Shabd_sanchay
Shabd_sanchay
June 15, 2025 at 12:52 PM
खंडित होती अभिलाषाएं बिखर गया सपनो का घर , चाह मर गया चातक का पल्लव रहे पेड़ों से झर । निशा किधर को सोती है भानू उगता है किस ओर , दिशा भ्रमित पंछी उड़ता चले हवा जिधर की ओर । जहा मनुज का मन मरता वह पथ जाता अनंत ओर , मैं अपनी पीड़ा के आसू बहने नही दूंगा इस ठौर । अभी बिलखती जो रातें है कल को होगा पुलकित भोर , जीवन के उस नए शोर में दिखता मुझको नया छोर ।। ✍🏻✍🏻 अंशुमान सिंह
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