Shrinathji nitya darshan
Shrinathji nitya darshan
June 10, 2025 at 11:30 PM
व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा Wednesday, 11 June 2025 नंदको मन वांछित दिन आयो, फुली फरत यशोदा रोहिणी, उर आनंद न समायो ।। गाम गाम ते जाति बलाई मोतिन चोक पुरायो व्रज वनिता सब मंल गावत, बाजत घोष बधायो ।। प्रथम रात्रि यमुना जल घट भरि, अधिवासन करवायो ।। उठि प्रातकंचन चोकी धरी ता पर लाल बैठायो ।। राज बेठ अभिषेक करत है विप्रन वेद पठायो । जेष्ठ शुकल पून्यो दिन सुर बधु, हरखि फूल बरखायो ।। रंगी कोर धोती उपरणा, आभूषण सब साज, । द्वारकेश आनंद भयो प्रभु, नाम धर्यो ब्रजराज ज्येष्ठाभिषेक (स्नान-यात्रा) श्री नंदरायजी ने श्री ठाकुरजी का राज्याभिषेक कर उनको व्रजराजकुंवर से व्रजराज के पद पर आसीन किया, यह उसका उत्सव है. इसी भाव से स्नान-अभिषेक के समय वेदमन्त्रों-पुरुषसूक्त का वाचन किया जाता है. वेदोक्त उत्सव होने के कारण सर्वप्रथम शंख से स्नान कराया जाता है. इस आनंद के अवसर पर व्रजवासी अपनी ओर से प्रभु को अपनी ओर से अपनी ऋतु के फल की भेंट के रूप में उत्तमोत्तम ‘रसस्वरुप’ आम प्रभु को भोग रखते हैं इस भाव से आज श्रीजी को सवा लाख (1,25,000) आम (विशेषकर रत्नागिरी व केसर) आरोगाये जाते हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि व्रज में ज्येष्ठ मास में पूरे माह श्री यमुनाजी के पद, गुणगान, जल-विहार के मनोरथ आदि हुए. इसके उद्यापन स्वरुप आज प्रभु को सवालक्ष आम अरोगा कर पूर्णता की. स्नान का कीर्तन - (राग-बिलावल) मंगल ज्येष्ठ जेष्ठा पून्यो करत स्नान गोवर्धनधारी l दधि और दूब मधु ले सखीरी केसरघट जल डारत प्यारी ll 1 ll चोवा चन्दन मृगमद सौरभ सरस सुगंध कपूरन न्यारी l अरगजा अंग अंग प्रतिलेपन कालिंदी मध्य केलि विहारी ll 2 ll सखियन यूथयूथ मिलि छिरकत गावत तान तरंगन भारी l केशो किशोर सकल सुखदाता श्रीवल्लभनंदनकी बलिहारी ll 3 ll स्नान में लगभग आधा घंटे का समय लगता है और लगभग डेढ़ से दो घंटे तक दर्शन खुले रहते हैं. दर्शन पश्चात श्रीजी मंदिर के पातलघर की पोली पर कोठरी वाले के द्वारा वैष्णवों को स्नान का जल वितरित किया जाता है. मंगला दर्शन उपरांत श्रीजी को श्वेत मलमल का केशर के छापा वाला पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर सफ़ेद कुल्हे के ऊपर तीन मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ धराये जाते हैं. मंगला दर्शन के पश्चात मणिकोठा और डोल तिबारी को जल से खासा कर वहां आम के भोग रखे जाते हैं. इस कारण आज श्रृंगार व ग्वाल के दर्शन बाहर नहीं खोले जाते. गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में आज श्रीजी को विशेष रूप से मेवाबाटी व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. सखड़ी में घोला हुआ सतुवा, श्रीखण्ड भात, दहीभात, मीठी सेव, केशरयुक्त पेठा व खरबूजा की कढ़ी अरोगाये जाते हैं. गोपीवल्लभ (ग्वाल) में ही उत्सव भोग भी रखे जाते हैं जिसमें खरबूजा के बीज और चिरोंजी के लड्डू, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी, बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, घी में तला हुआ चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फलफूल, शीतल के दो हांडा, चार थाल अंकुरी (अंकुरित मूंग) आदि अरोगाये जाते हैं. इसके अतिरिक्त आज ठाकुरजी को अंकूरी (अंकुरित मूंग) एवं फल में आम, जामुन का भोग अरोगाने का विशेष महत्व है. अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक प्रतिदिन संध्या-आरती में प्रभु को बारी-बारी से जल में भीगी (अजवायन युक्त) चने की दाल, भीगी मूँग दाल व तीसरे दिन अंकुरित मूँग (अंकूरी) अरोगाये जाते हैं. इस श्रृंखला में आज विशेष रूप से ठाकुरजी को छुकमां मूँग (घी में पके हुए व नमक आदि मसाले से युक्त) अरोगाये जाते हैं. 🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸 Facebook Page: https://m.facebook.com/Shreenathjinitydarshan/ Instagram Account https://instagram.com/shreenathji__nity_darshan YouTube channel https://youtube.com/@shreenathji_nitya_darshan?si=Q-O_OOLKDovsuK2S WhatsApp channel https://whatsapp.com/channel/0029Va9SrMw3AzNUdJyRmS2V 🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸 राजभोग दर्शन – कीर्तन – (राग : सारंग) जमुनाजल गिरिधर करत विहार । आसपास युवति मिल छिरकत कमलमुख चार ॥ 1 ll काहुके कंचुकी बंद टूटे काहुके टूटे ऊर हार । काहुके वसन पलट मन मोहन काहु अंग न संभार ll 2 ll काहुकी खुभी काहुकी नकवेसर काहुके बिथुरे वार । ‘सूरदास’ प्रभु कहां लो वरनौ लीला अगम अपार ll 3 ll साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की पिछवाई धरायी जाती है जिसमें केशर के छापा व केशर की किनार की गयी है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है. वस्त्र – आज प्रभु को श्वेत मलमल का केशर के छापा वाला पिछोड़ा धराया जाता है. श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) उष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा एवं मोती के उत्सव के मिलमा आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर केसर की छाप वाली श्वेत रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. श्रीकंठ में बघ्घी धरायी जाती है व हांस, त्रवल नहीं धराये जाते. कली आदि सभी माला धरायी जाती हैं. तुलसी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में चार कमल की कमलछड़ी, मोती के वेणुजी तथा दो वेत्रजी धराये जाते हैं. पट ऊष्णकाल का व गोटी मोती की आती है. आरसी श्रृंगार में हरे मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है. 🌸🌼🍀🌸🌼🍀 आज शयन में आम की मंडली आवे     
🙏 ❤️ 🙇‍♀ 👏 🌸 🌹 👑 🙇 🙇‍♀️ 🪷 86

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