
🙏🏻आत्मसुख की ओर🕉️
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जिन्दगी में आत्मशांति अति आवश्यक है थोड़ा सा समय अपने अपने लिए जरूर निकाले आत्मसुख की अनुभूति होगी
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जब इन्द्रियाँ और मन शांत होकर निद्राधीन होते हैं, तभी शरीर की थकान मिटती है। इसी प्रकार आत्मध्यान में तल्लीन होना सीख लें, तो सदियों की थकान मिट सकती है।

🌻 जिस तरह भूखा मनुष्य भोजन के सिवाय अन्य किसी बात पर ध्यान नहीं देता है, प्यासा मनुष्य जिस तरह पानी की उत्कंठा रखता है, ऐसे ही विवेकवान साधक परमात्मशांतिरूपी पानी की उत्कंठा रखता है। जहाँ हरि की चर्चा नहीं, जहाँ आत्मा की बात नहीं वहाँ साधक व्यर्थ का समय नहीं गँवाता। जिन कार्यों को करने से चित्त परमात्मा की तरफ जावे ही नहीं, जो कर्म चित्त को परमात्मा से विमुख करता हो, सच्चा जिज्ञासु व सच्चा भक्त वह कर्म नहीं करता।

🌻 जागो.... उठो.... अपने भीतर सोये हुए निश्चयबल को जगाओ। सर्वदेश, सर्वकाल में सर्वोत्तम आत्मबल को अर्जित करो। 🌻 कोई आपके लिए बुरा सोच रहा है और आप उसका बुरा नहीं सोचते हो तो आपके चित्त में जो खुदना था वह बन्द हो गया, पटरियाँ बनना बन्द हो गया तो उसकी द्वेष की गाड़ी आपके चित्त में चलेगी नहीं। सामने वाला कैसा भी व्यवहार करे लेकिन आपके चित्त में उसकी स्वीकृति नहीं है, आप लेते ही नहीं उसके द्वेष की बात को, तो उसका द्वेष आगे चलेगा नहीं ।आपने पटरियाँ बनायी ही नहीं उसके द्वेष की गाड़ी चलने के लिए। 🌻जो अपने सदगुरु को शरीर मानता है या केवल एक जगह मानता है, वह सदगुरु की स्थिति नहीं समझ सकता और उनसे पूरा लाभ भी नहीं ले पाता। 🙏

🌻 ऐसा वचन न बोलो न सुनो जिससे तुम्हारी बरबादी हो, ऐसा वचन किसीको न कहो जिससे किसीकी श्रद्धा की बरबादी हो । 🌻 भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- “हे उद्धव ! तू बदरिकाश्रम चला जा। कोई किसी का नहीं है। कोई किसी के साथ आया नहीं, कोई किसी के साथ जायेगा नहीं। तू बोलता है कि मैं तुम्हारे साथ चलूँ लेकिन तू मेरे साथ आया नहीं, न मैं तेरे साथ आया हूँ। सब अकेले-अकेले जायेंगे। मुझसे तू तत्त्वज्ञान सुन ले। फिर मुझसे तू ऐसा मिलेगा कि बिछुड़ने का दुर्भाग्य ही नहीं आयेगा।” 🌻हरि गुर साध समान चित, नित आगम तत मूल। इन बिच अंतर जिन परौ, करवत सहन कबूल ।। परमात्मा, सद्गुरु और साधु-संतों का हृदय एक समान होता है । यह शास्त्रों का मूल तत्त्व है। इनके बीच कोई अंतर नहीं समझना चाहिए ।