
अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳
June 21, 2025 at 03:29 AM
*"अखिल विश्व अखण्ड सनातन सेवा फाउंडेशन"*(पंजीकृत) *द्वारा संचालित*
*अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳*
*क्रमांक~ ०४*
https://photos.app.goo.gl/qCVxNAHExtv9KN3J9
🇮🇳🙏🏻
*_शत-शत नमन 21 जून/जन्म-दिवस, प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार, नाटककार और कहानीकार विष्णु प्रभाकर..._*
विष्णु प्रभाकर अपने साहित्य में *भारतीय वाग्मिता और अस्मिता को व्यंजित करने के लिये प्रसिद्ध रहे हैं।* विष्णु प्रभाकर जी ने *कहानी, उपन्यास, नाटक, जीवनी, निबंध, एकांकी, यात्रा-वृत्तांत और कविता आदि प्रमुख विधाओं में अपनी बहुमूल्य रचनाएँ की हैं।* प्रभाकर जी ने आकाशवाणी, दूरदर्शन, पत्र-पत्रिकाओं तथा प्रकाशन संबंधी मीडिया के प्रत्येक क्षेत्र में ख्याति प्राप्त की थी। *देश-विदेश की अनेक यात्राएँ करने वाले विष्णुजी* जीवन-पर्यन्त पूर्णकालिक मसिजीवी रचनाकार के रूप में साहित्य साधना में लीन रहे थे।
*जीवन परिचय–*
विष्णु प्रभाकर का *जन्म 21 जून, सन् 1912 को मीरापुर, ज़िला मुज़फ़्फ़रनगर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था।* इन्हें इनके एक अन्य नाम *'विष्णु दयाल'* से भी जाना जाता है। इनके पिता का नाम *दुर्गा प्रसाद था, जो धार्मिक विचारधारा वाले व्यक्तित्व के धनी थे।* प्रभाकर जी की माता *महादेवी पढ़ी-लिखी महिला थीं,* जिन्होंने अपने समय में पर्दा प्रथा का घोर विरोध किया था। प्रभाकर जी की *पत्नी का नाम सुशीला था।*
*शिक्षा–*
विष्णु प्रभाकर की आरंभिक शिक्षा मीरापुर में हुई थी। *उन्होंने सन् 1929 में चंदूलाल एंग्लो-वैदिक हाई स्कूल, हिसार से मैट्रिक की परीक्षा पास की।* इसके उपरांत नौकरी करते हुए पंजाब विश्वविद्यालय से *'भूषण', 'प्राज्ञ', 'विशारद' और 'प्रभाकर' आदि की हिंदी-संस्कृत परीक्षाएँ भी उत्तीर्ण कीं।* उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से ही बी.ए. की डिग्री भी प्राप्त की थी।
*व्यवसाय–*
प्रभाकर जी के घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। यही कारण था कि उन्हें *काफ़ी कठिनाइयों और समस्याओं का सामना करना पड़ा था।* वे अपनी शिक्षा भली प्रकार से प्राप्त नहीं कर पाये थे। *अपनी घर की परेशानियों और ज़िम्मेदारियों के बोझ से उन्होंने स्वयं को मज़बूत बना लिया।* उन्होंने चतुर्थ श्रेणी की एक सरकारी नौकरी प्राप्त की। इस नौकरी के जरिए *पारिश्रमिक रूप में उन्हें मात्र 18 रुपये प्रतिमाह का वेतन प्राप्त होता था।* विष्णु प्रभाकर जी ने जो डिग्रियाँ और उच्च शिक्षा प्राप्त की, तथा अपने घर-परिवार की ज़िम्मेदारियों को पूरी तरह निभाया, वह उनके अथक प्रयासों का ही परिणाम था।
*लेखन कार्य–*
प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी महात्मा *गाँधी जी के जीवन आदर्शों से प्रेम के कारण प्रभाकर जी का रुझान कांग्रेस की तरफ़ हो गया।* वे आज़ादी के दौर में बजते राजनीतिक बिगुल में उनकी लेखनी का भी एक उद्देश्य बन गया था, *जो आज़ादी के लिए संघर्षरत थी।* अपने लेखन के दौर में वे *प्रेमचंद, यशपाल और अज्ञेय जैसे महारथियों के सहयात्री भी रहे,* किन्तु रचना के क्षेत्र में उनकी अपनी एक अलग पहचान बन चुकी थी। *1931 में 'हिन्दी मिलाप' में पहली कहानी दीवाली के दिन छपने के साथ ही उनके लेखन का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह जीवनपर्यंत निरंतर चलता रहा।* नाथूराम शर्मा प्रेम के कहने से वे शरतचन्द्र की जीवनी *'आवारा मसीहा'* लिखने के लिए प्रेरित हुए, जिसके लिए वे शरतचन्द्र को जानने के लिये लगभग सभी स्रोतों और जगहों तक गए। *उन्होंने बांग्ला भाषा भी सीखी और जब यह जीवनी छपी, तो साहित्य में विष्णु जी की धूम मच गयी।* कहानी, उपन्यास, नाटक, एकांकी, संस्मरण, बाल साहित्य सभी विधाओं में प्रचुर साहित्य लिखने के बावजूद *'आवारा मसीहा' उनकी पहचान का पर्याय बन गयी।* इसके बाद में 'अर्द्धनारीश्वर' पर उन्हें बेशक साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी प्राप्त हुआ, *लेकिन 'आवारा मसीहा' ने साहित्य में उनकी एक अलग ही पहचान पुख्ता कर दी।*
*प्रथम नाटक रचना–*
विष्णु प्रभाकर जी ने अपना पहला नाटक *'हत्या के बाद'* लिखा और हिसार में एक नाटक मंडली के साथ भी कार्यरत हो गये। इसके पश्चात् प्रभाकर जी ने *लेखन को ही अपनी जीविका बना लिया।* आज़ादी के बाद वे नई दिल्ली आ गये और सितम्बर 1955 में *आकाशवाणी में नाट्यनिर्देशक नियुक्त हो गये, जहाँ उन्होंने 1957 तक अपनी सेवाएँ प्रदान की थीं।* इसके बाद वे तब सुर्खियों में आए, जब राष्ट्रपति भवन में दुर्व्यवहार के विरोधस्वरूप उन्होंने *'पद्मभूषण' की उपाधि वापस करने घोषणा कर दी।* विष्णु प्रभाकर जी आकाशवाणी, दूरदर्शन, पत्र-पत्रिकाओं तथा प्रकाशन संबंधी मीडिया के विविध क्षेत्रों में पर्याप्त लोकप्रिय रहे। *देश-विदेश की अनेक यात्राएँ करने वाले विष्णुजी जीवनपर्यंत पूर्णकालिक रचनाकार के रूप में साहित्य की साधना में लिप्त रहे थे।*
*कृतियाँ–*
विष्णु प्रभाकर जी की प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं-
*कहानी संग्रह -* 'संघर्ष के बाद', 'धरती अब भी धूम रही है', 'मेरा वतन', 'खिलौने', 'आदि और अन्त', 'एक आसमान के नीचे', 'अधूरी कहानी', 'कौन जीता कौन हारा', 'तपोवन की कहानियाँ', 'पाप का घड़ा', 'मोती किसके'।
*बाल कथा संग्रह -* 'क्षमादान', 'गजनन्दन लाल के कारनामे', 'घमंड का फल', 'दो मित्र', 'सुनो कहानी', 'हीरे की पहचान'।
*उपन्यास -* 'ढलती रात', 'स्वप्नमयी', 'अर्द्धनारीश्वर', 'धरती अब भी घूम रही है', 'पाप का घड़ा', 'होरी', 'कोई तो', 'निशिकान्त', 'तट के बंधन', 'स्वराज्य की कहानी'।
*आत्मकथा -* 'क्षमादान' और 'पंखहीन' नाम से उनकी आत्मकथा 3 भागों में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हो चुकी है। 'और पंछी उड़ गया', 'मुक्त गगन में'।
*नाटक -* 'सत्ता के आर-पार', 'हत्या के बाद', 'नवप्रभात', 'डॉक्टर', 'प्रकाश और परछाइयाँ', 'बारह एकांकी', अब और नही, टूट्ते परिवेश, गान्धार की भिक्षुणी और 'अशोक'
*जीवनी -* 'आवारा मसीहा', 'अमर शहीद भगत सिंह'।
*यात्रा वृत्तांत -* 'ज्योतिपुन्ज हिमालय', 'जमुना गंगा के नैहर में', 'हँसते निर्झर दहकती भट्ठी'।
*संस्मरण -* 'हमसफर मिलते रहे'।
कविता संग्रह - ‘चलता चला जाऊंगा’ (एकमात्र कविता संग्रह)।
*पुरस्कार व सम्मान–*
विष्णु प्रभाकर जी की प्रमुख रचना *'आवारा मसीहा' सर्वाधिक चर्चित जीवनी है।* इस जीवनी रचना के लिए इन्हें *'पाब्लो नेरूदा सम्मान', 'सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार' जैसे कई विदेशी पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।* इनका लिखा प्रसिद्ध नाटक *'सत्ता के आर-पार' पर उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा 'मूर्ति देवी पुरस्कार' प्रदान किया गया।* हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा प्रभाकर जी को 'शलाका सम्मान' भी मिल चुका है। *'पद्म भूषण' पुरस्कार भी मिला, किंतु राष्ट्रपति भवन में दुर्व्यवहार के विरोधस्वरूप उन्होंने 'पद्म भूषण' की उपाधि वापस करने घोषणा कर दी।*
*निधन–*
भारत के प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकारों में से एक विष्णु प्रभाकर जी का *निधन 96 वर्ष की उम्र में 11 अप्रैल, 2009 को नई दिल्ली में हो गया।* *हिन्दी साहित्य के इस अमूल्य मोती के चले जाने से साहित्य के एक अद्भुत सूरज का अंत हो गया।*
🕉️🌞🔥🔱🐚🔔🌷