अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳
अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳
June 21, 2025 at 05:01 AM
*"अखिल विश्व अखण्ड सनातन सेवा फाउंडेशन"*(पंजीकृत) *द्वारा संचालित* *अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳* *क्रमांक~ ०६* https://photos.app.goo.gl/qkpJzT3za23ZpWx87 🚩 *_मेरा सनातन धर्म :विश्व का सबसे श्रेष्ठ व प्राचीन धर्म...(भाग~ 6 अंतिम)_* *सनातन धर्म की विशेषताएं* *`कृण्वन्तो विश्वमार्यम’`* *अर्थात सारी दुनिया को श्रेष्ठ, सभ्य एवं सुसंस्कृत बनाएंगे।* *कल से आगे-----* *`ईश्वर सर्वव्यापक और अकेला है :` हिन्दू धर्म के अनुसार ईश्‍वर अकेला होते हुए भी सर्वव्यापक है। सभी को ईश्वरमय और ईश्वरीय समझना ही सत्य, धर्म, न्याय और मानवता की सोच को बढ़ावा देता है। हिन्दू मानते हैं कि कंकर-कंकर में शंकर का वास है इसीलिए जीव हत्या को 'ब्रह्महत्या' माना गया है।* *जो व्यक्ति किसी भी जीव की किसी भी प्रकार से हत्या करता है उसके साथ भी वैसा ही किसी न किसी जन्म विशेष में होता है। यह एक चक्र है। हिंसा से हिंसा का ही जन्म होता है, जैसे बबूल के बीज से बबूल का बीज ही पैदा होता है।* *`इसीलिए वेदों की उद्घोषणा है-` प्रज्ञानाम ब्रह्म, अहम् ब्रह्मास्मि, तत्वमसि, अयम आत्म ब्रह्म, सर्व खल्विदं ब्रह्म तज्जलानिति अर्थात- ब्रह्म परम चेतना है, मैं ही ब्रह्म हूं, तुम ब्रह्म हो, यह आत्मा ब्रह्म है और यह संपूर्ण दृश्यमान जगत् ब्रह्मरूप है, क्योंकि यह जगत् ब्रह्म से ही उत्पन्न होता है।* *उपरोक्त भावना ही अहिंसा का आधार है। अहिंसा ही परमोधर्म है। इसी अहिंसा की भावना को विकसित करने के लिए ही कहा गया है:- 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' सभी प्राणियों को अपनी आत्मा के समान मानो।* *`वसुधैव कुटुम्बकम् :` 'संपूर्ण विश्व को एक परिवार' मानने की विशाल भावना भारतीयता में समाविष्ट है। इस वसुंधरा के पुत्र सभी एक ही कुटुम्ब के हैं, भले ही कोई किसी भी धर्म, प्रांत, समाज, जाति या देश का हो वे सभी एक ही कुल और कुटुम्ब के हैं। ऐसी भावना रखने से ही मनुष्य, मनुष्य से प्रेम करेगा।* *अयं निज: परोवेति गणना लघुचेतसाम्।* *उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम।।* *`अर्थात :` यह मेरा है, यह पराया है, ऐसे विचार तुच्छ या निम्न कोटि के व्यक्ति करते हैं। उच्च चरित्र वाले व्यक्ति समस्त संसार को ही कुटुम्ब मानते हैं। इसी धारणा में विश्व कल्याण की अवधारणा भी समाहित है।* *सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:* *सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दु:ख भाग्भवेत।।* *`परोपकार की भावना :` 'परोपकार' शब्द पर+उपकार इन दो शब्दों के मेल से बना है जिसका अर्थ है नि:स्वार्थ भाव से दूसरों की सहायता करना। अपनी शरण में आए सभी मित्र-शत्रु, कीट-पतंगे, देशी-परदेशी, बालक-वृद्ध आदि सभी के दु:खों का निवारण करना ही परोपकार कहलाता है। ईश्वर ने सभी प्राणियों में सबसे योग्य जीव मनुष्य को बनाया है। यदि किसी मनुष्य में यह गुण नहीं है तो उसमें और पशु में कोई फर्क नहीं है।* *पुराणों में परोपकार के अनेक उदाहरण हैं। राजा रंतिदेव को 40 दिन तक भूखे रहने के बाद जब भोजन मिला तो वह भोजन उन्होंने शरण में आए भूखे अतिथि को दे दिया। दधीचि ने देवताओं की रक्षा के लिए अपनी अस्थियां दे दीं, शिव ने विष का पान कर लिया, कर्ण ने कवच और कुंडल दान दे दिए, राजा शिवि ने शरण में आए कबूतर के लिए अपना मांस दे डाला आदि-आदि। ऐसे कई उदाहरण हमें सीख देते हैं।* *परोपकार के अनेक रूप हैं जिसके द्वारा व्यक्ति दूसरों की सहायता करके आत्मिक सुख प्राप्त कर ईश्वर का प्रिय बन सकता है, जैसे प्यासे को पानी पिलाना, बीमार या घायल को अस्पताल पहुंचाना, वृद्धों की सेवा करना, अंधों को सड़क पार कराना, भूखे को भोजन देना, वस्त्रहीन को वस्त्र देना, गौशाला बनवाना, प्याऊ लगवाना, वृक्ष लगाना आदि।* *जय सनातन धर्म🚩* *समाप्त - -* 🕉️🌞🔥🔱🐚🔔🌷

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