
निलेश चौधरी
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About निलेश चौधरी
भाग्य में विश्वास रखने के बजाए अपनी शक्ति और कर्म में विश्वास रखना चाहिए। * बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। * जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है, वो आपके किसी काम की नहीं। * जीवन लंबा होने की बजाए महान होना चाहिए। 💙डॉ बी आर अंबेडकर 💙
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संत कबीर दास जी भारत के महान संत, कवि और समाज सुधारक थे, जिन्होंने 15वीं सदी में अपने विचारों, रचनाओं और दोहों के माध्यम से समाज को एक नई दिशा दी. कबीर दास जी के दोहे आज भी लोगों को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं. मान्यता अनुसार संत कबीर का जन्म वर्ष 1398 में उत्तर प्रदेश के बनारस में हुआ था, हालांकि उनके जन्म स्थान को लेकर lकई मतभेद हैं. वहीं पंचांग के अनुसार, संत कबीर दास की जयंती हर वर्ष ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि पर मनाई जाती है. इस वर्ष पूर्णिमा तिथि 11 जून 2025, दिन बुधवार को पड़ रही है. इसलिए आज संत कबीर दास जी की 648वीं जन्म वर्षगांठ पूरे श्रद्धा भाव के साथ मनाई जाएगी. इस दिन कबीर पंथ के अनुयायी मठों, आश्रमों और सत्संगों में एकत्र होकर दोहों का पाठ, कीर्तन और विचार गोष्ठियों का आयोजन करते हैं. अगर आप भी इस पावन अवसर पर सोशल मीडिया के माध्यम से अपने प्रियजनों को शुभकामनाएं


भगवान बिरसा मुंडा, जिन्हें धरती आबा भी कहा जाता है, की पुण्यतिथि हर साल 9 जून को मनाई जाती है। यह दिन उनके शहादत की याद में मनाया जाता है, जब वे 1900 में अंग्रेजों के खिलाफ उलगुलान (विद्रोह) के दौरान शहीद हुए थे. बिरसा मुंडा आदिवासी समाज के लिए एक महान नेता और स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत थे. बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि का महत्व: शहादत दिवस: 9 जून को बिरसा मुंडा का शहादत दिवस मनाया जाता है, जब वे अंग्रेजों के खिलाफ अपनी जान गंवा दी थी. आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक: बिरसा मुंडा का उलगुलान आदिवासी समाज के लिए स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था. आदिवासी अस्मिता का प्रतीक: बिरसा मुंडा आदिवासियों की अस्मिता और स्वाभिमान के प्रतीक हैं. आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ाई: बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को उनके जल, जंगल और जमीन के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया. जनजातीय गौरव दिवस: बिरसा मुंडा के जन्मदिन (15 नवंबर) को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है. पुण्यतिथि पर किए जाने वाले कार्यक्रम: श्रद्धांजलि समारोह: बिरसा मुंडा के शहादत स्थल पर श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किए जाते हैं. प्रतिमा पर माल्यार्पण: बिरसा मुंडा की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण किया जाता है. बैठकें और सेमिनार: बिरसा मुंडा के जीवन और उनके संघर्ष के बारे में चर्चा और सेमिनार आयोजित किए जाते हैं. सांस्कृतिक कार्यक्रम: बिरसा मुंडा से जुड़ी सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. बिरसा मुंडा का संदेश: बिरसा मुंडा का संदेश है कि आदिवासी समाज को अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए और अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए. उनका उलगुलान आदिवासियों को स्वतंत्रता और स्वाभिमान के लिए प्रेरित करता है.


अद्भुत शौर्य एवं पराक्रम के प्रतीक राष्ट्रभक्ति के प्रेरणास्रोत छत्रपति संभाजी महाराज जी की जयंती पर उन्हें कोटि - कोटि नमन। छत्रपति संभाजी महाराज जी की राष्ट्रभक्ति एवं धर्मनिष्ठा हमें सदैव प्रेरित करती रहेगी। #संभाजी_महाराज #SambhajiMaharaj


सभी देशवासियों को ईद-उल-अज़हा की मुबारकबाद।🌙 ये ईद हमें अपने ईमान को मुश्किल में भी फर्ज़ के प्रति अडिग होने के लिए प्रेरित करता है।🌙 देश में अमन-चैन के लिए प्रार्थना करे🤲🏻।नजराना जन्नत से आया है, खुशियों का खजाना संग लाया है दिल की दुआ है, कुबूल हो हर आरज़ू, बकरीद मुबारक का फरमान आया है!🌙 सभी देशवासियों को ईद-उल-अजहा की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं🌙


स्वच्छ हवा और शुद्ध जल पर ही केवल हमारा अधिकार नहीं, बल्कि इनका संरक्षण करना भी हमारा पहला कर्तव्य है। जब तक पेड़ हैं, तब तक जीवन है – इन्हें काटना नहीं, बचाना सीखिए। पर्यावरण को बचाने की लड़ाई घर से शुरू होती है। जल संरक्षण, कचरा प्रबंधन और वृक्षारोपण इसका महत्वपूर्ण उदाहरण है।


महान त्याग, समर्पण एवं #संघर्ष की प्रतिमूर्ति #बाबासाहेब की जीवनसाथी #माता #रमाबाई #आम्बेडकर जी के महापरिनिर्वाण दिवस पर उन्हें शत शत नमन। हमारी मुस्कान के खातिर आपने बहुत तकलीफ का सामना किया है माँ। हम आपके संघर्षों को कभी नहीं भूला सकते।💐💐💐


शौर्य, पराक्रम और स्वाभिमान की प्रतीक, हिन्दवी स्वराज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज को नमन! ... हर मुश्किल का सामना किया, हर युद्ध को जीता, मराठा साम्राज्य का वह सूर्य, छत्रपति शिवाजी महाराज अमर रहें! ... वीरता, नीति और न्याय के अद्भुत संगम को नमन!🙏🏻 "जब लक्ष्य जीत की हो, तो हासिल करने के लिए कितना भी परिश्रम, कोई भी मूल्य , क्यो न हो उसे चुकाना ही पड़ता है।" - छत्रपति शिवाजी महाराज

यह शख्स हैं जयपुर, राजस्थान में 28 फरवरी 1928 को जन्मे बामसेफ के संस्थापक सदस्य मा० दीना भाना जी. इन्होने बामसेफ संस्थापक अध्यक्ष मान्यवर कांशीराम साहब को बाबासाहब के विचारो से प्रेरित किया. मा० कांशीराम साहब ने बाबा साहब के विचारो को पूरे भारत में फैलाया. आज पूरे देश मे जय भीम, जय मूलनिवासी की जो आग लगी है उसमे चिंगारी लगाने का काम वाल्मीकि समाज के महापुरूष मा० दीना भाना जी ने किया. दीनाभाना जी जिद्दी किस्म के शख्स थे. बचपन मे उनके पिताजी सवर्णों के यहां दूध निकालने जाते थे इससे उनके मन मे भी भैंस पालने की इच्छा हुई उन्होने पिताजी से जिद्द करके एक भैस खरीदवा ली लेकिन जातिवाद की वजह से भैस दूसरे ही दिन बेचनी पडी. कारण ? जिस सवर्ण के यहा उनके पिताजी दूध निकालने जाते थे उससे देखा नहीं गया उनके पिताजी को बुलाकर कहा तुम छोटी जाति के लोग हमारी बराबरी करोगे तुम भंगी लोग सुअर पालने वाले भैस पालोगे यह भैस अभी बेच दो उनके पिता ने अत्यधिक दबाब के कारण भैस बेच दी. यह बात दीनाभाना जी के दिल मे चुभ गयी उन्होने घर छोड दिया और दिल्ली भाग गए. वहां उन्होने बाबासाहब के भाषण सुने और भाषण सुनकर उन्हे यह लगा कि यही वह शख्स है जो इस देश से जातिवाद समाप्त कर सकता है.दीनाभानाजी ने बाबासाहब के विचार जाने समझे और बाबासाहब के निर्वाण के बाद भटकते भटकते पूना आ गये और पूना मे गोला बारूद फैक्टरी (रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन – DRDO) मे सफाई कर्मचारी के रूप मे सर्विस प्रारंभ की. जहां रामदासिया चमार मा० कांशीराम साहब (15.03.1934 – 09.10.2006) रोपड़ (रूपनगर) पंजाब निवासी क्लास वन आॅफिसर थे लेकिन कांशीराम जी को बाबासहाब कौन हैं ? यह पता नही था. उस समय अंबेडकर जयंती की छुट्टी की वजह से दीनाभाना जी ने इतना हंगामा किया कि जिसकी वजह से दीनाभाना जी को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. इस बात पर कांशीराम जी नजर रखे हुये थे उन्होने दीनाभाना जी से पूछा कि यह बाबासाहब कौन हैं जिनकी वजह से तेरी नौकरी चली गयी. दीनाभाना जी व उनके साथी विभाग में ही कार्यरत महार जाति में जन्मे नागपुर, महाराष्ट्र निवासी मा० डी०के० खापर्डे जी (13.05.1939 – 29.02.2000) जो बामसेफ के द्वितीय संस्थापक अध्यक्ष थे, ने कांशीराम जी को बाबासाहब की ‘जाति विच्छेद’ नाम की पुस्तक दी जो कांशीराम जी ने रात भर में कई बार पढ़ी और सुबह ही दीनाभाना जी के मिलने पर बोले दीना तुझे छुट्टी भी और नौकरी भी दिलाऊगा और इस देश मे बाबासाहब की जयंती की छुट्टी न देने वाले की जब तक छुट्टी न कर दूं तब तक चैन से नही बैेठूगा क्योकि यह तेरे साथ साथ मेरी भी बात है तू चुहड़ा है तो मैं भी रामदासिया चमार हूं. कांशीराम साहब ने नौकरी छोड दी और बाबासाहब के मिशन को ‘बामसेफ’ संगठन बनाकर पूरे देश मे फैलाया उसके संस्थापक सदस्य दीनाभाना जी थे. इस महापुरुष का परिनिर्वाण पूना में 29 अगस्त 2006 को हुआ. यदि दीनाभाना जी न होते तो न बामसेफ होता और न ही व्यवस्था परिवर्तन हेतु अंबेडकरवादी जनान्दोलन चल रह होता. इस देश में जय भीम! का नारा भी गायब हो गया होता और न आज ब्राह्मणों की नाक में दम करने वाला जय मूलनिवासी! का नारा होता. सभी वाल्मीकि भाईयो से निवेदन है कि तथाकथित अपने महापुरुष रामायण के रचयिता वाल्मीकि एवं मा० दीनाभान जी संस्थापक सदस्य बामसेफ से प्रेरणा लेकर गंदे और नीच समझे जाने वाले कर्मों को छोड़ने का प्रयास करते हुए शिक्षित बनो! संगठित रहो! संघर्ष करो! के सिध्दांतो पर चल कर अपनी व अपने मूलनिवासी समाज की उन्नति में एक मिसाल कायम करने का भरसक प्रयास करें.

भारत देश सदियों से ही महान साधु संत पीर फकीरों की जन्म भूमि रही है। अनेको महान संतों ने इस धरती पर जन्म लेकर समाज में फैली कुर्तियां, जातिवाद, बड़े छोटे का भेदभाव मिटाया है। ऐसे ही महान पुरुषों में से एक संत रैदास (संत रविदास ) थे, जिन्होंने अपने दोहे और पदों के माध्यम से समाज की धारा का रुख मोड़ दिया। कबीर के समकालीन रविदास ने समाज में फैले जातिवाद को दूर करने में अपने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सन्त शिरोमणी गुरु रविदास जी के 648 वें जन्मदिन की हार्दिक बधाई व शुभकामनाऐ, #गुरु_रविदास का हम सब पर सदा आशिर्वाद बना रहे ( सत नाम )🙏🏼 जय गुरू रविदास महाराज जी नीलेश चौधरी 🙏🙏

संत गाडगे बाबा ने तीर्थस्थानों पर 12 बड़ी-बड़ी धर्मशालाएं इसीलिए स्थापित की थीं ताकि गरीब यात्रियों को वहां मुफ्त में ठहरने का स्थान मिल सके। नासिक में बनी उनकी विशाल धर्मशाला में 500 यात्री एक साथ ठहर सकते हैं। वहां यात्रियों को सिगड़ी, बर्तन आदि भी निःशुल्क देने की व्यवस्था है। दरिद्र नारायण के लिए वे प्रतिवर्ष अनेक बड़े-बड़े अन्नक्षेत्र भी किया करते थे, जिनमें अंधे, लंगड़े तथा अन्य अपाहिजों को कम्बल, बर्तन आदि भी बांटे जाते थे। वे सन् 1905 से 1917 तक वे अज्ञातवास पर रहे। इसी बीच उन्होंने जीवन को बहुत नजदीक से देखा। अंधविश्वासों, बाह्य आडंबरों, रूढ़ियों तथा सामाजिक कुरीतियों एवं दुर्व्यसनों से समाज को कितनी भयंकर हानि हो सकती है, इसका उन्हें भलीभांति अनुभव हुआ। साथ ही उन्होंने धार्मिक आडंबरों का प्रखर विरोध किया था। वे एक सच्चे निष्काम कर्मयोगी थे। धर्म के नाम पर होने वाली पशुबलि के वे प्रबल विरोधी थे। तथा छुआछूत, नशाखोरी, मजदूरों एवं किसानों का शोषण, सामाजिक बुराइयां आदि का भी उन्होंने विरोध किया था। मानवता की भलाई के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले संत गाडगे बाबा 20 दिसंबर 1956 को ब्रह्मलीन हुए।