
VARTAMAN KRANTI news24
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सच के लिए बेखौफ बेबाक जंग https://youtube.com/@vartamankrantinews24?si=cazANTrKEVwkw_mH
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"अति सुन्दर, सनातन घड़ी" 12:00 बजने के स्थान पर "आदित्य" लिखा हुआ है, जिसका अर्थ यह है कि सूर्य 12 प्रकार के होते हैं। "ll💅ll" 1:00 बजने के स्थान पर "ईश्वर" लिखा हुआ है इसका अर्थ यह है कि ईश्वर एक ही प्रकार का होता है। एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति। "ll💅ll" 2:00 बजने की स्थान पर "पक्ष" लिखा हुआ है जिसका तात्पर्य यह है कि पक्ष दो होते हैं 1 कृष्ण पक्ष औऱ दूसरा शुक्ल पक्ष। "ll💅ll" 3:00 बजने के स्थान पर "अनादि तत्व" लिखा हुआ है जिसका तात्पर्य यह है कि अनादि तत्व 3 हैं। परमात्मा, जीवात्मा और प्रकृति ये तीनों तत्व अनादि है , "ll💅ll" 4:00 बजने के स्थान पर "वेद" लिखा हुआ है जिसका तात्पर्य यह है कि वेद चार प्रकार के होते हैं -- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। "ll💅ll" 5:00 बजने के स्थान पर "महाभूत" लिखा हुआ है जिसका तात्पर्य है कि महाभूत पांच प्रकार के होते हैं। पांच महाभूत हैं :- सत्वगुण, रजगुण, कर्म, काल, स्वभाव" "ll💅ll" 6:00 बजने के स्थान पर "दर्शन" लिखा हुआ है इसका तात्पर्य है कि दर्शन 6 प्रकार के होते हैं । छः दर्शन सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदान्त के नाम से विदित है। "ll💅ll" 7:00 बजे के स्थान पर "धातु" लिखा हुआ है, इसका तात्पर्य है कि धातु 7 हैं। सात धातुओं के नाम :- रस : प्लाज्मा रक्त : खून (ब्लड) मांस : मांसपेशियां मेद : वसा (फैट) अस्थि : हड्डियाँ मज्जा : बोनमैरो शुक्र : प्रजनन संबंधी ऊतक "ll💅ll" 8:00 बजने के स्थान पर "अष्टांग योग" लिखा हुआ है इसका तात्पर्य है कि योग के आठ प्रकार* होते है। योग के आठ अंग हैं :- 1) यम, २) नियम, ३) आसन, ४) प्राणायाम, ५) प्रत्याहार, ६) धारणा ७) ध्यान ८) समाधि "ll💅ll" 9:00 बजने के स्थान पर "अंक" लिखा हुआ है इसका तात्पर्य है कि अंक 9 प्रकार के होते हैं। 1 2 3 4 5 6 7 8 9. "ll💅ll" 10:00 बजने के स्थान पर "दिशाएं" लिखा हुआ है इसका तात्पर्य है कि दिशाएं 10 होती है। "ll💅ll" 11:00 बजने के स्थान पर "उपनिषद" लिखा हुआ है इसका तात्पर्य है कि उपनिषद 11 प्रकार के होते हैं।


जौनपुर के अमर शहीद उमानाथ सिंह ज़िला अस्पताल में किन्नरों का तांडव अर्धनग्न हो करके की ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर व स्टाफ की पिटाई....अस्पताल में भर्ती साथी किन्नर से हुआ था विवाद...वीडियो वायरल..किन्नरों ने अस्पताल में घुसकर की डॉक्टर और स्टाफ की पिटाई,भगा भगा कर की मारपीट........इस घटना से अस्पताल के डॉक्टर और स्टाफ काफी डरे हुए हैं और उनमें इसे लेकर रोष भी व्याप्त है .

अमृतसर में हिन्दुओ और सिखों की लाशों से भरी ट्रैन आती थी लिखा रहता था, "ये आज़ादी का नजराना" पहली ट्रेन पाकिस्तान से (15.8.1947)😢 अमृतसर का लाल इंटो वाला रेलवे स्टेशन अच्छा खासा शरणार्थियों कैम्प बना हुआ था । पंजाब के पाकिस्तानी हिस्से से भागकर आये हुए हज़ारों हिन्दुओ-सिखों को यहाँ से दूसरे ठिकानों पर भेजा जाता था ! वे धर्मशालाओं में टिकट की खिड़की के पास, प्लेट फार्मों पर भीड़ लगाये अपने खोये हुए मित्रों और रिश्तेदारों को हर आने वाली गाड़ी मै खोजते थे... 15 अगस्त 1947 को तीसरे पहर के बाद स्टेशन मास्टर छैनी सिंह अपनी नीली टोपी और हाथ में सधी हुई लाल झंडी का सारा रौब दिखाते हुए पागलों की तरह रोती-बिलखती भीड़ को चीरकर आगे बढे...थोड़ी ही देर में 10 डाउन, पंजाब मेल के पहुँचने पर जो द्रश्य सामने आने वाला था,उसके लिये वे पूरी तरह तैयार थे....मर्द और औरतें थर्ड क्लास के धूल से भरे पीले रंग के डिब्बों की और झपट पडेंगे और बौखलाए हुए उस भीड़ में किसी ऐसे बच्चे को खोजेंगे, जिसे भागने की जल्दी में पीछे छोड़ आये थे ! चिल्ला चिल्ला कर लोगों के नाम पुकारेंगे और व्यथा और उन्माद से विहल होकर भीड़ में एक दूसरे को ढकेलकर-रौंदकर आगे बढ़ जाने का प्रयास करेंगे ! आँखो में आँसू भरे हुए एक डिब्बे से दूसरे डिब्बे तक भाग भाग कर अपने किसी खोये हुए रिश्तेदार का नाम पुकारेंगे! अपने गाँव के किसी आदमी को खोजेंगे कि शायद कोई समाचार लाया हो ! आवश्यक सामग्री के ढेर पर बैठा कोई माँ बाप से बिछडा हुआ कोई बच्चा रो रह होगा, इस भगदड़ के दौरान पैदा होने वाले किसी बच्चे को उसकी माँ इस भीड़-भाड़ के बीच अपना ढूध पिलाने की कोशिश कर रही होगी.... स्टेशन मास्टर ने प्लेट फार्म एक सिरे पर खड़े होकर लाल झंडी दिखा ट्रेन रुकवाई ....जैसे ही वह फौलादी दैत्याकार गाड़ी रुकी, छैनी सिंह ने एक विचित्र द्रश्य देखा..चार हथियार बंद सिपाही, उदास चेहरे वाले इंजन ड्राइवर के पास अपनी बंदूकें सम्भाले खड़े थे !! जब भाप की सीटी और ब्रेको के रगड़ने की कर्कश आवाज बंद हुई तो स्टेशन मास्टर को लगा की कोई बहुत बड़ी गड़बड़ है...प्लेट फार्म पर खचाखच भरी भीड़ को मानो साँप सुंघ गया हो..उनकी आँखो के सामने जो द्रश्य था उसे देखकर वह सन्नाटे में आ गये थे ! स्टेशन मास्टर छेनी सिंह आठ डिब्बों की लाहौर से आई उस गाड़ी को आँखे फाड़े घूर रहे थे! हर डिब्बे की सारी खिड़कियां खुली हुई थी, लेकिन उनमें से किसी के पास कोई चेहरा झाँकता हुआ दिखाई नहीँ दे रहा था, एक भी दरवाजा नहीँ खुला.. एक भी आदमी नीचे नहीँ उतरा,उस गाड़ी में इंसान नहीँ भूत आये थे..स्टेशन मास्टर ने आगे बढ़कर एक झटके के साथ पहले डिब्बे के द्वार खोला और अंदर गये..एक सेकिंड में उनकी समझ में आ गया कि उस रात न.10 डाउन पंजाब मेल से एक भी शरणार्थी क्यों नही उतरा था.. वह भूतों की नहीँ बल्कि लाशों की गाड़ी थी..उनके सामने डिब्बे के फर्श पर इंसानी कटे-फटे जिस्मों का ढेर लगा हुआ था..किसी का गला कटा हुआ था.किसी की खोपडी चकनाचूर थी ! किसी की आते बाहर निकल आई थी...डिब्बों के आने जाने वाले रास्ते मे कटे हुए हाथ-टांगे और धड़ इधर उधर बिखरे पड़े थे..इंसानों के उस भयानक ढेर के बीच से छैनी सिंह को अचानक किसी की घुटी.घुटी आवाज सुनाई दी ! यह सोचकर की उनमें से शायद कोई जिन्दा बच गया हो उन्होने जोर से आवाज़ लगाई.. "अमृतसर आ गया है यहाँ सब हिंदू और सिख है. पुलिस मौजूद है, डरो नहीँ"..उनके ये शब्द सुनकर कुछ मुरदे हिलने डुलने लगे..इसके बाद छैनी सिंह ने जो द्रश्य देखा वह उनके दिमाग पर एक भयानक स्वप्न की तरह हमेशा के लिये अंकित हो गया ...एक स्त्री ने अपने पास पड़ा हुआ अपने पति का 'कटा सर' उठाया और उसे अपने सीने से दबोच कर चीखें मारकर रोने लगी... उन्होंने बच्चों को अपनी मरी हुई माओ के सीने से चिपट्कर रोते बिलखते देखा..कोई मर्द लाशों के ढेर में से किसी बच्चे की लाश निकालकर उसे फटी फटी आँखों से देख रहा था..जब प्लेट फार्म पर जमा भीड़ को आभास हुआ कि हुआ क्या है तो उन्माद की लहर दौड़ गयी... स्टेशन मास्टर का सारा शरीर सुन्न पड़ गया था वह लाशों की कतारो के बीच गुजर रहा था...हर डिब्बे में यही द्रश्य था अंतिम डिब्बे तक पहुँचते पहुँचते उसे मतली होने लगी और जब वह ट्रेन से उतरा तो उसका सर चकरा रहा था उनकी नाक में मौत की बदबू बसी हुई थी और वह सोच रहे थे की रब ने यह सब कुछ होने कैसे दिया ? जिहादी कौम इतनी निर्दयी हो सकती है कोई सोच भी नहीँ सकता था....उन्होने पीछे मुड़कर एक बार फ़िर ट्रेन पर नज़र डाली...हत्यारों ने अपना परिचय देने के लिये अंतिम डिब्बे पर मोटे मोटे सफेद अक्षरों से लिखा था....."यह गाँधी और नेहरू को हमारी ओर से आज़ादी का नज़राना है " ! हिन्दुओ और सिखों की लाखों लाशों पर बनी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठकर नेहरू ने इस देश पर शासन किया।।।। भीष्म साहनी के उपन्यास से एक अंश,,...


पति की मृत्यु के बाद ही उसकी विधवा को एक कटोरा भांग और धतूरा पिलाकर नशे में मदहोश कर दिया जाता था। जब वह श्मशान की ओर जाती थी, कभी हँसती थी, कभी रोती थी और तो कभी रास्ते में जमीन पर लेटकर ही सोना चाहती थी और यही उसका सहमरण (सती) के लिए जाना था। इसके बाद उसे चिता पर बैठा कर कच्चे बांस की मचिया बनाकर दबाकर रखा जाता था क्योंकि डर रहता था कि शायद दाह होने वाली नारी दाह की यंत्रणा न सह सके। चिता पर बहुत अधिक राल और घी डालकर इतना अधिक धुआँ कर दिया जाता था कि उस यंत्रणा को देखकर कोई डर न जाए और दुनिया भर के ढोल, करताल और शंख बजाए जाते थे कि कोई उसका चिल्लाना,रोना-धोना,अनुनय-विनय न सुनने पाए। बस यही तो था सहमरण......" सतीप्रथा । सतीप्रथा से छुटकारा दिलाने वाले लोर्ड विलियम बेन्टीक और राजा राममोहन राय को सलाम।

हमारे बुजर्ग वैज्ञानिक रूप से बहुत आगे थे। अब हमें थक हार कर वापिस उनकी ही राह पर आना पड़ रहा है। 1. मिट्टी के बर्तनों से स्टील और प्लास्टिक के बर्तनों तक और फिर कैंसर के खौफ से दोबारा मिट्टी के बर्तनों तक आ जाना। 2. अंगूठा छाप से दस्तखतों (Signatures) पर और फिर अंगूठा छाप (Thumb Scanning) पर आ जाना। 3. फटे हुए सादा कपड़ों से साफ सुथरे और प्रेस किए कपड़ों पर और फिर फैशन के नाम पर अपनी पैंटें फाड़ लेना। 4. सूती से टैरीलीन, टैरीकॉट और फिर वापस सूती पर आ जाना। 5. ज्यादा मशक़्क़त वाली ज़िंदगी से घबरा कर पढ़ना लिखना और फिर IIM MBA करके आर्गेनिक खेती पर पसीने बहाना। 6. क़ुदरती से प्रोसेसफ़ूड (Canned Food & packed juices) पर और फिर बीमारियों से बचने के लिए दोबारा क़ुदरती खानों पर आ जाना। 7. पुरानी और सादा चीज़ें इस्तेमाल ना करके ब्रांडेड (Branded) पर और फिर आखिरकार जी भर जाने पर पुरानी (Antiques) पर उतरना। 8. बच्चों को इंफेक्शन से डराकर मिट्टी में खेलने से रोकना और फिर घर में बंद करके फिसड्डी बनाना और होश आने पर दोबारा Immunity बढ़ाने के नाम पर मिट्टी से खिलाना। 9. गाँव, जंगल से डिस्को पब और चकाचौंध की और भागती हुई दुनियाँ की और से फिर मन की शाँति एवं स्वास्थ के लिये शहर से जँगल गाँव की ओर आना। इससे ये निष्कर्ष निकलता है कि टेक्नॉलॉजी ने जो दिया उससे बेहतर तो प्रकृति ने पहले से दे रखा था

*छह वर्ष के अंत तक दुनिया की 45% लड़कियां कुंवारी रह जायेगी* ✒️(लेखक - अनजान) लड़कियों के विवाह में होनेवाली देरी समाज के लिए चिंता का विषय है। भविष्य में अनेक लड़कियां कुंवारी रह जायेगी। मैं यह बात तीन वर्ष से लिख रहा हूँ और ग्रुप में भी प्रेषित करता आया हूँ। यही बात एक अतंर्राष्ट्रीय सर्वे से सामने आई है। 1फरवरी 2025 के लोकमत पेपर में यह सर्वे रिपोर्ट छपी है। *मॉर्गन स्टेनली इस संस्था ने लड़कियों के विवाह संबंध में अतंर्राष्ट्रीय स्तर पर यह सर्वे किया है। इस सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि छह वर्ष के अंत तक दुनिया की 45℅ लड़कियां कुँवारी रह जायेगी।* कारण यह दिया गया कि वर्तमान में उच्च शिक्षित लड़कियों का प्रमाण अधिक है। वे लड़कियां अपने करियर को अधिक महत्व दे रही है। अपनी प्रगति उनके लिए महत्वपूर्ण है। वे किसी पर डिपेंड रहना नही चाहती। उन्हें स्वतंत्रता चाहिए, किसी के बंधन में रहना उन्हें पसंद नही है। वे अपने निर्णय खुद लेती है व अपनी मर्जी से जीवन जीना चाहती है। शादी के बंधन में वे बंधना नही चाहती। आज अनेक बड़ी-बड़ी कंपनियों में ऊंचे-ऊंचे पदों पर लड़कियां काम कर रही है, उनको बड़े-बड़े पैकेज भी है। आज हर क्षेत्र में लड़कियां सफलता के झन्डे गाड़ रही है व नए नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है, लेकिन विवाह की उम्र गुजर जाने के बाद भी उनका विवाह नही हुआ है। पढ़ाई करते करते, फिर जॉब करने के चक्कर में, फिर रिश्ता ढूंढते ढूंढते लड़कियों की उम्र बढ़ रही है। बड़ी उम्र में उच्चशिक्षित लड़कियों को विवाह के लिए समकक्ष रिश्ता मिलना कठिन हो जाता है। उम्र बढ़ जाने के बाद लड़कियों की विवाह करने में रुचि कम हो जाती है। यह जानकर आप चौक जाएंगे कि इसके अनेक उदाहरण सामने आ रहे है। विवाह करना, बच्चे को जन्म देना इसे वे अपनी प्रगति में बाधा समझती है। लड़कियों की इस मानसिकता के दूरगामी परिणाम होंगे। समाज का ताना-बाना ही छिन्न-भिन्न हो जायेगा। परिवारवाद की कल्पना ही ढह जायेगी। शादी नही तो बच्चे भी नही होंगे। वृद्धावस्था में उन्हें सम्भालने वाला कोई नही होगा। फिर आपकी यह प्रगति, पद, पैसा किस काम का? व्रद्धाश्रम में रहने के लिए वे मजबूर होगी। यह स्पष्ट दिख रहा है कि भविष्य में स्थिति अत्यंत विकट होगी। बंधुओं एक वर्ग के लड़कीवालों के रवैये से मैं अत्यंत चिंतित हूँ। मैने समाज के सामने अपनी चिंता बार-बार व्यक्त की है। मैं अभिभावकों से आवाहन करता हूँ कि वे भविष्य के इस संकट को पहचाने। यह कहने की जरूरत नही कि लड़कियां कुंवारी रही तो उसका ही परिणाम होगा कि लड़के भी कुँवारे रहेंगे। अपनी जनसंख्या भी घटेंगी। ऐसे कुछ उदाहरण मेरे सामने है कि लड़की के माँ-बाप रिश्ता तो ढूंढ रहे है लेकिन लड़की की शादी करने में रुचि ही नही है। इसीलिए लड़की हर रिश्ते को नापसंद करती है। समाज का एक बड़ा वर्ग इस वास्तविकता से अनजान है, उन्हें भविष्य के इस संकट से चेताने की आवशयकता है। लड़कियों का विवाह 23 से 26 वर्ष की उम्र में ही हो इसके लिए समाज में विशेष प्रयास किये जाने चाहिए।