Jaigurudevukm
June 3, 2025 at 10:49 AM
जयगुरुदेव
सतसंग लिंक - https://www.youtube.com/live/AgB4tBVzqSg?si=G-aIiZSvao97GoFl
समय का संदेश
03.06.2025 प्रातः काल
अहमदाबाद, गुजरात
3. *अब मांस, मछली, अंडा, शराब का सेवन मत करना।*
51:39 - 59:56
देखो प्रेमियों! जैसे बताते हैं, जैसे मैं बता रहा हूं कि नामदान लेने के बाद सतसंगों में भी आए लोग। मैं उदाहरण देकर बताता हूं। सतसंगों में भी आए और भजन सुमिरन भी करते हैं लेकिन उनको जानकारी नहीं हो पाई इस बात की कि मुर्गी नहीं पालना चाहिए, बकरी-बकरा नहीं पालना चाहिए। वो उसका व्यापार करते हैं और पालपोस करके बकरा बेच देते हैं। और उसको वो ले जाते हैं, पैसा देकर खरीद करके और काट देते हैं। तो वो जो पैसा मिला, वो जो धन मिला, उसी से खाते-पहनते हैं तो उससे बुद्धि खराब होती है।
*शिक्षात्मक संस्मरण -*
आपको मैं बताऊं गुरु महाराज ने हमको भेजा था कर्नाटक। तो कर्नाटक हम गए तो वहां सतसंग किया। लोग नहीं समझ पा रहे थे गांव में वह थे एक सतसंगी प्रेमी जिनके साथ मुझको भेजा था गुरु महाराज ने। तो मैं हिंदी में बोलता था और वो कन्नड़ में समझाते थे तो लोग बहुत खुश हुए क्योंकि ये चीज उनको सुनने को मिली नहीं थी। वो तो वही पूजा-पाठ और वही पुरानी चीजों में फंसे हुए थे, वो काल मत में फंसे हुए थे, दयाल मत की बात जब उन्होंने समझी-सुना तो खुश हुए। तो ले गए फिर वहां बोले कि चलो भोजन कर लो। एक कमरा था गरीब आदमी था बेचारा, एक बरामदा था तो उसी कमरे में गए, वहीं पर एक कोने में पानी गिरने की जगह बना रखा था, हाथ-पैर वहीं धोया और भोजन किया। भोजन के बाद पेशाब करने से गुर्दे की बीमारी जल्दी नहीं होती, बताया गया है आप लोगों को पहले सतसंग में … इसलिए मैं जब पेशाब करने के लिए गया, भोजन के बाद दोपहर में, तो मैंने उधर पीछे की तरफ देखा कि मुर्गी के छोटे-छोटे बच्चे वहां चुग रहे हैं, खा रहे हैं, जो चीज पा रहे हैं। फिर और थोड़ा-सा आगे बढ़े, दूर से देखा, आगे बढ़े तो देखा मुर्गा भी, मुर्गी भी उधर चुग रहीं और उनका दड़वा बना हुआ है, उनका घर बना हुआ है। फिर और आगे निकल गए थोड़ा, पेशाब किया वहां, लौट करके जब हम आए तब पूछे कि ये? बोले हां, ये आपके हैं। हमने कहा हमारे हैं? तो किसी ने कहा कि ये कह रहे हैं कि ‘आपका’ मतलब ‘हमारा’ ही है। तो हमने कहा कि अच्छा? तो बोले इसी से कमाई करते हैं बेचारे, अंडा बेचते हैं, मुर्गा-मुर्गी बेचते हैं। तब हमने कहा भाई ये नामदानी हैं? जिनके यहां रुके थे, खाए थे जिनका अन्न, उन्हीं की बात कह रहा हूं। हमने कहा यह नामदानी हैं? गैर नामदानी के यहां क्यों भाई भोजन कराया बना हुआ? तो बोले नामदानी हैं, जाते हैं ये गुरु महाराज के पास और माला भी जपते हैं। तब हमने कहा कि इनको किसी ने बताया नहीं? बोले ये हिंदी नहीं जानते और वहां सतसंग सुनते हैं तो बैठे रहते हैं, गुरु को देखते हैं, कहते हैं गुरु महाराज बहुत अच्छे लगते हैं और जब से हम जाने लगे तब से हमारे बीमारियों में, टेंशन में, और इन सब चीजों में बहुत फायदा हुआ। तो इसलिए ये जाते हैं। तो जिम्मेदार को मैंने बुलाया। एक आदमी हिंदी समझने वाले उस गांव में भी थे, उनसे बात हो रही थी और जिम्मेदार थोड़ा दूर थे वहां, दूसरे घर में, उसके पास जगह नहीं थी, दूसरे घर के पास वहां बैठे थे, सामने छाया में पेड़ के। तो हमने कहा आपने इनको बताया नहीं? बोले स्वामी जी ने एक बार कहा था कि एक जिला से दूसरे जिला में कोई नहीं जाएगा तो हम यहां नहीं आए। तो हमने कहा आपके पास प्रांत की जिम्मेदारी है। आपको तो पूरे प्रांत को देखना चाहिए। और आप अगर न आते तो आसपास से किसी को भेज देते। इसी जिला में अगर आदमी होते, उनको लगाते, इन बातों को अपनी भाषा में बताते तो। बोले भूल हो गई, गलती हो गई। तो जितने कार्यक्रम उसके बाद जहां हुए, खूब बताया, खूब बताया।
बहुत से लोग भूल भटक में भी गलती कर जाते हैं। तो *यह भी बात थोड़ी-सी बता दिया जाए वहां कि भाई साधना में तो बैठे हो लेकिन अब गलती मत करना। अब मांस मत खाना, मछली मत खाना, अंडा मत खाना, शराब मत पीना, शराब जैसे तेज नशे का सेवन मत करना। और अगर आप कोई करते हो तो तौबा कर लो, कान पकड़ लो। इसी साधना शिविर में यह जो फोटो गुरु महाराज का लगा हुआ है, इनसे माफी मांग लो।* नाक रगड़ लो, दया मांग लो। एक तरह से समझो अंतर में कान पकड़ के उठो-बैठो। बाहर से नहीं कि सब उठने-बैठने लग जाए, कसरत करने लग जाए। *अंदर से कान पकड़ लें, माफी मांग लें, माफी देने वाले का बड़ा लंबा हाथ होता है। उसके पास बहुत माफी के स्रोत होते हैं। माफी दे भी सकते हैं। कर्मों को भोगवा सकते हैं, सेवा करा करके, भजन में मन लगा करके, कर भी सकते हैं; कर्मों को कटवा भी सकते हैं। और अच्छी साधना अगर बनानी है तो बाहर का खाना-पीना बिल्कुल बंद कर दो।* और नहीं चलता है तो देखभाल के, सोच-समझ करके खाओ। जुबान के टेस्ट के लिए जो मिल जाए, वही खाते-दबाते, इस मानव मंदिर के अंदर ठूंसते मत चले जाओ। *मानव मंदिर है, इसी में अंतर में भगवान मिलता है। तो मंदिर को गंदा कर दोगे तब वो कहां से बैठा दिखाई पड़ेगा? तो इसको साफ-सुथरा रखना जरूरी है।*
*तो थोड़ी देर इसको समझाया जाए। कब समझाया जाए? जब 7 तारीख को साधना शिविर लगाई जाए तो 10:30 बजे तक सब लोग आ जाएं और एक प्रार्थना बोली जाए और फिर उसके बाद में समझाया जाए।*
4. *साधना शिविर में साधना कब और कैसे करनी है?*
59:57 - 1:08:22
*जब 11 बजने का टाइम आवे तब जयगुरुदेव नाम की ध्वनि शुरू कर दी जाए। जैसे 11 बजकर 11 मिनट हो तैसे ही बैठा दिया जाए। पहले ही बता दिया जाए कि बैठोगे तो सुमिरन करो। सुमिरन केवल एक बार करना रहेगा। ध्यान और भजन कई बार करना रहेगा* , जितनी देर जो बैठ सके, कोशिश ये रहे कि कम से कम एक घंटा, कम से कम एक घंटा। डेढ़ घंटा, दो घंटा, तीन घंटा, चार घंटा, पांच घंटा, चौबीसों घंटा वाले भी हैं जो लगातार बैठ चुके हैं, मानेंगे वो? वो तो बैठे रहेंगे। जो बैठें और फिर जब दोबारा आएं तो सुमिरन न करें। दोबारा जब आएं तो मन लगे तो ध्यान लगावें, मन लगे तो भजन करें; यह बात पहले बता दी जाए कि सुमिरन, जो आठ माला का बताया गया, उसे करो और जब सुमिरन पूरा हो जाए तो ध्यान लगाओ, भजन करो।
*सुमिरन करने से पहले गुरु का ध्यान लगा लो, फिर ये जो पांच नाम के धनी हैं, इनका अलग-अलग नाम ले करके, रूप को याद कर लो और फिर गुरु को याद करके प्रणाम कर लो। पहले भी गुरु को याद करो तो अंतर में प्रणाम करो। सिर झुकाने की जरूरत नहीं है। वो तो बैठे-बैठे आराम से प्रणाम करोगे तो वहां पहुंच जाएगा, वो कबूल कर लेंगे। और फिर इसी तरह से जो नीचे के धनी हैं, जिनके लोकों से सुरत ऊपर जाती है, उनको याद करके, उनको प्रणाम कर लो और फिर गुरु को याद करके प्रणाम कर लो और फिर सुमिरन पर बैठ जाओ। और फिर उसके बाद में सुमिरन करो आठ माला का, जो बताया गया। उसमें जिनके नाम को लो, उनके रूप को याद करो। उसके बाद में उनको प्रणाम करके ध्यान पर बैठ जाओ और फिर भजन पर बैठ जाओ। जब आओ तब भी ऐसा कर सकते हो, इसको सम्पुट कहते हैं। किसको? शुरू में याद कर लिया पांचों धनियों को, गुरु को, और जब उठे तब याद कर लिया फिर जब दोबारा बैठना हुआ तो फिर इसी तरह से याद कर लिया। तो इससे विघ्न-बाधाएं कम आती हैं और मन रुकता है और इनकी भी दया हो जाती है कि ये हमको याद कर रहे हैं, हमसे कुछ चाहते हैं, तो हम भी इनकी थोड़ी मदद कर दें।* और मदद अगर नहीं करते हैं तो बाधा नहीं डालते हैं क्योंकि इनमें कुछ लोगों का काम है बाधा डालने का, इसलिए बाधा भी नहीं डालते हैं। दिक्कत भी नहीं आती है। तो सुमिरन कराया जाए। बता दो कि सुमिरन करके ध्यान और भजन पर बैठ जाएं।
*जब दूसरे दिन 11 बजकर 11 मिनट हो जाए, यानी इतवार को, आठ तारीख तब थोड़ी देर तक और बैठा रहने दो, कोई दिक्कत नहीं है। उसके बाद में फिर प्रार्थना बोलकर के, नामध्वनि बोलकर के समाप्त कर दो। फिर समाप्त कर दो।*
अब देखो! थोड़ी रियायत करनी पड़ती है। जैसे नियम-कानून होता है न, तो कुछ नियम-कानून ऐसे होते हैं, जो एक दम से सख्त होते हैं और कुछ नियम-कानून ऐसे होते हैं, जिनमे कुछ रियायत की जाती है। जैसे कर्फ्यू है। आप शहर के लोग हो, जानते हो कर्फ्यू को। अगर नहीं जानते हो तो अभी और बहुत लगेंगे तो जान लेना। अभी एक बार लगेगा? कई बार लगेगा। जब होंगे दंगे-फसाद, जब कंट्रोल से बाहर होगा, जब मार-काट होगी, आगजनी जब होगी तब कर्फ्यू लगेगा। तो जान लेना कर्फ्यू को। ये सब घटनाएं आगे घटेंगी। तो कर्फ्यू में क्या होता है? कर्फ्यू लगा दिया लेकिन एक घंटा-दो घंटे की फिर ढील देने लगते हैं। जब कई दिन हो जाता है, राशन-पानी बच्चों के लिए नहीं मिल पाता है तब दो घंटे का, तीन घंटे का ढील देते हैं। उसी नियम में बदलाव कर देते हैं। जैसे नोटबंदी हुई थी तो नोटबंदी में कितना बदलाव हुआ था। ऐसे ही समय को देखते हुए, परिस्थिति को देखते हुए, थोड़ा सा रियायत भी किया जाता है।
तो रियायत क्या रहेगा? *रियायत ये रहेगा कि मान लो 11 बजकर 11 मिनट पर अगर कहीं नहीं शुरू कर पाते हो, बारिश होने लग गई, कहीं कोई दिक्कत, आंधी-आफत आ गई तो ये जो 24 घंटे का मुहूर्त है, इस मुहूर्त में आप कभी भी शुरू कर दो। 24 घंटे जब होंगे तब खत्म कर देना। दूसरे दिन आठ तारीख को इतवार को 11 बजकर 11 मिनट से पहले और शनिवार को 11 बजकर 11 मिनट के बीच में 24 घंटे में शुरुआत कर दो, कभी भी शुरुआत कर दो इन 24 घंटों में तो भी मुहूर्त में ही वो मान लिया जाएगा।*
जैसे लोग कहते हैं न कि इस दिन इस दिशा में नहीं जाना चाहिए। उसका बना दिया, जिससे याद हो जाएं कहा- “शनि सोम पूरब न जा हूं और मंगल बुध उत्तर दिश कालू। शुक्र रवि पश्चिम न जा हूं और बृहस्पत दक्षिण करे पयाना, ये न समझो फिर घर वापस आना” इसमें क्या होता है? दोष लगता है। तो उसका रास्ता निकाल दिया कि रविवार को ही अगर जाना है तो “रवि को पान, सोम को दर्पण” रवि को पान लोग खाते थे, हम तो बहुत पहले खाते थे जब पढ़ते थे, नामदान लिया तो छोड़ दिया। पान हजम करता है तो उस दिन पान खा लो। ये आज की नहीं है, बहुत पहले की कहावत है। तो “रवि को पान, सोम को दर्पण” सोमवार को दर्पण देख लो, शीशा देखकर, मुंह देखकर अपने चल पड़ो। मंगल को गुड़ और बुध को धनिया, बृहस्पत को जीरा और शुक्र को दही, शनिवार को अदरक खाना चाहिए। “शनि कहे हम अदरक पावे, सुख-संपत्ति घर लें वापस आवे”, “शुक्र कहे हम दही पीवे ...” इस तरह से बनाया है। अब अगर आदमी ये चीजें जान लेता है और खा-पी लेता है तो दोष कम हो जाता है या एक दिन पहले प्रस्थान कर देता है, चल पड़ता है तो वो दोष कम हो जाता है।
🙏
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