Jaigurudevukm
June 20, 2025 at 09:21 AM
सतसंग लिंक - https://www.youtube.com/live/WKqavwIfXHI?si=qaJ_epMH50OWyCB5
समय का संदेश
18.06.2025 सायंकाल
बाबा उमाकान्त जी महाराज आश्रम, नावदापंथ, इंदौर
*सूचना तंत्र एवं साधना शिविर संबंधी व्यवस्था*
24:26 - 34:35
आपको तरीका बताता हूं। देखो! जितने भी नामदानी हो, आप यह समझ लो कि यह हमारा काम है और हमको करना है और कराना है। जिम्मेदारियां लोगों को दी गईं, संगत के काम को बढ़ाने के लिए, गुरु के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए, गुरु महाराज की बातों को लोगों तक पहुंचाने के लिए, लोगों की आत्मा के कल्याण के लिए; ये सब जिम्मेदारियां लोगों को दी गईं लेकिन कुछ ही आदमी जिम्मेदारियां कैसे निभा सकते हैं? नहीं निभा सकते हैं इसीलिए ज्यादा आदमियों की इस समय पर जरूरत है। तो जितने भी सतसंगी हो, आप सब लोग जिम्मेदारी समझो और कुछ काम ऐसे हैं, जिनको बहुत लोग कर सकते हैं। कुछ को कुछ ही लोग कर सकते हैं। जैसे केंद्र के लोग हैं, प्रांत के लोग हैं, जिला के लोग हैं, तहसीलों के लोग हैं; वो काम वही लोग कर सकते हैं लेकिन गांव के जो लोग हो, आप लोग भी अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभा सकते हो। गांव में अगर आप जिम्मेदार लोग सूचना पहुंचा दोगे तो वो लोग भी अपनी जिम्मेदारी निभा सकते हैं, वो लोग भी साधना शिविर लगवा सकते हैं। क्या करना है? बुला के लाना है, लोगों को एक बार समझा देना है और बैठ जाना है, उनको बैठा देना हैं। तो बहुत आसान ये है लेकिन आपका एक सिस्टम बन जाए, तरीका आपका बन जाए तो अभी सब काम हो जाए। आज आप इंदौर के लोग यहां बैठे हो, कुछ गांव के प्रेमी आप आए हो, कुछ शहर के प्रेमी बच्चे और बच्चियां; ये सब बैठे हैं। लेकिन इस समय पर मेरी आवाज को और लोग भी सुन रहे हैं, ये जो सिस्टम लगा रहा है (आधुनिक सिस्टम) इससे और लोग भी सुन रहे हैं। तो यह संदेश सिर्फ इन्दौर वालों के लिए ही नहीं है, सबके लिए है और सब लोगों से यही कहना है, *सब लोगों से यही अपील करनी है कि जितने भी सतसंगी सुन रहे हो, सब से यही अपील करनी है कि देश के कौने-कौने तक, जहां तक नामदानी हैं; वहां तक आवाज पहुंचा दो।* कैसे पहुंचेगा? देखो! यह बेतार का यंत्र है। बेतार का यंत्र किसको कहते हैं? तार नहीं लगा रहता है। जैसे मोबाइल है, यहां बोलो और मुंबई में कोई सुन रहा है, अमेरिका में कोई सुन रहा है तो तार नहीं लगा है, बेतार है वो। तो ये जो बेतार के यंत्र हैं, बेतार के यंत्र वाले उससे पहुंचाएंगे। कहां? जहां पर उसका सिस्टम बना हुआ है। जैसे कहीं यह मोबाइल काम करता है और कहीं नहीं करता है। तो वो उससे पहुंचाएंगे। मोबाइल से पहुंचाएंगे, पैदल जा-जा करके लोगों को बताएंगे। तो उसका एक तरीका अपना लो आप लोग।
देखो! जितने भी जिला के जिम्मेदार लोग हो, जितने भी प्रांतों के जिम्मेदार लोग हो; आप यह सिस्टम बनाओ कि भाई देखो कि हमारे प्रांत में कौन-कौन ज्यादा आदमी है, हमारे जिले में संगत कहां ज्यादा है; उनकी व्यवस्था जिले के हिसाब से बनवा दो। जहां पर प्रांत में कम संगत है, वहां की व्यवस्था अलग बनवा दो। जहां पर बहुत कम लोग है, वहां की अलग बनवा दो। कुछ प्रांत ऐसे हैं, जहां पर हर जिले में आदमी है, हर तहसील में आदमी है। कुछ प्रांत ऐसे हैं कि जहां पर मिला-जुला हिसाब है। कुछ प्रांत दक्षिण में और पूर्व में ऐसे हैं, जहां पर जिले में ही आदमी है, कम ही लोग हैं। तो अलग-अलग व्यवस्था आप बनाओ। हम आपको सलाह देते हैं कि *जहां पर ज्यादा संगत है, वहां पर आप तहसील स्तर पर 5 आदमी बना लो। और तहसील स्तर के 5 आदमी हैं, वे चले जाएं और ब्लॉक स्तर पर 5 आदमी बना लें और वे चले जाएं गांव स्तर पर आदमी बना दें। ग्राम सभा स्तर पर 5-5 आदमी, जहां ज्यादा संगत है और जिस गांव में कम है, वहां पर 3 आदमी, 2 आदमी बना दें और उनको जिम्मेदारियां दे दें, उनको वो लोग समझा दें।* जा कर समझा दें, मोबाइल से समझा दें और ये जो और ऑनलाइन के सिस्टम हैं, इससे समझा दें। जहां जो गांव जिस तरह के हैं, जैसे कुछ प्रांत हैं ऐसे जहां पढ़े-लिखे लोग ज्यादा हैं, कोई ऐसा गांव बाकी नहीं है, जहां मोबाइल काम न करता हो, इंटरनेट न लगा हुआ हो, ऐसे भी गांव है देश में और कुछ ऐसे भी गांव हैं देश में, जहां इक्का-दुक्का किसी के पास मोबाइल है और मान लो यहां से संदेश लिया जा सकता है, तो वो लोगों को इकट्ठा करके जो लाउड स्पीकर है, इसी में लगा दिया करें। छोटा डिब्बा आता है, बाजार में मिलता है। इसकी व्यवस्था जो बाजारों में रहते हैं, तहसीलों में रहते हैं उनके लिए करवा दें। वहां की व्यवस्था के लिए भी तरीका बता देता हूं। खर्चा है, तेल का खर्चा है, भेजेंगे तो भाडा-किराया का खर्चा है, तो वो कैसे आयेगा? ये जो 5-5 आदमी तहसीलों के बनाए जाएं और ग्राम सभा ब्लॉकों के बनाए जाएं, उन्हीं में एक-एक आदमी ऐसा बना दिया जाए- ईमानदार आदमी, साफ-सुथरा आदमी देखकर के जो ये समझे कि संगत का पैसा जहर की तरह से है। हम खायेंगे तो ये हमारी जान ले लेगा। ऐसे-ऐसे आदमियों को बना दें और वो थोड़ा-थोड़ा लोगों से ले लेंगे। ये सब काम आपका उसी में हो जाएगा। तो *एक सेवा लेने वाला आदमी भी सब जगह बनवाओ आप। सब जगह बनाया जाए। तहसीलों में जो कमेटी बने, उनमें भी एक सेवा इकठ्ठा करने वाला, हिसाब-किताब रखने वाला, खर्चा करने वाला, वो भी रहे और पूछे किससे? इन पांच लोगों से, जो जिम्मेदार हैं।* पूछ लिया करें कि भाई कौनसा खर्चा जायज है, कौनसा नाजायज है, कहां हमको खर्चा करना है, कहां नही करना है, वो सब बताएंगे। पंच परमेश्वर होते हैं न। पांचों मिलकर के जो राय, फैसला करते हैं, वो फैसला सही होता है। देखो! जजों की भी बेच बैठती है। कई जज होते हैं, जिससे फैसला गलत न हो जाए। इसलिए तो 5 आदमी बनाए जा रहे हैं। फिर उसमें किसी को कहना भी रहेगा कि पैसों का दुरुपयोग हो गया, पैसा इधर-उधर चला गया, मनमानी करते हैं, ऐसा भी नहीं होगा। तो एक सिस्टम ऐसा बनाओ कि जहां आदमी कम हैं, जिन तहसीलों में, 5-5 आदमी बना दो, पूरे तहसीलों में जहां-जहां हैं ,वहां बना दें। जहां पर ज्यादा लोग हैं, जिन-जिन प्रदेशों में, जिस जिले में ज्यादा सतसंगी हैं; वहां गांव स्तर का बना दो। इस पर मेहनत करो आप, इसके लिए मेहनत कर लोगे तो ये साधना शिविर आपकी सफल हो जाएगी। वही लोग लगवा देंगे, वही लोग बैठ जाएंगे, उन्हीं का पूरा परिवार बैठ जाएगा। ये सिस्टम आप लोग बनवाओ। इसी तरह शहरों में बनवा दो। मान लो की शहर बड़ा है, जैसे आपका इंदौर शहर बड़ा है, जयपुर बड़ा है, जैसे लखनऊ (जो राजधानियां हैं) सब जगह बड़ी हैं। ये राजधानी (इंदौर) तो नहीं है, राजधानी तो भोपाल है। लेकिन इंदौर भी राजधानी से कम आबादी का नहीं है। बल्कि ज्यादा ही होगा। केवल यहां विधानसभा ही नहीं है बाकी सारी चीजें यहां कर है। तो इसको चार भागों में बाट दो। शहरों को चार भागों में बाट दो आप। अब यह पता लगाओ कि किस मोहल्ले में, किस भाग में ज्यादा सतसंगी हैं, जिसमें ज्यादा सतसंगी हो, उनको भी चार भागों में बाट दो और उनमें भी 5-5 जिम्मेदार बना दो। 5-5 बना दो और एक सेवा इकट्ठा करने वाला बना दो और जब इस तरह से बन जाए तो उन्हीं को समझा दो, जिम्मेदारी दे दो कि आप लोग लोगों से संपर्क करो, इकट्ठा करो, मीटिंग करो लोगों की, वहां चले जाओ, फोन से बात करके, जो जैसे भी हो साधना शिविर लगवाओ तो लग जाएगा।
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