Jaigurudevukm
May 27, 2025 at 12:02 PM
*जयगुरुदेव*
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समय का संदेश
14.05.2025
बावल, रेवाड़ी, हरियाणा
*1.(मैंने) गुरु की दया और आदेश से नामदान देने में कोई कोताही नहीं बरता। लेकिन नामदानियों ने नाम की कीमत नहीं लगाई।*
16:46 - 18:53
अब आपको बताऊं प्रेमियों! *गुरु महाराज पचासों साल तक नामदान देते रहे। जब से शुरु किया और अपने आखिरी समय आने से पहले तक जो नामदान लुटाया, उन्होंने दिया, उसकी गिनती नहीं की जा सकती है* और उसके बाद में गुरु महाराज मुझ नाचीज को कह करके गए थे, यह नामदान देंगे तो *हमने भी नामदान देने में, गुरु की दया से और गुरु के आदेश से, कोई कोताही नहीं बरता। कुछ देखा भी नहीं कि कौन पात्र है, कौन पात्र नहीं है और जब अभियान शुरू किया नामदान देने का, गुरु के आदेश के पालन में, तो एक-एक दिन में दो-दो, तीन-तीन जगह नामदान दिया। अब संख्या इतनी अधिक हो गई कि हर जगह नामदानी मिलेंगे आपको।* जहां-जहां भी सतसंग हुआ है, नामदान दिया गया है या गुरु महाराज ने दिया है, सब जगह नामदानी मिलेंगे लेकिन नामदानियों ने नाम की कीमत नहीं लगाई। नाम को समझ नहीं पाए कि यह क्या चीज है? इसको वो समझ नहीं पाए। इससे जो फायदा होना था वो फायदा नहीं हो पाया। गुरु महाराज लुटा के चले गए। हम भी जहां गए, वहां नामदान लुटा करके चले आए लेकिन लोग उसकी कीमत नहीं लगा पाए।
*2. साधना शिविर की शुरुआत क्यों की गई?*
21:53 - 26.59
ऐसे ही नाम तो लुटा लेकिन सब लोग फायदा उसका नहीं उठा पाए और वही गरीबी, वही बीमारी, वही टेंशन और वही लड़ाई झगड़ा। यही समस्याओं में बहुत से नामदानी अब भी पड़े हुए हैं। पहले भी पड़े हुए थे। तो लोगों ने प्रचार किया कि ऐसे बाबा आ रहे हैं कि जिनके पास तुम चले जाओगे और अपनी बात कह ही दोगे तो तुम्हारी दुख-तकलीफ में फायदा हो जाएगा। अब वो लोग आने लग गए। जहां खबर लगी कि उज्जैन के बाबा आ रहे हैं, बाबा उमाकान्त आ रहे हैं, वहां चला जाए, देखा जाए, आजमाइश किया जाए तो लोग आने लगे और गुरु की दया ऐसी हुई कि जो-जो जहां-जहां आने लगा, कुछ न कुछ फायदा लाभ सबको मिलने लग गया। तो लोगों ने सोचा कि भाई जब जाने से ही फायदा होता है तो चला क्यों न जाए। तब भीड़ तो इकट्ठा होने लग गई, आने-जाने तो लगे लोग कि आने-जाने से ही हमारा काम बनेगा। चाहे नौकरी में तरक्की हो, चाहे बिजनेस व्यापार में हमारी तरक्की हो, चाहे हमारा रोग ठीक हो, चाहे हमारा टेंशन दूर हो जाए, चाहे हम इलेक्शन जीत जाएं, हम इस पद पर पहुंच जाएं। तो आने-जाने तो लोग लगे। लेकिन अब रोज-रोज यह काम कौन कर पाएगा और गुरु की दया भी कहां से मिलेगी इस तरह से? और उमर बढ़ गई। आप समझो कि चौथेपन का भी चौथा ही चल रहा है एक तरह से। 76 साल की उमर हो गई। न किसी की बात सुन पा रहे, न किसी का उत्तर कुछ दे पा रहे हैं। आने-जाने से कहां तक किसका काम चलेगा? फिर भैया मेरे भी तो गुरु महाराज हैं। मैं भी तो गुरु से ही कोई चीज मांग करके देता हूं। तो वो गुरु हमको कहां तक देंगे?
कारण यही हुआ कि *जो लोगों के कर्म थे वो हमारे सिर पर चढ़ बैठे* और अब मैं बिल्कुल भैया पस्त हो गया हूं। अब हमारे बस का यहां तक कि अपना शरीर भी संभालना मुश्किल हो रहा है। अब आप इस बात को समझो, जितने भी लोग आप यहां बैठे हो, आप समझो और ये जो यहां से प्रसारित कर रहे हैं, देश–विदेश में जो बैठे हो नामदानी, गुरु महाराज के नामदानी, बाद के नामदानी हो, आप इस बात को समझो कि मेरी भी मजबूरी हो गई। देखो इधर काफी दिनों से मैं सतसंग नहीं कर पाया, मैं नामदान नहीं दे पाया, मैं कुछ कर नहीं पा रहा हूं। मुझे भी दूसरे का सहारा खोजना पड़ रहा है तो मैं तो फंसा ही हूं। गुरु के आदेश में हूं, गुरु की आज्ञा के पालन में हूं।
आप लोग क्यों फंसो? आप लोगों की दुर्गति क्यों हो? तो भाई ये सोचा गया कि इनसे कहा जाए कि *पहले भी जहां–जहां सतसंग हुआ, नामदान दिया गया, 10–15 मिनट का भी कहीं छोटा–मोटा कार्यक्रम हुआ तो साधना करने के लिए, सुमिरन–ध्यान–भजन करने के लिए बराबर कहा गया लेकिन आपने ध्यान नहीं दिया, लोगों ने ध्यान नहीं दिया।* फिर कहा गया भाई, कैसे भी हो इनको रिझाना है, मनाना है, खुश करना है तो कहा गया भाई, लगातार आप लोग करो, बैठो। घंटों में आप लोगों ने शुरू किया - 24 घंटे का होने लग गया, 48 घंटे का होने लग गया तो भी जब देखा गया कि मन इतना मोटा हो रहा है कि तो भी मन स्थिर नहीं होता है, मन नहीं रुकता है। तब कहा गया भाई-
"अतिशय रगड़ करे जब कोई।
अनल प्रगट चंदन ते होई"।।
बार–बार जब कहा जाएगा, बार–बार जब कराया जाएगा, ज्यादा देर तक जब बैठेंगे तब ये मन जो उछलता है गेंदें की तरह से, कुलांचे भरता है, दौड़ता है, इस पर रोक लगेगी। तो पांच–पांच दिन का होने लग गया।
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