
Shabd_sanchay
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कविता , जीवन और उनके संदेश , समाज , लोग और उनके विचार , देश , दुनिया और उनके कर्तव्य ।। संचालक : अंशुमान सिंह सह संचालक: सनातन शर्मा
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खंडित होती अभिलाषाएं बिखर गया सपनो का घर , चाह मर गया चातक का पल्लव रहे पेड़ों से झर । निशा किधर को सोती है भानू उगता है किस ओर , दिशा भ्रमित पंछी उड़ता चले हवा जिधर की ओर । जहा मनुज का मन मरता वह पथ जाता अनंत ओर , मैं अपनी पीड़ा के आसू बहने नही दूंगा इस ठौर । अभी बिलखती जो रातें है कल को होगा पुलकित भोर , जीवन के उस नए शोर में दिखता मुझको नया छोर ।। ✍🏻✍🏻 अंशुमान सिंह


*"शब्द संचय"* द्वारा आयोजित पहली *ओपन माइक*! एक मंच, जहाँ हर अभिव्यक्ति को आदर मिलेगा, और प्रत्येक रचना सुनी जाएगी गंभीरता से, स्नेहपूर्वक। *तारीख़*: 31 मई 2025 (शनिवार) *माध्यम*: गूगल मीट (ऑनलाइन) *आप सादर आमंत्रित हैं!* अपनी कविताओं के साथ इस साहित्यिक यात्रा का भाग बनने हेतु। *नोट: मीटिंग लिंक हमारे whatsapp channel पर भेज दी जाएगी*


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हमारे इस हिंदी पृष्ठ ने 100+ साथियों का स्नेह प्राप्त किया है। यह संख्या नहीं, विश्वास है हमारी लेखनी पर, हमारी भावना पर। *मेहनत की स्याही से जब जज़्बातों को मोड़ा है,* *तभी तो हर लफ़्ज़ ने मुक़द्दर का दरवाज़ा खोला है।* हृदय से आभार उन सभी का, जो इस यात्रा के सहभागी बने। ~शब्द संचय