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राजस्थान जीके (Rajasthan GK )

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राजस्थान जीके (Rajasthan GK )
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2/5/2025, 1:43:19 AM

किस चौहान राजा की उपाधि ' प्रताप लंकेश्वर ' थी।

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2/5/2025, 6:38:50 AM

https://medium.com/@ramjivansuthar279/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%BE-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5-%E0%A4%9C%E0%A5%80-8466a55bbf49

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2/3/2025, 6:45:59 AM

[9] विग्रहराज 4 (1153 - 63) इतिहासकार दशरथ शर्मा के अनुसार इसका शासन काल अजमेर चौहानों का स्वर्णकाल था । इसने गजनी के राजा खुसरोशाह को हराया था। बिजौलिया अभिलेख के अनुसार दिल्ली(ढिल्लिका) पर विजय प्राप्त की थी, तथा अब दिल्ली के तोमर चौहानों के सामंत बन गए । अशोक का टोपरा अभिलेख (हरियाणा) जो 7 पंक्तियों में है ओर इस अभिलेख के ठीक नीचे विग्रहराज ने दिल्ली शिवालिक स्तम्भ लेख लगवाया था। अपने दरबारी विद्वान धर्मघोष सूरी के कहने पर इसने एकादशी पर पशुहत्या पर रोक लगा दी गई। इसने अजमेर में सरस्वती कण्ठाभरण नामक संस्कृत पाठशाला की स्थापना की कालांतर में कुतुबद्दीन ऐबक ने इस पाठशाला को तोड़ दिया तथा इसे मस्जिद में बदल दिया जिसे " अढ़ाई दिन का झोपड़ा" कहा जाता हैं। इस मस्जिद के पास पीरपंजाब शाह का अढ़ाई दिन उर्स मनाया जाता है। इसने ' हरकेली ' तथा ' किरातार्जुनीयम् ' पर आधारित है । इसने हरकेली तथा ललित विग्रहराज की पंक्तियां संस्कृत पाठशाला के दीवारों पे लिखाई गई। इसने बीसलपुर (टोंक) नगर की स्थापना की थी तथा यहां पर तलब और शिव मंदिर का निर्माण कराया था। दरबारी विद्वान सोमदेव ने ' ललित विग्रहराज' रचना की इस पुस्तक में विग्रहराज 4 तथा रानी देसलदेवी की प्रेम कहानी का वर्णन है तथा इसके अनुसार गजनी के राजा खुसरोशाह को हराया था। विग्रहराज 4 की उपाधियां (1) बिसलदेव, (2) कवि बंधु (पृथ्वीराज विजय के अनुसार) [10] अपरगांग्य यह विग्रहराज 4 का बेटा था।तथा इसके जगदेव के बेटे पृथ्वीराज2 ने हटा दिया।

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2/5/2025, 1:36:27 AM

पृथ्वीराज रासौ पुस्तक किसकी हैं ?

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2/3/2025, 8:16:01 AM

[1/2, 7:31 pm] RAMJEEVAN SUTHAR: [13] पृथ्वीराज 3 माता= कर्पूरी देवी, पिता= सोमेश्वर पृथ्वीराज 11 वर्ष की उम्र में राजा बना था, इस समय इसकी माता कर्पूरी देवी संरक्षिका बनी । 1182 ई. में मथुरा, अलवर तथा भरतपुर क्षेत्रों में इसने भंडानक जनजाति का विद्रोह दबाया था, यह जानकारी जिनपति सूरी की पुस्तक से मिलती है। [1/2, 9:02 pm] RAMJEEVAN SUTHAR: महोबा का युद्ध =1182ई. पृथ्वीराज 3 V/S परमार्दिदेव चंदेल (महोबा) युद्ध के कारण परमार्दिदेव चंदेल ने पृथ्वीराज के घायल सैनिकों को मरवा दिया था। इस युद्ध में पृथ्वीराज की विजय हुई तथा पृथ्वीराज ने पंजबनराय को महोबा का प्रशासक बना दिया। तथा परमार्दिदेव चंदेल के सेनापति= आल्हा और उदल इस युद्ध में शहीद हुए थे। नागौर का युद्ध =1184 ई. पृथ्वीराज 3 V/S भीम 2 चालुक्य (गुजरात) युद्ध के कारण - दोनों अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहते थे , और चौहानों व चालुक्य में लंबे समय से दुश्मनी चली आ रही थी।, तथा दोनों आबू के परमारो की राजकुमारी इच्छिनी देवी से विवाह करना चाहते थे तथा पृथ्वीराज 3 ने शादी कर दी थी। जगदेव प्रतिहार ने इन दोनों के बीच संधि कर दी। [2/2, 2:05 pm] RAMJEEVAN SUTHAR: चौहान - गहड़वाल विवाद यह विवाद पृथ्वीराज चौहान और कन्नौज के जयचंद के मध्य हुआ । विवाद के कारण - दिल्ली का उतराधिकार तथा जयचंद पृथ्वीराज के खिलाफ परमार्दिदेव चंदेल की सहायता कर रहा था । पृथ्वीराज ने जयचंद की बेटी संयोगिता का अपहरण कर उसे विवाह कर लिया था। [इतिहासकार दशरथ शर्मा ने इस प्रेम कहानी को ऐतिहासिक तथ्य के रूप में स्वीकार किया। तराइन का प्रथम युद्ध -1191ई यह युद्ध पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गोरी के बीच हुआ । युद्ध के कारण - 1 गोरी अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था 2 गजनी के राजाओं और चौहानों के बीच लंबे समय से दुश्मनी चली आ रही थी। 3 तात्कालिक कारण - गोरी ने तबर हिंद [भटिंडा ] पर कब्जा कर लिया था। इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की जीत हुई। दिल्ली के गोविंदराज तोमर ने गोरी को घायल कर दिया। तराइन का दूसरा युद्ध -1192 पृथ्वीराज 3 V/ S गोरी [गजनी] सा युद्ध में गोरी जीत गया । पृथ्वीराज को सिरसा के सरस्वती नामक स्थान से गिरफ्तार किया तथा उसे मार दिया गया। हसन निजामी के अनुसार पृथ्वीराज ने कुछ दिनों तक गोरी के अधीन शासन किया था। हसन निजामी की पुस्तक -ताज उल मासिर। पृथ्वीराज के हार के कारण - 1 पृथ्वीराज के अपने पड़ोसी राज्यों के साथ मतभेद था अत: किसी भी राजा ने गोरी के खिलाफ कोई भी सहायता नहीं की । 2 तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज की सेना गौरी के मुकाबले कम थी क्योंकि उनके अधिकतर सेनापति अन्य सीमा पर व्यस्त थे। 3 तराइन के पहले युद्ध के बाद पृथ्वीराज ने गौरी को युद्ध की तैयारी के लिए पर्याप्त समय दे दिया । 4 गौरी एक अच्छा सेनापति था तथा उसने अपनी कूटनीति से पृथ्वीराज को हरा दिया था। 5 तुर्कों ने घोड़ों का प्रयोग किया था जबकि राजपूतों ने हाथियों का प्रयोग किया। 6 तुर्कों ने राजपूतों के अपेक्षा हल्के हथियारों का प्रयोग किया। तराइन युद्ध की प्रभाव - 1 पृथ्वीराज की हार के बाद गौरी के उतराधिकारियों के लिए भारत में राज करना आसान हो गया। 2 राजपूतों की उभरती हुई राजनीतिक महत्वाकांक्षा समाप्त हो गई तथा पृथ्वीराज के बाद कोई भी राजपूत राजा दोहरा दिल्ली पर अधिकार नहीं कर पाया । 3 भारत में विदेशी शासन का सिलसिला प्रारंभ हुआ जो कि 1947 तक चलता रहा। 4 तुर्क शासन की स्थापना के कारण भारतीय कला व संस्कृति पर सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव दिखाई दिए - [A] सकारात्मक प्रभाव - 1भारत में इंडो-इस्लामिक नामक एक साझी संस्कृति का उदय हुआ। जिस के प्रभाव स्थापत्य कला,साहित्य,संगीत तथा चित्रकला पर देखे गए। 2भारत में सूफी व भक्ति आंदोलन प्रारंभ हुए। [B] नकारात्मक प्रभाव - 1तर्कों ने हिंदू मंदिरों तथा बौद्ध मठों को तोड़ा जिससे कला व संस्कृति का नुकसान हुआ। 2 1200ई . के बाद बौद्ध संस्कृति भारत से लगभग समाप्त हो गई। 3 तुर्क आक्रमणकारियों ने विद्या केंद्रों को नष्ट किया जिससे शिक्षा का पतन हुआ। [2/2, 2:41 pm] RAMJEEVAN SUTHAR: इसने कला एवं संस्कृति विभाग की स्थापना की तथा उसका मंत्री पद्मनाथ को बनाया। इसने दिल्ली के पास पिथौरागढ़ नामक किले का निर्माण करवाया था।इसलिए इसे पृथ्वीराज को राय पिथौरा कहते हैं ।और इसके दरबार में कई विद्वान रहते थे जिसमें चंदबरदाई ( पुस्तक = पृथ्वीराज रासो), जयानक (पुस्तक= पृथ्वीराज विजय) , वागीश्वर जनार्दन, विद्यापति गौड़, विश्वरूप, आशाधर आदि । पृथ्वीराज चौहान के मंत्री जैसे कदम्बवास , भुवनमल, स्कन्द, वामन, सोढ़ आदि। उपाधि= दलपुंगल, राय पिथौरा || [14] गोविंदराज इसने तर्कों की अधीनता स्वीकार कर ली तथा अजमेर का राजा बन गया। बाद में इसके चाचा हरिराज ने इसे हटा दिया तथा यह रणथंभोर का राजा बन गया। [15] हरिराज इसने अपने सेनापति चतराज को दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए भेजा लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा । तथा कुतुबद्दीन ऐबक ने अजमेर पर आक्रमण किया तथा उसने हरिराज को हरा दिया तथा हरिराज ने आत्महत्या कर ली। अत: यह अजमेर चौहानों का अंतिम शासक था।

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2/2/2025, 2:48:04 PM

अजमेर के चौहान वंश का इतिहास इस लिंक को क्लिक करें और सुने और पढ़ें

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2/5/2025, 6:39:10 AM
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2/2/2025, 7:27:04 AM
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2/2/2025, 2:46:37 PM

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2/5/2025, 1:31:40 AM

[1/2, 1:24 pm] RAMJEEVAN SUTHAR: [9] विग्रहराज 4 (1153 - 63) इतिहासकार दशरथ शर्मा के अनुसार इसका शासन काल अजमेर चौहानों का स्वर्णकाल था । इसने गजनी के राजा खुसरोशाह को हराया था। बिजौलिया अभिलेख के अनुसार दिल्ली(ढिल्लिका) पर विजय प्राप्त की थी, तथा अब दिल्ली के तोमर चौहानों के सामंत बन गए । अशोक का टोपरा अभिलेख (हरियाणा) जो 7 पंक्तियों में है ओर इस अभिलेख के ठीक नीचे विग्रहराज ने दिल्ली शिवालिक स्तम्भ लेख लगवाया था। अपने दरबारी विद्वान धर्मघोष सूरी के कहने पर इसने एकादशी पर पशुहत्या पर रोक लगा दी गई। इसने अजमेर में सरस्वती कण्ठाभरण नामक संस्कृत पाठशाला की स्थापना की कालांतर में कुतुबद्दीन ऐबक ने इस पाठशाला को तोड़ दिया तथा इसे मस्जिद में बदल दिया जिसे " अढ़ाई दिन का झोपड़ा" कहा जाता हैं। इस मस्जिद के पास पीरपंजाब शाह का अढ़ाई दिन उर्स मनाया जाता है। इसने ' हरकेली ' तथा ' किरातार्जुनीयम् ' पर आधारित है । इसने हरकेली तथा ललित विग्रहराज की पंक्तियां संस्कृत पाठशाला के दीवारों पे लिखाई गई। इसने बीसलपुर (टोंक) नगर की स्थापना की थी तथा यहां पर तलब और शिव मंदिर का निर्माण कराया था। दरबारी विद्वान सोमदेव ने ' ललित विग्रहराज' रचना की इस पुस्तक में विग्रहराज 4 तथा रानी देसलदेवी की प्रेम कहानी का वर्णन है तथा इसके अनुसार गजनी के राजा खुसरोशाह को हराया था। विग्रहराज 4 की उपाधियां (1) बिसलदेव, (2) कवि बंधु (पृथ्वीराज विजय के अनुसार) [10] अपरगांग्य यह विग्रहराज 4 का बेटा था।तथा इसके जगदेव के बेटे पृथ्वीराज2 ने हटा दिया। [1/2, 7:22 pm] RAMJEEVAN SUTHAR: [11] पृथ्वीराज 2 1167 ई. के हांसी अभिलेख के अनुसार इसने यहां पर एक किले का निर्माण कराया तथा अपने मामा गुहिल किल्हण की नियुक्ति की थी। 1168 ई. के रूठी रानी मन्दिर ( शिव मंदिर) के धौड़ अभिलेख (भीलवाड़ा) के अनुसार इसने अपने राज्य को बाहुबल से प्राप्त किया, इस अभिलेख में इसकी एक रानी सुहाव देवी का नाम भी मिलता है। इसने मेनल(भीलवाड़ा) में सुरेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया । [12] सोमेश्वर इसका बचपन गुजरात में बीता था। इन कोंकण के राजा मल्लिकार्जुन को हराया क्योंकि यह कुमारपाल चालुक्य का शत्रु था। रानी= कर्पूरी देवी ( चेदी के राजा अचलराज कलचुरी की राजकुमारी थी।) इसने अजमेर में अपनी ओर पिता अर्णोराज की मूर्तियां लगाई। तथा इसने अजमेर में वैद्यनाथ मंदिर का निर्माण करवाया । इसी राजा के शासन काल में बिजौलिया अभिलेख 1170 ई. लगवाया गया। इस अभिलेख के अनुसार इसने पार्श्वनाथ मंदिर को रैवाणा नामक गांव दान में दिया।और इस अभिलेख में इसे "प्रताप लंकेश्वर" नामक उपाधि दी गई है।

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