झाड़, पितर और गुरुओं की पूजा करते रहते हैं इसका कारण है स्थानीय संस्कृति और पुराणों का प्रभाव।*
*`उत्सवप्रियता :` हिन्दू धर्म उत्सवों को महत्व देता है। जीवन में उत्साह और उत्सव होना जरूरी है। ईश्वर ने मनुष्य को ही खुलकर हंसने, उत्सव मनाने, मनोरंजन करने और खेलने की योग्यता दी है। यही कारण है कि सभी हिन्दू त्योहारों और संस्कारों में संयमित और संस्कारबद्ध रहकर नृत्य, संगीत और पकवानों का अच्छे से सामंजस्य बैठाते हुए समावेश किया गया है। उत्सव से जीवन में सकारात्मकता, मिलनसारिता और अनुभवों का विस्तार होता है।*
*हिन्दू धर्म में होली जहां रंगों का त्योहार है वहीं दीपावली प्रकाश का त्योहार है। नवरात्रि में जहां नृत्य और व्रत को महत्व दिया जाता है, वहीं गणेश उत्सव और श्राद्ध पक्ष में अच्छे-अच्छे पकवान खाने को मिलते हैं।*
*इसके अलावा हिन्दू प्रकृति में परिवर्तन का भी उत्सव मनाते हैं, जैसे मकर संक्रांति पर सूर्य उत्तरायन होता है तो उत्सव का समय शुरू होता है और सूर्य जब दक्षिणायन होता है तो व्रतों का समय शुरू होता है। इसके अलावा 1. शीत-शरद, 2. बसंत, 3. हेमंत, 4. ग्रीष्म, 5. वर्षा और 6. शिशिर इन सभी का उत्सव मनाया जाता है।*
*वसंत से नववर्ष की शुरुआत होती है। वसंत ऋतु चैत्र और वैशाख माह अर्थात मार्च-अप्रैल में, ग्रीष्म ऋतु ज्येष्ठ और आषाढ़ माह अर्थात मई-जून में, वर्षा ऋतु श्रावण और भाद्रपद अर्थात जुलाई से सितंबर, शरद ऋतु आश्विन और कार्तिक माह अर्थात अक्टूबर से नवंबर, हेमंत ऋतु मार्गशीर्ष और पौष माह अर्थात दिसंबर से 15 जनवरी तक और शिशिर ऋतु माघ और फाल्गुन माह अर्थात 16 जनवरी से फरवरी अंत तक रहती है।*
*शेष भाग कल - -*
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