
Al Quraan Roohani Idara
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About Al Quraan Roohani Idara
IS CHANNEL PAR APKO IN SHA ALLAH HAR TARH KI ROOHANI W JISMANI TAKLEEFO KE ILAJ KA TAREEQA BATAYA JAEGA AUR QURAANI WAQIAAT JINSE AKSAR MUSALMAN GHAFIL HAIN PESH KIYE JAENGE APKE ILM ME IZAFE KE LIYE Y CHANNEL BANAYA GAYA LIHAZA ZYADA SE ZYADA ISKE LINK. KO SHARE KAREN AUR DUNIYA W AAKHIRAT KI BHALAIYON KE HAQDAR BANE🤲🏻
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, `"खुद को समझ लेना, दुनिया को समझने का पहला दरवाजा है!"` *लड़का और तीन दरवाजे* 💕💟एक लड़का ज़िंदगी से परेशान होकर जंगल की तरफ निकल गया। वो सोचता रहा: "मैं क्या हूँ? मुझे क्या करना चाहिए? लोग मुझे क्यों नहीं समझते? मैं इतना कमज़ोर क्यों महसूस करता हूँ? ✍️ चलते-चलते वो एक जगह पहुँचा जहाँ सामने तीन दरवाज़े थे। `हर दरवाज़े पर एक तख्ती लगी थी` ✅ पहला दरवाज़ा: "तुम अपना अतीत बदल सकते हो" लड़के ने सोचा: "काश! मैं अपनी गलतियाँ मिटा पाता, अपने दुख मिटा पाता।" वो अंदर गया, लेकिन जैसे ही उसने कोई गलती बदलनी चाही, कुछ और नए दुख पैदा हो गए। उसने समझा: "अतीत को बदलने की चाहत, नए दुख पैदा करती है।" ✅ दूसरा दरवाज़ा: "तुम दूसरों को बदल सकते हो" लड़के ने सोचा: "मेरी माँ ने मुझे नहीं समझा, दोस्त मज़ाक उड़ाते हैं, सबको बदल दूँगा।" वो अंदर गया और दूसरों को बदलने लगा। लेकिन जितना वो दूसरों को बदलता, सब उतने ही नकली और दूर हो जाते। कुछ ने तो उससे रिश्ता ही तोड़ लिया। उसने समझा: "दूसरों को ज़बरदस्ती बदलने की कोशिश, रिश्ते तोड़ देती है।" ✅ तीसरा दरवाज़ा: "तुम खुद को समझ सकते हो" ये दरवाज़ा शांत और खाली था। लड़का बोला: "चलो, ये भी देख लेते हैं।" अंदर सिर्फ एक आईना था। वो आईने के सामने खड़ा हो गया। आईना कुछ नहीं बोला, बस उसकी आँखों में देखता रहा। लड़का रोने लगा। पहली बार उसने खुद से कहा: "मुझे ही बदलने की ज़रूरत है। और मैं ही खुद को समझकर सब ठीक कर सकता हूँ।" ✍️ *सबक:* हम अक्सर अतीत या दूसरों को बदलने में उलझ जाते हैं, लेकिन असली ताकत खुद को समझने और बेहतर करने में है।

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✍🏻तालाब हमेशा कुएं से सैकड़ो गुना बड़ा होता है फिर भी लोग कुएं का पानी ही पीते हैं क्योंकि कुएं में गहराई और पाकीज़गी होती है इंसान का अजीम होना अच्छी बात है लेकिन उसकी शख्सियत में गहराई और ख्यालात में पाकीज़गी भी होनी चाहिए तब वह सही माअ़नो में अजी़म बनता है

*23 लाख वर्ग मील पर अमीरुल मोमिनीन, जिन्हें देखकर शैतान रास्ता बदल लेता!* *वह जो फारूक अज़म हैं। अब्दुल्लाह बिन शद्दाद कहते हैं कि मैंने पिछली सफों में नमाज़-ए-फ़जर अदा करते हुए सय्यदना उमर रज़ी अल्लाहु अन्हु की आहें सुनीं, आप यह आयत पढ़ रहे थे: {إِنَّمَا أَشْكُو بَثِّي وَحُزْنِي إِلَى اللَّهِ}* *मैं अपने ग़मों और दुखड़ों का रोना अपने अल्लाह ही से रोता हूँ!“ (मुसन्निफ़ इब्न अबी शैबा: 3565)* *हम पहले बन्दे के पास जाते हैं वहाँ से ठुकराए जाते हैं फिर अल्लाह के पास जाते हैं... जो सिर्फ़ वक़्त पड़ने पर अल्लाह को याद करता है यह हो सकता है कि वह दोनों* *सूरतों में फिर ग़ाफ़िल हो जाए। मिल गया तब भी! न मिला तब भी! क्योंकि वह तो सिर्फ़ मतलब के वक़्त ही रुजू करता है। आसानी और सुहूलतों में अल्लाह को याद रखो, वह मुश्किलात और तकलीफ़ों में तुम्हें याद रखेगा।*

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