
आप और हम(आयुर्वेद)- डा शवेता रस्तोगी
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"मौत को छोड कर हर मर्ज की दवाई है कलौंजी"-डा•शवेता रस्तोगी कलयुग में धरती पर संजीवनी है कलौंजी, अनगिनत रोगों को चुटकियों में ठीक करती है। [A] कैसे करें इसका सेवन? कलौंजी के बीजों का सीधा सेवन किया जा सकता है। एक छोटा चम्मच कलौंजी को शहद में मिश्रित करके इसका सेवन करें। पानी में कलौंजी उबालकर छान लें और इसे पिएँ। दूध में कलौंजी उबालें। ठंडा होने दें फिर इस मिश्रण को पिएँ। कलौंजी को ग्राइंड करें व पानी तथा दूध के साथ इसका सेवन करें। कलौंजी को ब्रैड, पनीर तथा पेस्ट्रियों पर छिड़क कर इसका सेवन करें। [B] ये किन-किन रोगों में सहायक है? 1/. टाइप-2 डायबिटीज: प्रतिदिन 2 ग्राम कलौंजी के सेवन के परिणामस्वरूप तेज हो रहा ग्लूकोज कम होता है। इंसुलिन रैजिस्टैंस घटती है,बीटा सैल की कार्यप्रणाली में वृद्धि होती है तथा ग्लाइकोसिलेटिड हीमोग्लोबिन में कमी आती है। 2/. मिर्गी: 2007 में हुए एक अध्ययन के अनुसार मिर्गी से पीड़ित बच्चों में कलौंजी के सत्व का सेवन दौरे को कम करता है। 3/. उच्च रक्तचाप: 100 या 200 मि.ग्रा. कलौंजी के सत्व के दिन में दो बार सेवन से हाइपरटैंशन के मरीजों में ब्लड प्रैशर कम होता है। रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) में एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में 2 बार पीने से रक्तचाप सामान्य बना रहता है। तथा 28 मि.ली. जैतुन का तेल और एक चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर पूर शरीर पर मालिश आधे घंटे तक धूप में रहने से रक्तचाप में लाभ मिलता है। यह क्रिया हर तीसरे दिन एक महीने तक करना चाहिए। 4/. गंजापन: जली हुई कलौंजी को हेयर ऑइल में मिलाकर नियमित रूप से सिर पर मालिश करने से गंजापन दूर होकर बाल उग आते हैं। 5/. त्वचा के विकार: कलौंजी के चूर्ण को नारियल के तेल में मिलाकर त्वचा पर मालिश करने से त्वचा के विकार नष्ट होते हैं। 6/. लकवा: कलौंजी का तेल एक चौथाई चम्मच की मात्रा में एक कप दूध के साथ कुछ महीने तक प्रतिदिन पीने और रोगग्रस्त अंगों पर कलौंजी के तेल से मालिश करने से लकवा रोग ठीक होता है। 7/. कान की सूजन, बहरापन: कलौंजी का तेल कान में डालने से कान की सूजन दूर होती है। इससे बहरापन में भी लाभ होता है। 8/. सर्दी-जुकाम: कलौंजी के बीजों को सेंककर और कपड़े में लपेटकर सूंघने से और कलौंजी का तेल और जैतून का तेल बराबर की मात्रा में नाक में टपकाने से सर्दी-जुकाम समाप्त होता है। आधा कप पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल व चौथाई चम्मच जैतून का तेल मिलाकर इतना उबालें कि पानी खत्म हो जाए और केवल तेल ही रह जाए। इसके बाद इसे छानकर 2 बूंद नाक में डालें। इससे सर्दी-जुकाम ठीक होता है। यह पुराने जुकाम भी लाभकारी होता है। 9/. कलौंजी को पानी में उबालकर इसका सत्व पीने से अस्थमा में काफी अच्छा प्रभाव पड़ता है। 10/. छींके: कलौंजी और सूखे चने को एक साथ अच्छी तरह मसलकर किसी कपड़े में बांधकर सूंघने से छींके आनी बंद हो जाती है। 11/. पेट के कीडे़: दस ग्राम कलौंजी को पीसकर 3 चम्मच शहद के साथ रात सोते समय कुछ दिन तक नियमित रूप से सेवन करने से पेट के कीडे़ नष्ट हो जाते हैं। 12/. प्रसव की पीड़ा: कलौंजी का काढ़ा बनाकर सेवन करने से प्रसव की पीड़ा दूर होती है। 13/. पोलियों का रोग: आधे कप गर्म पानी में एक चम्मच शहद व आधे चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय लें। इससे पोलियों का रोग ठीक होता है। 14/. मुँहासे: सिरके में कलौंजी को पीसकर रात को सोते समय पूरे चेहरे पर लगाएं और सुबह पानी से चेहरे को साफ करने से मुंहासे कुछ दिनों में ही ठीक हो जाते हैं। 15/. स्फूर्ति: स्फूर्ति (रीवायटल) के लिए नांरगी के रस में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सेवन करने से आलस्य और थकान दूर होती है। 16/. गठिया: कलौंजी को रीठा के पत्तों के साथ काढ़ा बनाकर पीने से गठिया रोग समाप्त होता है। 17/. जोड़ों का दर्द: एक चम्मच सिरका, आधा चम्मच कलौंजी का तेल और दो चम्मच शहद मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय पीने से जोड़ों का दर्द ठीक होता है। 18/. आँखों के सभी रोग: आँखों की लाली, मोतियाबिन्द, आँखों से पानी का आना, आँखों की रोशनी कम होना आदि। इस तरह के आँखों के रोगों में एक कप गाजर का रस, आधा चम्मच कलौंजी का तेल और दो चम्मच शहद मिलाकर दिन में 2बार सेवन करें। इससे आँखों के सभी रोग ठीक होते हैं। आँखों के चारों और तथा पलकों पर कलौंजी का तेल रात को सोते समय लगाएं। इससे आँखों के रोग समाप्त होते हैं। रोगी को अचार, बैंगन, अंडा व मछली नहीं खाना चाहिए। 19/. स्नायुविक व मानसिक तनाव: एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल डालकर रात को सोते समय पीने से स्नायुविक व मानसिक तनाव दूर होता है। 20/. गांठ: कलौंजी के तेल को गांठो पर लगाने और एक चम्मच कलौंजी का तेल गर्म दूध में डालकर पीने से गांठ नष्ट होती है। 21/. मलेरिया का बुखार: पिसी हुई कलौंजी आधा चम्मच और एक चम्मच शहद मिलाकर चाटने से मलेरिया का बुखार ठीक होता है। 22/. स्वप्नदोष: यदि रात को नींद में वीर्य अपने आप निकल जाता हो तो एक कप सेब के रस में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करें। इससे स्वप्नदोष दूर होता है। प्रतिदिन कलौंजी के तेल की चार बूंद एक चम्मच नारियल तेल में मिलाकर सोते समय सिर में लगाने स्वप्न दोष का रोग ठीक होता है। उपचार करते समय नींबू का सेवन न करें। 23/. कब्ज: चीनी 5 ग्राम, सोनामुखी 4 ग्राम, 1 गिलास हल्का गर्म दूध और आधा चम्मच कलौंजी का तेल। इन सभी को एक साथ मिलाकर रात को सोते समय पीने से कब्ज नष्ट होती है। 24/. खून की कमी: एक कप पानी में 50 ग्राम हरा पुदीना उबाल लें और इस पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सुबह खाली पेट एवं रात को सोते समय सेवन करें। इससे 21 दिनों में खून की कमी दूर होती है। रोगी को खाने में खट्टी वस्तुओं का उपयोग नहीं करना चाहिए। 25/. पेट दर्द: किसी भी कारण से पेट दर्द हो एक गिलास नींबू पानी में 2 चम्मच शहद और आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में 2 बार पीएं। उपचार करते समय रोगी को बेसन की चीजे नहीं खानी चाहिए। या चुटकी भर नमक और आधे चम्मच कलौंजी के तेल को आधा गिलास हल्का गर्म पानी मिलाकर पीने से पेट का दर्द ठीक होता है। या फिर 1 गिलास मौसमी के रस में 2 चम्मच शहद और आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में 2 बार पीने से पेट का दर्द समाप्त होता है। 26/. सिर दर्द: कलौंजी के तेल को ललाट से कानों तक अच्छी तरह मलनें और आधा चम्मच कलौंजी के तेल को 1 चम्मच शहद में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से सिर दर्द ठीक होता है। कलौंजी खाने के साथ सिर पर कलौंजी का तेल और जैतून का तेल मिलाकर मालिश करें। इससे सिर दर्द में आराम मिलता है और सिर से सम्बंधित अन्य रोगों भी दूर होते हैं। कलौंजी के बीजों को गर्म करके पीस लें और कपड़े में बांधकर सूंघें। इससे सिर का दर्द दूर होता है। कलौंजी और काला जीरा बराबर मात्रा में लेकर पानी में पीस लें और माथे पर लेप करें। इससे सर्दी के कारण होने वाला सिर का दर्द दूर होता है। 27/. उल्टी: आधा चम्मच कलौंजी का तेल और आधा चम्मच अदरक का रस मिलाकर सुबह-शाम पीने से उल्टी बंद होती है। 28/. हार्निया: तीन चम्मच करेले का रस और आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सुबह खाली पेट एवं रात को सोते समय पीने से हार्निया रोग ठीक होता है। 29/. मिर्गी के दौरें: एक कप गर्म पानी में 2 चम्मच शहद और आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से मिर्गी के दौरें ठीक होते हैं। मिर्गी के रोगी को ठंडी चीजे जैसे- अमरूद, केला, सीताफल आदि नहीं देना चाहिए। 30/. पीलिया: एक कप दूध में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर प्रतिदिन 2 बार सुबह खाली पेट और रात को सोते समय 1 सप्ताह तक लेने से पीलिया रोग समाप्त होता है। पीलिया से पीड़ित रोगी को खाने में मसालेदार व खट्टी वस्तुओं का उपयोग नहीं करना चाहिए। 31/. कैंसर का रोग: एक गिलास अंगूर के रस में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में 3 बार पीने से कैंसर का रोग ठीक होता है। इससे आंतों का कैंसर, ब्लड कैंसर व गले का कैंसर आदि में भी लाभ मिलता है। इस रोग में रोगी को औषधि देने के साथ ही एक किलो जौ के आटे में 2 किलो गेहूं का आटा मिलाकर इसकी रोटी, दलिया बनाकर रोगी को देना चाहिए। इस रोग में आलू, अरबी और बैंगन का सेवन नहीं करना चाहिए। कैंसर के रोगी को कलौंजी डालकर हलवा बनाकर खाना चाहिए। 32/. दांत: कलौंजी का तेल और लौंग का तेल 1-1 बूंद मिलाकर दांत व मसूढ़ों पर लगाने से दर्द ठीक होता है। आग में सेंधानमक जलाकर बारीक पीस लें और इसमें 2-4 बूंदे कलौंजी का तेल डालकर दांत साफ करें। इससे साफ व स्वस्थ रहते हैं। दांतों में कीड़े लगना व खोखलापन: रात को सोते समय कलौंजी के तेल में रुई को भिगोकर खोखले दांतों में रखने से कीड़े नष्ट होते हैं। 33/. नींद: रात में सोने से पहले आधा चम्मच कलौंजी का तेल और एक चम्मच शहद मिलाकर पीने से नींद अच्छी आती है। 34/. मासिकधर्म: कलौंजी आधा से एक ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से मासिकधर्म शुरू होता है। इससे गर्भपात होने की संभावना नहीं रहती है। जिन माताओं बहनों को मासिकधर्म कष्ट से आता है उनके लिए कलौंजी आधा से एक ग्राम की मात्रा में सेवन करने से मासिकस्राव का कष्ट दूर होता है और बंद मासिकस्राव शुरू हो जाता है। कलौंजी का चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में शहद मिलाकर चाटने से ऋतुस्राव की पीड़ा नष्ट होती है। मासिकधर्म की अनियमितता में लगभग आधा से डेढ़ ग्राम की मात्रा में कलौंजी के चूर्ण का सेवन करने से मासिकधर्म नियमित समय पर आने लगता है। यदि मासिकस्राव बंद हो गया हो और पेट में दर्द रहता हो तो एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल और दो चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम पीना चाहिए। इससे बंद मासिकस्राव शुरू हो जाता है। कलौंजी आधा से एक ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन 2-3 बार सेवन करने से मासिकस्राव शुरू होता है। 35/. गर्भवती महिलाओं को वर्जित: *गर्भवती महिलाओं को इसका सेवन नहीं कराना चाहिए क्योंकि इससे गर्भपात हो सकता है।* 36/. स्तनों का आकार: कलौंजी आधे से एक ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से स्तनों का आकार बढ़ता है और स्तन सुडौल बनता है। 37/. स्तनों में दूध: कलौंजी को आधे से 1 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से स्तनों में दूध बढ़ता है। 38/. स्त्रियों के चेहरे व हाथ-पैरों की सूजन: कलौंजी पीसकर लेप करने से हाथ पैरों की सूजन दूर होती है। 39/. बाल लम्बे व घने: 50 ग्राम कलौंजी 1 लीटर पानी में उबाल लें और इस पानी से बालों को धोएं इससे बाल लम्बे व घने होते हैं। 40/. बेरी-बेरी रोग: बेरी-बेरी रोग में कलौंजी को पीसकर हाथ-पैरों की सूजन पर लगाने से सूजन मिटती है। 41/. भूख का अधिक लगना: 50 ग्राम कलौंजी को सिरके में रात को भिगो दें और सूबह पीसकर शहद में मिलाकर 4-5 ग्राम की मात्रा सेवन करें। इससे भूख का अधिक लगना कम होता है। 42/. नपुंसकता: कलौंजी का तेल और जैतून का तेल मिलाकर पीने से नपुंसकता दूर होती है। 43/. खाज-खुजली: 50 ग्राम कलौंजी के बीजों को पीस लें और इसमें 10 ग्राम बिल्व के पत्तों का रस व 10 ग्राम हल्दी मिलाकर लेप बना लें। यह लेप खाज-खुजली में प्रतिदिन लगाने से रोग ठीक होता है। 44/. नाड़ी का छूटना: नाड़ी का छूटना के लिए आधे से 1 ग्राम कालौंजी को पीसकर रोगी को देने से शरीर का ठंडापन दूर होता है और नाड़ी की गति भी तेज होती है। इस रोग में आधे से 1 ग्राम कालौंजी हर 6 घंटे पर लें और ठीक होने पर इसका प्रयोग बंद कर दें। कलौंजी को पीसकर लेप करने से नाड़ी की जलन व सूजन दूर होती है। 45/. हिचकी: एक ग्राम पिसी कलौंजी शहद में मिलाकर चाटने से हिचकी आनी बंद हो जाती है। तथा कलौंजी आधा से एक ग्राम की मात्रा में मठ्ठे के साथ प्रतिदिन 3-4 बार सेवन से हिचकी दूर होती है। या फिर कलौंजी का चूर्ण 3 ग्राम मक्खन के साथ खाने से हिचकी दूर होती है। और यदि 3 ग्राम कलौंजी पीसकर दही के पानी में मिलाकर खाने से हिचकी ठीक होती है। 46/. स्मरण शक्ति: लगभग 2 ग्राम की मात्रा में कलौंजी को पीसकर 2 ग्राम शहद में मिलाकर सुबह-शाम खाने से स्मरण शक्ति बढ़ती है। 47/. पेट की गैस: कलौंजी, जीरा और अजवाइन को बराबर मात्रा में पीसकर एक चम्मच की मात्रा में खाना खाने के बाद लेने से पेट की गैस नष्ट होता है। 48/. पेशाब की जलन: 250 मिलीलीटर दूध में आधा चम्मच कलौंजी का तेल और एक चम्मच शहद मिलाकर पीने से पेशाब की जलन दूर होती है।

रूटीन चेकअप से बचती हैं महिलाएं, जानें क्या हो सकती हैं बीमारियां....*डा• शवेता रस्तोगी अच्छे स्वास्थ्य का मतलब है सब कुछ अच्छा है। शरीर का ख्याल रखना सबसे जरूरी है. अक्सर हम किसी लक्षण को नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन ऐसा करना ठीक नहीं है. महिलाओं को अपनी सेहत का अधिक ध्यान रखना होगा। सभी को रूटीन चेकअप कराना चाहिए. बीमारी बताई नहीं जा सकती. हमें इसका ख्याल रखना होगा.' कुछ ऐसी समस्याएं हैं जिनका अनुभव महिलाओं को अधिक होता है। आइए जानते हैं कौन सी हैं ये बीमारियां. *1. हृदय संबंधी विकार...* हृदय रोग महिलाओं में मृत्यु का प्रमुख कारण है। इसलिए सीने में दर्द को नजरअंदाज न करें। *2. थायराइड...* महिलाओं में मोटापे का एक बड़ा कारण थायराइड की समस्या है। उचित आहार लें. *3. मानसिक स्वास्थ्य...* महिलाओं में चिंता का स्तर अधिक होता है। मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखना महत्वपूर्ण है। ज़्यादा सोचना बंद करो. *4.ऑस्टियोपोरोसिस...* महिलाओं की हड्डियों की ताकत तेजी से घटती है। चलने से दर्द शुरू हो जाता है। पौष्टिक भोजन करें. *5.प्रजनन तंत्र के रोग...* पीसीओडी, मासिक धर्म संबंधी परेशानियां आदि समस्याओं की संख्या बढ़ती जा रही है। 3 महीने में कम से कम एक बार स्त्री रोग विशेषज्ञ से मिलना जरूरी है।

चव्य के लाभ सभी तक पहुंचायें आप स्वस्थ हों देश स्वस्थ हो और साथ ही अपना व देश का करोड़ों रुपये बचायें- डा• शवेता रस्तोगी चव्य के हैं अनेक अनसुने फायदे: - चव्य को चाब, चाभ, चब आदि नाम से भी जानते हैं। क्या आप जानते हैं कि चव्य एक जड़ी-बूटी है, और चव्य के बहुत सारे औषधीय गुण हैं। आप बवासीर, बदहजमी, दस्त, मूत्र रोग आदि में चव्य के इस्तेमाल से लाभ ले सकते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, चव्य के औषधीय गुण के फायदे मिर्गी, डायबिटीज, नशे की लत छुड़ाने में भी मिलते हैं। यहां जानते हैं कि चव्य के सेवन या उपयोग करने से कितनी सारी बीमारियों में फायदा होता है, और चव्य से क्या-क्या नुकसान हो सकता है। 1 चव्य क्या है ? 2 अन्य भाषाओं में चव्य के नाम 3 चव्य के औषधीय गुण 4 चव्य के फायदे और उपयोग 4.1 बदहजमी में चव्य के सेवन से लाभ 4.2 सर्दी-खांसी में चव्य के सेवन से लाभ 4.3 सांसों की बीमारियों में चव्य के सेवन से लाभ 4.4 टीबी की बीमारी में चव्य के फायदे 4.5 मूत्र रोग के इलाज की आयुर्वेदिक दवा है चव्य 4.6 पेट के रोग की आयुर्वेदिक दवा है चव्य 4.7 दस्त की आयुर्वेदिक दवा है चव्य 4.8 पेट फूलने (गैस की समस्या) की बीमारी चव्य का औषधीय गुण फायेदमंद 4.9 उल्टी में चव्य के सेवन से फायदा 4.10 पेचिश में चव्य का औषधीय गुण फायेदमंद 4.11 पाचनतंत्र विकार में चव्य के फायदे 4.12 चव्य के औषधीय गुण से डायबिटीज पर नियंत्रण 4.13 चव्य के औषधीय गुण से बवासीर का इलाज 4.14 नशे की लत छुड़ाने (मद्य विकार) में चव्य का औषधीय गुण फायेदमंद 4.15 मिर्गी में चव्य के फायदे 4.16 चव्य के औषधीय गुण से मोटापे का इलाज 5 चव्य के उपयोगी भाग 6 चव्य का इस्तेमाल कैसे करें? 7 चव्य कहां पाया या उगाया जाता है? चव्य क्या है ? कई विद्वान् काली मिर्च की जड़ को चव्य मानते हैं, लेकिन यह सही नहीं है। चव्य के फलों को बड़ी पिप्पली मानकर भी प्रयोग किया जाता है। चव्य की लता फैली हुई और मोटी होती है। इसके तने मोटी होते हैं। इसकी शाखाएँ टेढ़ी-मेढ़ी, गोलाकार, कठोर और फूली हुई ग्रन्थियों से युक्त होती हैं। इसके पत्ते 12.5-17.5 सेमी लम्बे एवं 6.2-8.0 सेमी चौड़े, पान के जैसे होते हैं। इसके फूल छोटे, लाल रंग के होते हैं। इसके फल बहुत छोटे, अण्डाकार या गोलाकार होते हैं। फल लगभग 3 मिमी व्यास के, सुगन्धित और चरपरे होते हैं। चव्य के बीज एकल, गोलाकार होते हैं। चव्य के पौधे में फूल और फल अगस्त से मार्च तक होता है। यहां चव्य के फायदे और नुकसान की जानकारी बहुत ही आसान भाषा में लिखी गई है ताकि आप चव्य के औषधीय गुण से पूरा-पूरा लाभ ले पाएं। अन्य भाषाओं में चव्य के नाम चव्य का वानस्पतिक नाम Piper retrofractum Vahl (पाइपर रेट्रोप्रैंक्टम)? Syn-Piper chaba Hunter है और यह Piperaceae (पाइपरेसी) कुल का है। इसके अन्य ये भी नाम हैंः- Hindi- चव्य, चाब, चाभ, चब English- Java long pepper (जावा लाँग पेपर) Sanskrit- चव्यम्, चविका, ऊषणा Kannada- चव्य (Chavya) Malayalam- च्व्यम (Chavyam) Gujarati- चवक (Chavak) Telugu- सवासु (Saevasu), चक्राणी (Chakrani), चव्यमु (Chavayamu), चायिकामा (Chaikama) Tamil- चव्यं (Chavyam), अनाई तिप्पली (Anai Tippali) Bengali- चब्या (Chabya), चई (Chai), चोई (Choi) Nepali- चाबो (Chabo) Marathi- चवक (Chavak), चाबचीनी (Chabchini), मिरविला (Miravela) Arabic- दार फुलफुल (Dar fulful) Persian- बड़ी पिप्पली (Badi peepli) चव्य के औषधीय गुण चव्य के आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव ये हैंः- चव्य कटु, उष्ण; लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण होती है। इसके फूल श्वास, कास, विष और क्षय नाशक होते हैं। इसके फल उत्तेजक, वातानुलोमक, कृमिरोधी और कफनिसारक होते हैं। इसकी जड़ विषनाशक (Alexeteric) होती है। चव्य के फायदे और उपयोग चव्य के फायदे, प्रयोग की मात्रा एवं विधियां ये हैंः- बदहजमी में चव्य के सेवन से लाभ बदहजमी में चाभ के औषधीय गुण से फायदा मिलता है। चाभ की जड़ का काढ़ा बनाकर 10-15 मिली मात्रा में पीने से बदहजमी में लाभ होता है। सर्दी-खांसी में चव्य के सेवन से लाभ आप सर्दी-खांसी के इलाज में चाब में फायदा ले सकते हैं। इसके लिए 500 मिग्रा चव्य की जड़ का चूर्ण बना लें। इसमें 250 मिग्रा सोंठ चूर्ण और 250 मिग्रा चित्रक का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ खाएं। इससे सर्दी और खांसी में लाभ होता है। पिप्पली, चव्य, चित्रक, सोंठ और मरिच को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लें। 500 मिग्रा चूर्ण में शहद मिलाकर खाने से सर्दी-जुकाम में लाभ होता है। सांसों की बीमारियों में चव्य के सेवन से लाभ चव्य की जड़ का काढ़ा बनाकर 10-15 मिली मात्रा में पिलाने से दमा और फेफड़ों की सूजन में लाभ होता है। इससे गले की खराश खत्म होती है। टीबी की बीमारी में चव्य के फायदे चव्य, सोंठ, मरिच, पीपल और वायविडंग की बराबर मात्रा लें। इसके चूर्ण को 3-4 ग्राम मात्रा में लेकर मधु और घी के साथ मिलाकर सेवन करें। इससे टीबी की बीमारी में लाभ होता है। मूत्र रोग के इलाज की आयुर्वेदिक दवा है चव्य 5-10 ग्राम चव्यादि घी का सेवन करने से पेचिश, गुदभ्रंश (गुदा से कांच निकलना), मूत्र रोग, गुदा दर्द होना (गुदशूल), नाभि और मूत्राशय के बीच के दर्द आदि विकारों में लाभ होता है। पेट के रोग की आयुर्वेदिक दवा है चव्य चब और सोंठ का पेस्ट बना लें। 1-2 ग्राम पेस्ट को दूध के साथ पीने से पेट की बीमारियों में लाभ होता है। चब, चित्रक, शुण्ठी और देवदारु से काढ़ा बना लें। 10-20 मिली काढ़ा में 500 मिग्रा त्रिवृत्चूर्ण और गोमूत्र मिलाकर पीने से पेट की बीमारियों में लाभ होता है। पिप्पली, पिप्पली-जड़, चित्रक, चव्य और सोंठ को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लें। 1 ग्राम शहद मिलाकर सेवन करने से पेट के रोगों में लाभ होता है। दस्त की आयुर्वेदिक दवा है चव्य चाभ की जड़ का काढ़ा बनाकर 10-15 मिली मात्रा में पीने से बदहजमी, पेट दर्द और दस्त में लाभ होता है। 1-2 ग्राम चव् फल का चूर्ण लें। इतना ही आम की गुठली की गिरी मिला लें। इसे पानी में मिलाकर छाने लें। इसे पिलाने से दस्त में लाभ होता है। चाब, श्वेतजड़ा और क्षीरीवृक्ष के नए कोमल पत्तों को पीसकर तेल के साथ पका लें। इसका सेवन करने से दस्त बन्द हो जाते हैं। पेट फूलने (गैस की समस्या) की बीमारी चव्य का औषधीय गुण फायेदमंद आप गैस की समस्या में भी चाभ से फायदा ले सकते हैं। 500 मिग्रा चव्य फल के चूर्ण में शहद मिलाकर खाने से पेट फूलने या गैस की सम्सया में लाभ होता है। उल्टी में चव्य के सेवन से फायदा अतीस, कूठ, कच्ची बेलगिरी, सोंठ, कुटज-छाल, इन्द्रयव और हरीतकी का काढ़ा बना लें। 10-30 मिली मात्रा में पिलाने से उल्टी और दस्त में लाभ होता है। पेचिश में चव्य का औषधीय गुण फायेदमंद चाब, चित्रक, बेलगिरी और सोंठ की बराबर मात्रा लेकर चूर्ण बना लें। चूर्ण की 2-4 ग्राम मात्रा में लेकर छाछ के साथ सेवन करने से पेचिश में लाभ होता है। पाचनतंत्र विकार में चव्य के फायदे पाचनतंत्र विकार के इलाज के लिए चव्य फल के चूर्ण में चव्य रस और मधु मिला लें। इसे सुबह और शाम सेवन करने से पाचनतंत्र विकार ठीक होता है। इससे सांसों की बीमारियों में भी लाभ होता है। चव्य के औषधीय गुण से डायबिटीज पर नियंत्रण चव्य, अरणी, त्रिफला और पाठा का काढ़ा बना लें। 10-30 मिली काढ़ा में शहद मिलाकर पीने से डायबिटीज में लाभ होता है। चव्य के औषधीय गुण से बवासीर का इलाज 1-2 ग्राम चव्य फल के चूर्ण का सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है। चव्य की जड़ का काढ़ा बनाकर 10-15 मिली मात्रा में पिलाने से बवासीर में लाभ होता है। नशे की लत छुड़ाने (मद्य विकार) में चव्य का औषधीय गुण फायेदमंद चव्य, काला नमक, बिजौरा नींबू का गूदा (सुखाया हुआ) और सोंठ की बराबर मात्रा लें। इनका चूर्ण बना लें। 2-4 ग्राम चूर्ण को गर्म जल के साथ सेवन करने से मद्यपान (शराब की लत) को छोड़ने में मदद मिलती है। मिर्गी में चव्य के फायदे मिर्गी के इलाज में भी चाभ के इस्तेमाल से लाभ मिलता है। चाब के चूर्ण को नाक से लेने पर मिर्गी में लाभ होता है। चव्य के औषधीय गुण से मोटापे का इलाज चव्य, श्वेत जीरा, सोंठ, मिर्च, पीपल, हींग, काला नमक और चित्रक की बरबार-बराबर मिलाकर चूर्ण बना लें। 1-2 ग्राम चूर्ण को यव के सत्तू में मिला लें। सत्तू को दही के पानी के साथ अच्छी तरह मिला लें। इसे पीने से मोटापे का इलाज होता है। चव्य के उपयोगी भाग चव्य के इन भागों का इस्तेमाल किया जाता हैः- जड़ फल चव्य का इस्तेमाल कैसे करें? चव्य को इतनी मात्रा में इस्तेमाल करना चाहिएः- चूर्ण- 1-4 ग्राम चूर्ण- 10-30 मिली यहां चव्य के फायदे और नुकसान की जानकारी बहुत ही आसान भाषा में लिखी गई है ताकि आप चव्य के औषधीय गुण से पूरा-पूरा लाभ ले पाएं, लेकिन किसी बीमारी के लिए चव्य का सेवन करने या चव्य का उपयोग करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर सलाह लें। चव्य कहां पाया या उगाया जाता है? भारत के अनेक प्रान्तों में चव्य पाया जाता है। मुख्यतः पश्चिम बंगाल, आसाम, केरल, पश्चिमी घाट एवं नीलगिरी के पहाड़ी स्थानों में चव्य की खेती की जाती है।

एक बहुत बड़ा नामी गिरामी वैद्य था । उसने अपने उपचार से असाध्य से असाध्य रोगियों को ठीक किया था । उसके विषय में कहा जाता था कि वह जिस भी रोगी को मात्र अगर एक बार छू भी ले तो वह रोगी बिल्कुल ठीक हो जाता था । उसका एक बेटा था । वह अपने पिता के पैसों में खेलता ही रहा और अपने पिता वैद्य से कुछ नहीं सीख पाया । उसके पिता उसे बोलते रहते थे कि कुछ तो सीख ले , पर वह जवानी के नशे में उनको टालता रहा कि बाद में सीख लूँगा , अपने घर की ही तो खेती है । उस वैद्य का जब अंत समय आया तो उसके बेटे को चटकना हुई कि वह तो अपने पिता से कुछ भी नहीं सीख पाया और अब आगे उसका गुजारा कैसे चलेगा !!! वह रोते हुए अपने पिताजी के पास पहुँचा और उनसे कहा कि पिताजी कुछ तो बता दीजिए । वैद्य ने कहा कि बेटा यह इतना अथाह सागर है कि पूरा जीवन निकल जायेगा और मेरे पास समय बहुत कम है , तुमने बहुत देर कर दी । वैद्य ने कहा कि लेकिन मैं तुम्हें एक उपाय बताता हूँ जिससे तुम्हारा कार्य चलता रहेगा । वैद्य ने बताया कि बेटा जो भी रोगी तुम्हारे पास आये , तो एक काम अवश्य करना । अपने हर रोगी को "हर्र" या "हरड़" या "हरीतकी" या "Terminalia Chebula" देना या उसे खाने को बोलना । चाहे उसे गर्म कर , भून कर , नींबू में भिगोकर , पानी में भिगोकर , ऐसे ही मुँह में रखकर चूसकर , या चूर्ण बनाकर किसी भी विधा खाने को बोलना । क्योंकि मनुष्य शरीर की हर बीमारी पेट से शुरू होती है जो कि ग़लत खान पान से होती है । इसीलिए जिसका पेट अगर ठीक है तो उसको कोई बीमारी आजीवन नहीं हो सकती । और हर्र या हरड़ या हरीतकी ( चाहे छोटी हो या बड़ी ) पेट के सभी व्याधियों की अचूक दवा है । अगर पेट ठीक है तो सब ठीक है । बस इतना और इससे बड़ी गूढ़ विद्या इतने कम समय में मैं तुम्हें नहीं बता सकता । यह घटना पूर्णतः वास्तविक है और इसका वास्तविकता से पूर्णतः लेना देना है । इसलिए पेट को दुरुस्त रखने के लिए हमेशा अपने पास हर्र, अजवाइन, मेथी , नींबू, इत्यादि साथ लिए रखना चाहिए । आयुर्वेद में तो त्रिफला से बड़ा कोई दूसरी औषधि बताई ही नहीं गयी है जिसमें आँवला, हर्र और बहेड़ा का फल 3:2:1 के अनुपात में भिगो कर सुबह सुबह पीने को कहा गया है। मेरी touring की job ज़्यादा रहती है , भले मैं अपना कोई महत्वपूर्ण सामान भूल जाऊँ पर अपने बैग में एक थैला अवश्य रखता हूँ जिसमें मेथी, अजवाइन, हर्र , हल्दी, इत्यादि होता है । इसलिए सभी लोग अपने शरीर की स्वस्थता के लिए अपने पेट को स्वस्थ्य रखें , आप को कभी कोई रोग नहीं होगा । और जो होगा वह धीरे धीरे खत्म हो जाएगा । केमिकल दवाईयों का पूर्णतः बहिष्कार कीजिये , यह आपके शरीर को और अपंग बनाता है और शरीर का तेज खत्म कर देता है । अपने खान पान , दिनचर्या को बिल्कुल दुरुस्त रखिये और खाद्य अखाद्य वस्तुओं में अंतर समझ कर ही उसको अपने शरीर में स्थान दें । आप स्वस्थ्य तो यह समाज स्वस्थ्य और समाज स्वस्थ्य तो यह देश स्वस्थ्य ।