
ISKCON BHOPAL BYC
June 15, 2025 at 03:25 AM
धृतराष्ट्र ने योगिक प्रक्रिया द्वारा सभी प्रकार की भौतिक प्रतिक्रियाओं के निषेध की अवस्था प्राप्त कर ली थी। प्रकृति के भौतिक गुणों के प्रभाव से पीड़ित व्यक्ति को पदार्थ का आनंद लेने की अथक इच्छाओं की ओर आकर्षित किया जाता है, लेकिन योगिक प्रक्रिया द्वारा व्यक्ति ऐसे झूठे भोग से बच सकता है। प्रत्येक इन्द्रिय हमेशा अपने भोजन की खोज में व्यस्त रहती है, और इस प्रकार बद्धजीव पर सभी ओर से आक्रमण होता है और उसे किसी भी खोज में स्थिर होने का कोई मौका नहीं मिलता। महाराज युधिष्ठिर को नारद ने सलाह दी कि वे अपने चाचा को घर वापस लाने का प्रयास करके उन्हें परेशान न करें। वे अब किसी भी भौतिक वस्तु के आकर्षण से परे थे। प्रकृति के भौतिक गुणों (गुणों) की अपनी अलग-अलग क्रियाएँ होती हैं, लेकिन प्रकृति के भौतिक गुणों से ऊपर एक आध्यात्मिक गुण है, जो निरपेक्ष है। निर्गुण का अर्थ है प्रतिक्रिया रहित। आध्यात्मिक गुण और उसका प्रभाव एक समान हैं; इसलिए आध्यात्मिक गुण को उसके भौतिक समकक्ष से निर्गुण शब्द से अलग किया जाता है। प्रकृति के भौतिक गुणों के पूर्ण निलम्बन के पश्चात, व्यक्ति आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश करता है, तथा आध्यात्मिक गुणों द्वारा निर्देशित क्रिया को भक्ति कहा जाता है। इसलिए भक्ति, परम तत्व के साथ सीधे संपर्क द्वारा प्राप्त निर्गुण है।
श्रीमद् भागवतम् 1.13.56 के तात्पर्य से
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