काम की राजनीति
June 21, 2025 at 10:23 AM
जब भूख इंसान की किस्मत बन जाए, जब मज़दूर की मेहनत पूंजीपतियों की तिजोरी भरने लगे, और जब किसान की ज़िंदगी कर्ज़ और आत्महत्या में सिमट जाए — तब चुप रहना गुनाह होता है! यही समय है ललकारने का, खड़े होने का, क्रांति की मशाल उठाने का। और यही है कम्युनिज़्म – वो आग, जो हर अन्याय को राख करने के लिए पैदा हुई है!
लाल झंडा सिर्फ एक कपड़ा नहीं – यह संघर्ष का प्रतीक है, शहीदों का सपना है, और मेहनतकशों की उम्मीद है। इसकी एक-एक सिलाई में इतिहास की कुर्बानियाँ हैं – भगत सिंह की फांसी, तेलंगाना की गोलियाँ, नक्सलबाड़ी के खेतों में गिरी लाशें। यह झंडा पूछता है – क्या तुम तैयार हो उस लड़ाई के लिए, जो इंसाफ की नींव रखती है?
हम पूंजीवाद के गुलाम नहीं हैं। हम वो आग हैं जो तिजोरियों के दरवाज़े तोड़ सकती है। हम वो तूफान हैं जो संसदों की नींव हिला सकते हैं। हम वो इंकलाब हैं जो सड़कों से उठते हैं, किताबों से सीखते हैं और ज़ुल्म के खिलाफ दहाड़ते हैं। क्रांति कोई सपना नहीं – ये एक संगठित हकीकत है, जो तब ज़िंदा होती है जब हर युवा अपने भीतर लाल सलाम की गूंज महसूस करता है।
युवाओं, वक्त आ गया है। अब सिर्फ मोबाइल और मीम्स से बदलाव नहीं आएगा। अगर तुम्हें वाकई अपनी तक़दीर बदलनी है, तो किताब उठाओ, संगठन बनाओ, मजदूर-किसान के साथ खड़े हो जाओ। तुम्हारी पढ़ाई का, तुम्हारी सोच का, तुम्हारी आवाज़ का मतलब तभी होगा जब वो अन्याय के खिलाफ इस्तेमाल हो। यह देश सिर्फ वोट नहीं, क्रांति मांगता है!
क्योंकि जो इतिहास को बदलते हैं, वो डरते नहीं। वो मैदान में उतरते हैं, गोली और गालियों के बीच भी डटे रहते हैं। उनका नाम किताबों में नहीं, दिलों में लिखा जाता है। आज फिर वही समय है – उठो, जागो, और कह दो ज़ोर से:
इंकलाब ज़िंदाबाद!
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