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About Mazdoor Bigul मजदूर बिगुल www.mazdoorbigul.net
'मज़दूर बिगुल' देश की उस 80 करोड़ मेहनतकश आबादी की आवाज़ है जिन तक मुख्यधारा के मीडिया की निगाहें कभी पहुँचती ही नहीं। यह इस देश के मेहनतकशों की ज़िन्दगी, उनके सपनों और संघर्षों की तस्वीर पेश करता है, और मेहनतकशों, संवेदनशील युवाओं और जागरूक नागरिकों के सामने इस दमघोंटू अन्यायपूर्ण सामाजिक ढाँचे का विकल्प पेश करता है, अपने हक़ों के लिए लड़ने और जीतने के लिए ज़रूरी ज्ञान और समझ से उन्हें लैस करने की कोशिश करता है। पूँजीवादी मीडिया की लीपापोती और पर्देदारी को भेदकर यह देश और दुनिया की तमाम महत्वपूर्ण आर्थिक-राजनीतिक-सामाजिक घटनाओं का बेबाक विश्लेषण प्रस्तुत करता है और निराशा के बादलों को चीरकर उम्मीद और हौसले की रोशनी दिखाने वाली साहित्यिक और वैचारिक कृतियों से उन्हें परिचित कराता है। अगर आप हर महीने 'मज़दूर बिगुल' प्राप्त नहीं कर रहे हैं, तो आप इस महादेश के अतीत, वर्तमान और भविष्य के बेहद ज़रूरी पहलुओं को जानने से ख़ुद को वंचित कर रहे हैं।
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*जब भी नैतिकता धर्मशास्त्र पर आधारित होगी, जब भी अधिकार किसी दैवी सत्ता पर निर्भर होंगे, तो सबसे अनैतिक, अन्यायपूर्ण, कुख्यात चीज़ें सही ठहरायी जा सकती हैं और स्थापित की जा सकती हैं।* ✍️ लुडविग फ़ायरबाख़ (जर्मन दार्शनिक, 1804-1872) _Wherever morality is based on theology, wherever the right is made dependent on divine authority, the most immoral, unjust, infamous things can be justified and established._ ✍️ Ludwig Feuerbach


जब विवेक सो जाता है, तब राक्षस पैदा होते हैं। ✍️ फ्रांसिस्को द गोया (प्रख्यात स्पेनी चित्रकार, 1746-1828) The sleep of reason produces monsters. ✍️ Francisco Goya


📚 *यूनाइटिंग वर्किंग क्लास प्रस्तुत* 📚 📖 *बेहतरीन पुस्तकों की पीडीएफ* 📖 ________________________ *देश के महान शहीदों की दास्तां आप तक* शहीद सुखदेव की जयंती (15 मई 1907 - 23 मार्च 1931) के अवसर पर *'शहीद सुखदेव नौघरा से फाँसी तक' की पीडीएफ फाइल* 📱 https://janchetnabooks.org/product-details?query=117 ➖➖➖➖➖➖➖➖ *पीडीएफ फाइल मंगवाने के लिए दिये व्हाटसएप्प नम्बर (8828320322) पर व्हाटसएप्प से ही संदेश भेजें।* ईमेल या अन्य किसी अन्य माध्यम से फाइल नहीं भेजी जायेगी। आप इस ऑनलाइन लिंक से बिना व्हाटसएप्प का इस्तेमाल किये भी डाउनलोड कर सकते हैं - http://janchetnabooks.org/pdf/index टेलीग्राम पर भी आप इस फाइल को डाउनलोड कर सकते हैं - टेलीग्राम चैनल - http://www.t.me/mazdoorbigul ➖➖➖➖➖➖➖➖ 📚 अगर आप इस संकलन की प्रिण्ट कॉपी खरीदना चाहते हैं तो इस लिंक से खरीद सकते हैं - https://janchetnabooks.org/product-details?query=117 (कीमत - रू 40) जनचेतना द्वारा वितरित किया जा रहा प्रगतिशील, मानवतावादी साहित्य इस लिंक https://goo.gl/bxmZR5 पर उपलब्ध है। कुछ पुस्तकें अमेजन पर उपलब्ध नहीं है। उसके लिए जनचेतना की वेबसाइट देखें - http://janchetnabooks.org/ अमेजन से खरीदने में समस्या हो तो 09721481546 ( फोन की बजाय WhatsApp संदेश भेजना अच्छा रहेगा) या [email protected] पर संपर्क करें। ➖➖➖➖➖➖➖➖ भूमिका यह तो माना जा सकता है कि दूर–दराज पहाड़ों में, जहाँ पर इन्सानी कदम कम ही पहुँचे हों, किन्हीं अनजान लोगों द्वारा निर्मित अजन्ता–एलोरा की गुफाएँ, इतिहास के पन्नों से गुम हो सकती हैं, और उन्हें फिर से ढूँढ़े जाने पर भारतवासी गर्व महसूस करें और भारतीय सरकारें उनको सँभालने की जिम्मेदारी अपने सिर पर लेकर खुशी महसूस करें। पर बहुत परेशान करने वाली बात यह है कि भारत की आजादी के लिए कुर्बान हुए, भारतीय नायक भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव के ऐतिहासिक स्थान ही लोगों से आधी सदी तक छुपे रहे – वह भी घनी अबादियों में, और ढूँढ़े जाने पर भी सत्ताधारी लोग साजिश भरी चुप्पी साध लें। ऐसी ही दास्तां है, सुखदेव की जन्मस्थली मुहल्ला नौघरा, लुधियाना की। यह ऐतिहासिक स्थान 1998 तक भारतवासियों की नजर से छुपा रहा । पंजाब के लुधियाना शहर के बीच, सुखदेव के छोटे भाई मथरादास थापर अपने भाई के बारे में बताने के लिए इस मुहल्ले में जीवन भर आते रहे, लोगों को बताते रहे, देश की सरकार चलाने वालों को भी बताते रहे, पर उनकी सारी कोशिशों का कोई असर न हुआ । सुखदेव के बाकी परिजन, उनके ताया लाला चिन्तराम के परिवार वाले भी लोगों को बताते रहते । फिर पता चलने पर जब पंजाब के क्रान्तिकारी संगठनों से जुड़े कुछ लोग उस जन्मस्थली वाले घर को ढूँढ़ने निकले, तो मुहल्ले वालों से रास्ता पूछने पर उन्हें यही जवाब मिला–कौन सा सुखदेव? आगे रहता होगा । क्या काम करता है? आदि । उनकी जन्मस्थली पर पहुँचकर, सब खस्ता हालत देखकर, आजाद भारत की चमचमाती तरक्की पर मानो प्रश्नचिह्न लग गया, कि जिन लोगों की बलिदान की नींव पर यह सब टिका है उन्हीं के ऐतिहासिक स्थानों का ऐसा हाल है! उसके बाद देशभक्त इन्कलाबी सोच को समर्पित लोग मिलकर हर साल सुखदेव का जन्मदिवस मनाने लगे। शहीद सुखदेव यादगारी कमेटी लुधियाना का गठन किया गया जिसका उद्देश्य जन्म–स्थली को सँभालना और शहीद सुखदेव के जीवन के बारे में लोगों के बीच प्रचार करना था । यादगारी कमेटी की ओर से 22 मार्च 2004 तक बिना किसी सरकारी सहायता के उस स्थान को सुखदेव के स्मारक में बदलकर देशवासियों को समर्पित कर दिया गया। इस काम में इण्डियन वर्कर्स एसोसिएशन, लन्दन (ग्रेट ब्रिटेन) के साथी सुरिन्दर का और अन्य साथियों का पूरा योगदान रहा । कमेटी की तरफ से मथरादास थापर द्वारा लिखी किताब पंजाबी मेें निकाली गयी । उसी जीवनी का यह हिन्दी अनुवाद आपके हाथों में है जिसे पंजाब के बाहर सारे देशवासियों तक पहुँचाने के लिए राहुल फाउण्डेशन ने प्रकाशित किया है । बात यहीं तक ही खत्म नहीं होती । सुखदेव के संग्रामी जीवन व जन्मस्थान के बारे में जानने की जब बात होती है तो आजाद भारत में भी कौन सी ताकतें हैं जो उनका नामोनिशान छुपा कर रखना चाहती हैं? अगर अंग्रेज हुकूमत भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी के बाद उनकी लाशों को जलाकर देशवासियों से छुपाना चाहती थी, तो आजाद भारत में भी कौन सी शक्तियाँ हैं जो इन महान शहीदों की याद से भयाक्रान्त हैं ? दरअसल अंग्रेजी हुक्मरानों से आजादी के बाद जो पूँजीवादी ताकतें देश की राज्यसत्ता पर काबिज हुर्इं, वह इन शहीदों की हर याद को मिटा देना चाहती हैं, क्योंकि उनके विचार इस देश के मेहनतकश आवाम को 1947 के बाद आयी नयी गुलामी, शोषण और अन्याय से मुक्ति की राह दिखाते हैं। इसलिए आज यह जरूरी है कि उन महान शहीदों की यादगारों को सँभालने के साथ–साथ, उनके विचारों का भी व्यापक प्रचार–प्रसार किया जाये । और ऐसा ही एक छोटा सा प्रयास है यह किताब । 1 मई, 2006 डॉ. हरदीप सिंह संयोजक, शहीद सुखदेव यादगारी कमेटी लुधियाना (पंजाब) ➖➖➖➖➖➖➖➖ यह पुस्तक आप तक जनचेतना व Uniting Working Class द्वारा पहुंचाई जा रही है। *जनचेतना देशभर में मानवतावादी, प्रगतिशील व क्रांतिकारी साहित्य को कम से कम लागत पर लोगों तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है। जन चेतना द्वारा वितरित की जा रही पुस्तकों का विवरण इस वेबसाइट पर देखा जा सकता है* - http://janchetnabooks.org/ ➖➖➖➖➖➖➖➖ 🖥 प्रस्तुति - Uniting Working Class 👉 *हर दिन कविता, कहानी, उपन्यास अंश, राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक विषयों पर लेख, रविवार को पुस्तकों की पीडीएफ फाइल आदि व्हाटसएप्प, टेलीग्राम व फेसबुक के माध्यम से हम पहुँचाते हैं।* अगर आप हमसे जुड़ना चाहें तो इस लिंक पर जाकर हमारा व्हाटसएप्प चैनल ज्वाइन करें - http://www.mazdoorbigul.net/whatsapp चैनल ज्वाइन करने में कोई समस्या आए तो इस नंबर पर अपना नाम और जिला लिख कर भेज दें - 8828320322 🖥 फेसबुक पेज - https://www.facebook.com/mazdoorbigul/ https://www.facebook.com/unitingworkingclass/ 📱 टेलीग्राम चैनल - http://www.t.me/mazdoorbigul हमारा आपसे आग्रह है कि तीनों माध्यमों व्हाट्सएप्प, फेसबुक और टेलीग्राम से जुड़ें ताकि कोई एक बंद या ब्लॉक होने की स्थिति में भी हम आपसे संपर्क में रह सकें।


📚 *देश-दुनिया का बेहतरीन साहित्य* 📚 _________________________ *येह शेङ ताओ की प्रसिद्ध कहानी - नंगा राजा* 📱https://www.mazdoorbigul.net/archives/5565 👉 English version of this story was not available on internet (In text format). We have uploaded text this time. English Version is taken from Chinese literature, 1954-3. To read this please visit above link. --------------------------- बहुत से लोगों ने नये-नये कपड़े पहनने के शौक़ीन उस राजा के बारे में हैन्स एण्डर्सन की कहानी पढ़ी होगी जिसे एक बार दो ठगों ने उल्लू बना दिया था। उन ठगों ने यह दावा किया कि वे राजा के लिए ऐसी सुन्दर पोशाक़ तैयार करेंगे जैसी कि कोई सपने में भी नहीं सोच सकता। पर सबसे बड़ी ख़ूबी उसमें यह होगी कि वह पोशाक़ किसी मूर्ख व्यक्ति या अपने पद के लिए अयोग्य व्यक्ति को दिखायी नहीं देगी। राजा ने तुरन्त अपने लिए ऐसी पोशाक़ बनाने को आदेश दे दिया और दोनों ठग बुनने, काटने और सिलने का अभिनय करने में जुट गये। राजा ने कई बार अपने मन्त्रियों को काम की रफ़्तार देखने के लिए भेजा और हर बार उन्होंने उसे बताया कि वे अपनी आँखों से नये वस्त्रें को देखकर आ रहे हैं और वे वाकई बेहद ख़ूबसूरत हैं। दरअसल, राजा के मन्त्रियों ने कुछ भी नहीं देखा था, पर वे मूर्ख कहलाना नहीं चाहते थे और उससे भी बढ़कर अपने पदों के लिए अयोग्य घोषित किया जाना तो नहीं ही चाहते थे। राजा ने तय किया कि जिस दिन नयी पोशाक़ तैयार हो जायेगी, उस दिन एक भव्य समारोह होगा और राजा नयी पोशाक़ पहनकर नगर में निकलेगा। राज्यभर में इसकी मुनादी करवा दी गयी। जब वह दिन आया तो ठगों ने राजा के सारे कपड़े उतरवा दिये। फिर वे देर तक उसे नये परिधान में सजाने-धजाने का अभिनय करते रहे। राजा के दरबारियों और नौकर-चाकरों ने एक स्वर में उसकी तारीफ़ों के पुल बाँधने शुरू कर दिये क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि वे मूर्ख कहलायें या अपने पदों के लिए अयोग्य घोषित कर दिये जायें। राजा ने सन्तुष्ट भाव से सर हिलाया और नंगधड़ंग बाहर चल पड़ा। रास्ते के दोनों तरफ़ खड़े लोग भी मूर्ख कहलाना नहीं चाहते थे। वे सब के सब राजा की नयी पोशाक़ की इस तरह से प्रशंसा कर रहे थे जैसे वे उसे साफ़-साफ़ देख रहे हों। लेकिन तभी एक बच्चा बड़ी मासूमियत से बोल पड़ा, “अरे, उस आदमी ने तो कुछ पहना ही नहीं है!” भीड़ के कानों में यह बात पड़ते ही चारों तरफ़ फैल गयी और जल्दी ही हर आदमी हँस रहा था और चिल्ला रहा थाः “अरे सच! राजा के बदन पर एक सूत भी नहीं है।” अचानक राजा की समझ में आया कि उसे धोखा दिया गया है। लेकिन अब तो खेल शुरू हो चुका था और उसे बीच में रोकने का मतलब होता, और बेइज़्ज़ती। उसने तय किया कि वह इसे जारी रखेगा और सीना फुलाकर आगे चल दिया। इसके बाद क्या हुआ? हैन्स एण्डर्सन ने इसके बारे में कुछ नहीं कहा है, लेकिन दरअसल इस कहानी में और भी बहुत कुछ हुआ था। राजा अपने भव्य जुलूस के साथ आगे चलता रहा, मानो कुछ हुआ ही न हो। और वह इतना अकड़कर चल रहा था कि उसके कन्धे और रीढ़ की हड्डी तक दुखने लगे। उसकी अदृश्य पोशाक़ के पिछले भाग को उठाकर चलने का अभिनय कर रहे सेवक बड़ी मुश्किल से अपने होंठ चबा-चबाकर हँसी रोक रहे थे क्योंकि वे मूर्ख कहलाना नहीं चाहते थे। अंगरक्षक अपनी निगाहें जमीन पर गड़ाये हुए चल रहे थे क्योंकि अगर किसी एक की भी नज़र अपने साथी से मिल जाती तो उसके मुँह से जरूर हँसी फूट पड़ती। लेकिन जनता तो ज़्यादा स्पष्टवादी होती है। उसे अपने होंठ काटने और निगाहें ज़मीन पर गड़ाये रखने की कोई वजह समझ में नहीं आयी। इसलिए जब एक बार यह नंगी सच्चाई उजागर हो गयी कि राजा कुछ नहीं पहने है, तो वे ज़ोर-ज़ोर से ठहाके लगाकर हँसने लगे। “अच्छा राजा है यह तो, नंगधड़ंग चला जा रहा है,” एक ने खिलखिलाते हुए कहा। “ज़रूर इसकी अकल घास चरने चली गयी है,”” दूसरे ने कहकहा लगाया। “थुलथुल, बदसूरत कीड़ा,” किसी ने फब्ती कसी।” ““उसके कन्धे और टांगें देखे, जैसे पंख नुची हुई मुर्गी,”” चौथे आदमी ने ताना मारा। इन फ़ब्तियों से राजा का ग़ुस्सा भड़क उठा। उसने जुलूस रोक दिया और अपने मन्त्रियों को डपटा, “सुना तुमने, इन मूर्खों और देशद्रोहियों की ज़ुबान बहुत चलने लगी है। तुम लोग रोकते क्यों नहीं उन्हें? मेरे नये वस्त्र बहुत ठाठदार हैं और इन्हें पहनने से मेरी राजसी आनबान बढ़ती है। तुम लोग ख़ुद यह बात कह रहे थे। आज से मैं सिर्फ़ यही कपड़े पहनूँगा और दूसरा कुछ नहीं पहनूँगा। जो कोई यह कहने की हिम्मत करता है कि मैं नंगा हूँ, वह दुष्ट और ग़द्दार है। उसे फ़ौरन गिरफ़्तार करके मौत के घाट उतार दिया जाये। यह एक नया क़ानून है। इसकी घोषणा फ़ौरन कर दी जाये।”” राजा के मन्त्री तुरन्त भागदौड़ करने लगे। नगाड़े पीटकर प्रजा को इकट्ठा किया गया और मन्त्रियों ने पूरी ताक़त से चिल्ला-चिल्लाकर इस नये क़ानून की घोषणा कर दी। हँसना और फब्तियाँ कसना बन्द हो गया और राजा ने सन्तुष्ट होकर जुलूस को आगे बढ़ने का आदेश दिया। लेकिन वह अभी थोड़ी ही दूर गया था कि ठहाकों और फ़ब्तियों की आवाजें उसके कानों में पटाखों की तरह गूँजने लगी। ““उसके बदन पर एक सूत भी नहीं है।”” “कैसा घिनौना पिलपिला बदन है।”” ““उसकी तोंद देखो, जैसे सड़ा हुआ कद्दू!”” ““उसके नये कपड़े वाक़ई कमाल के हैं!”” हर ताने के साथ ज़ोरदार कहकहे लगते थे। राजा फिर भड़क गया। उसने खा जाने वाली नज़रों से मन्त्रियों को घूरा और चिंघाड़ा, ““इसे सुना तुमने!”” “हाँ महाराज, हमने सुना इसे,”” काँपते हुए मन्त्रियों ने जवाब दिया। “क्या तुम भूल गये अभी-अभी मैंने क्या नया क़ानून बनाया है?”” राजा की बात पूरी होने का इन्तज़ार किये बिना मन्त्रियों ने सिपाहियों को आदेश दिया कि उन सबको गिरफ़्तार कर लायें जो हँस रहे थे या फ़ब्तियाँ कस रहे थे। चारों तरफ़ भगदड़ मच गयी। सिपाही इधर से उधर दौड़ने लगे और भागने की कोशिश कर रहे लोगों को अपने बल्लमों से रोकने लगे। बहुत से लोग गिर पड़े, कुछ दूसरों के ऊपर से छलाँग मारकर भागने में सफल हो गये। फ़ब्तियों और हँसी की जगह चीख़ें और सिसकियाँ सुनाई पड़ने लगीं। क़रीब पचास लोग पकड़े गये और राजा ने उनको वहीं मार डालने का हुक्म दिया ताकि प्रजा समझ जाये कि उसके मुँह से निकली बात लौह क़ानून है और कोई उसका मज़ाक नहीं उड़ा सकता। उस दिन के बाद से राजा ने कोई कपड़ा नहीं पहना। अन्तःपुर से लेकर दरबार तक, हर जगह वह नंगा ही जाता था और बीच-बीच में अपनी पोशाक़ की सिलवटें ठीक करने का अभिनय करता रहता था। उसकी रानियाँ और दरबारी शुरू-शुरू में उसे अपने बदसूरत पिलपिले शरीर के साथ घूमते और ऐसी हरक़तें करते देखकर मज़ा लेते थे, पर धीरे-धीरे वे ऐसा दिखावा करना सीख गये जैसे कोई बात ही न हो। वे इसके आदी हो गये और अब वे राजा को ऐसे ही देखते थे जैसे वह पूरी तरह कपड़े पहने हुए हो। रानियाँ और दरबारीगण इसके सिवा कुछ कर भी नहीं सकते थे, अन्यथा वे अपने पदों से और यहाँ तक कि अपनी जान से भी हाथ धो बैठते। लेकिन इतनी जीतोड़ कोशिशों के बावजूद एक पल की गफलत भी उनके सर्वनाश का कारण बन सकती थी। एक दिन राजा की प्रिय रानी उसे ख़ुश करने के लिए अपने हाथों से सुरापान करा रही थी। उसने लाल शराब का एक प्याला भरकर राजा के होठों से लगाया और ख़ूब मीठे स्वर में बोली, “इसे पीजिये और ईश्वर करे कि आप हमेशा जीवित रहें।” राजा इतना ख़ुश हुआ कि उसने एक साँस में प्याला खाली कर दिया। लेकिन इसने शायद कुछ ज़्यादा ही जल्दी कर दी क्योंकि उसे खाँसी आ गयी और शराब उसकी छाती पर बह चली। “अरे आपकी छाती पर धब्बा लग गया है,” रानी बोल पड़ी। “क्या, मेरी छाती पर!”” अपनी भूल का अनुभव करते ही राजा की प्रिय रानी का चेहरा पीला पड़ गया। “नहीं, आपकी छाती पर नहीं,”” उसने काँपते हुए स्वर में अपनी भूल सुधारी, ““आपकी पोशाक़ पर धब्बा लग गया है।”” “तुमने कहा कि मेरी छाती पर धब्बा लग गया है। यह वही बात हुई कि मैं कुछ भी नहीं पहने हूँ। बेवकूफ़ कहीं की! तू दग़ाबाज़ है और तूने मेरा क़ानून तोड़ा है!”” इतना कहने के साथ ही राजा चिल्लाया, “ले जाओ इसे जल्लाद के पास।”” और उसके सिपाही रानी को घसीट ले गये। राजा का एक बहुत विद्वान मन्त्री भी राजा की सनक का शिकार हुआ। हालाँकि उसने भी सबकुछ अनदेखा करने की आदत डाल ली थी, लेकिन उसे भरे दरबार में एक ऐसे आदमी को राजा कहने में शर्म आती थी, जो गद्दी पर बिलकुल नंगा बैठता था। मन ही मन वह उसे ‘गंजा बन्दर’ कहता था। वह डरता था कि यदि किसी दिन उसके मुँह से असावधानीवश कोई बात निकल गयी या वह किसी ग़लत मौक़े पर हँस पड़ा तो उसकी बरबादी निश्चित है। इसलिए उसने अपनी बूढ़ी माँ को देखने घर जाने के बहाने से राजा से छुट्टी माँगी। राजा ने कहा कि, “मैं किसी मातृभक्त बेटे की प्रार्थना भला कैसे ठुकरा सकता हूँ।”” और उसे जाने की छुट्टी दे दी। मन्त्री को उस समय ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसे मोटी-मोटी ज़ंजीरों से मुक्ति मिल गयी हो। उसने राहत की साँस ली और उसके मुँह से धीरे से निकल गया, “भगवान का लाख-लाख शुक्र है, अब मुझे उस नंगे राजा की ओर देखना नहीं पड़ेगा।”” राजा के कान में भनक पड़ी तो उसने अपने सेवकों से पूछा, “क्या कहा उसने?”” सेवक हड़बड़ी में कोई बात बना नहीं पाये और उन्होंने उसे पूरी बात बता दी। ““अच्छा तो तुमने इसलिए छुट्टी माँगी थी क्योंकि तुम मुझे देखना बरदाश्त नहीं कर सकते,”” राजा चिल्लाया। “तुमने मेरा क़ानून तोड़ा है। अब देखो मैं ऐसा इन्तज़ाम करता हूँ कि तुम घर पहुँच ही न पाओ।”” इसके बाद उसने अपने जल्लादों को हुक्म दिया कि वे मन्त्री को ले जायें और उसकी गरदन उड़ा दें। इन घटनाओं के बाद अन्तःपुर और दरबार में हर आदमी और ज़्यादा चौकन्ना हो गया। लेकिन आम जनता ने तो रानियों और दरबारियों जैसी चालाकी नहीं सीखी थी। जब भी राजा लोगों के सामने आता था और वे उसके ढोंग को और उसके भद्दे शरीर को देखते थे, वे हँसी रोक नहीं पाते थे। इसके बाद खूनी हत्याओं का सिलसिला शुरू हो जाता था। एक दिन जब राजा मन्दिर में यज्ञ करने के लिए गया तो उसके सिपाहियों ने तीन सौ लोगों को जल्लाद के हवाले किया। जिस दिन वह अपने सैनिकों का मुआयना करने निकला उस दिन पाँच सौ लोग मौत के घाट उतारे गये, और एक दिन जब वह राज्य के शाही दौरे पर निकला तो राज्य भर में हजारों लोग मारे गये। एक दयालु बूढ़े मन्त्री ने सोचा कि राजा हद से बाहर जा रहा है और अब यह सब बन्द होना चाहिए। लेकिन राजा यह कभी नहीं मानता कि वह ग़लत है। उससे उसकी ग़लती बताना अपने गले में फन्दा डालने के समान था। बूढ़े मन्त्री ने सोचा कि अगर किसी तरह से राजा को फिर से कपड़े पहना दिये जायें तो जनता की हँसी और फ़ब्तियाँ रुक जायेंगी और लोगों की जान बचेगी। कई रातों तक जाग-जागकर वह सोचता रहा कि क्या करे जिससे साँप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे। आख़िर उसे एक योजना सूझी और वह राजा के पास गया। उसने कहा, “मेरे मालिक! आपके एक वफ़ादार सेवक के नाते मैं आपको एक सुझाव देना चाहता हूँ। आप हमेशा नये-नये कपड़ों के शौक़ीन रहे हैं क्योंकि उनसे आपकी शानशौक़त को चार चाँद लग जाते हैं। लेकिन इधर बहुत दिनों से आप राज्य के मामलों में इतने व्यस्त रहे हैं कि आपको नये कपड़ों का ध्यान ही नहीं रहा है। जो पोशाक़ आपने पहनी हुई है, उसका रंग फीका पड़ रहा है। आप अपने दर्जियों को आदेश दीजिये कि वे आपके लिए एक नयी और शानदार पोशाक़ बनाकर तैयार करें।” “क्या कहा, मेरी पोशाक़ का रंग फीका पड़ रहा है?”” उसने अपने शरीर पर हाथ फिराते हुए कहा। “बकवास! ये जादुई पोशाक़ है। इसका रंग कभी फीका नहीं पड़ सकता। तुमने सुना नहीं, मैंने कहा था कि अब मैं इसके सिवा और कुछ नहीं पहनूँगा। तुम चाहते हो कि मैं इसे उतार दूँ, ताकि मैं भद्दा दिखूँ! चलो, तुम्हारी उम्र और तुम्हारी पिछली सेवाओं का ख़्याल करके तुम्हारी जान बख़्श दे रहा हँ, लेकिन तुम्हारी बाक़ी ज़िन्दगी अब जेल में कटेगी।”” सैकड़ों निर्दोषों को प्राणदण्ड देने का क्रम चलता रहा। उल्टे, लोगों की हँसी बन्द न होने से राजा एकदम तुनक गया और उसने और भी ज़्यादा कड़ा क़ानून बना दिया। इस बार उसने फ़रमान जारी कर दिया कि जब राजा सड़क पर निकले उस वक़्त कहीं से किसी आदमी की किसी भी तरह की आवाज़ नहीं आनी चाहिये। अगर किसी ने कोई आवाज़ निकाली तो उसे हाथी से कुचलवा दिया जायेगा। इस क़ानून की घोषणा के बाद राज्यभर के गणमान्य नागरिक सोचने लगे कि अब तो राजा अति कर रहा है। ठीक है कि राजा की हँसी उड़ाना अच्छी बात नहीं है, लेकिन दूसरी चीज़ों के बारे में बात करने पर क्यों प्राणदण्ड दिया जाये? वे सब जुलूस बनाकर राजा के यहाँ गये और राजमहल के बाहर घुटनों के बल झुककर बोलो कि वे राजा को एक अर्ज़ी देने आये हैं। घबराया हुआ राजा बाहर आया और गरजकर बोला, “तुम लोग यहाँ क्या करने आये हो? बग़ावत करना चाहते हो?”” गणमान्य नागरिकों ने अपने सर उठाने की जुर्रत किये बिना जल्दी से जवाब दिया, “नहीं, नहीं महाराज, आप हमें ग़लत समझ बैठे हैं। हम ऐसा कुछ नहीं करने जा रहे हैं।”” राहत महसूस करते हुए राजा ने शान से अपनी अदृश्य पोशाक़ की सलवटें ठीक कीं और पहले से भी ज़्यादा कड़ी आवाज में बोला, “फिर तुम लोग इतनी भीड़ बनाकर यहाँ क्यों आये हो?”” “हम महाराज से प्रार्थना करने आये हैं कि हमारी हँसने-बोलने की आज़ादी लौटा दी जाये। जो आप पर कीचड़ उछालते हैं और हँसी उड़ाते हैं, वे दुष्ट लोग हैं और उनको ज़रूर मार डालना चाहिए। मगर हम सब लोग राजभक्त, ईमानदार नागरिक हैं, हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि आप अपना नया क़ानून वापस ले लें।”” ““आज़ादी? और तुम लोगों को? अगर तुम आज़ादी चाहते हो तो मेरी प्रजा नहीं रह सकते। अगर तुम मेरी प्रजा रहना चाहते हो तो मेरे क़ानूनों को मानना पड़ेगा। और मेरे क़ानून लोहे जैसे सख़्त हैं। उन्हें मैं वापस ले लूँ? कभी नहीं!”” – इतना कहने के साथ ही राजा पलटा और अपने महल में चला गया। नागरिकों को इससे आगे कहने की हिम्मत नहीं हुई। डरते-डरते उन्होंने धीरे से सर उठाया और देखा कि राजा जा चुका है। अब वे वापस घर लौटने के सिवा कुछ नहीं कर सकते थे। इसके बाद से लोगों ने एक नया तरीक़ा अपना लिया – जब राजा बाहर आता था, तब वे बन्द दरवाजों के पीछे अपने घरों में ही क़ैद रहते थे, सड़कों पर झाँकते तक नहीं थे। एक दिन राजा अपने मन्त्रियों और अंगरक्षकों के साथ महल से बाहर अपनी आरामगाह के लिए चला। सारी सड़कें सूनी पड़ी थीं और दोनों तरफ़ घरों के दरवाजे बन्द थे। जो अकेली आवाज़ उन्हें सुनायी दे रही थी वह उनके अपने पैरों की पदचाप थी, जैसे रात के सन्नाटे में कोई सेना मार्च कर रही हो। तभी अचानक राजा थम गया और कान खड़े करते हुए अपने मन्त्रियों पर गरजा, फ्सुन रहे हो ये आवाज़?” मन्त्रियों ने भी सुनने के लिए कान लगा दिये। “हाँ, एक बच्चा रो रहा है,”” एक बोला। ““एक औरत गा रही है,”” दूसरे ने बताया। “वह आदमी ज़रूर नशे में धुत्त होगा, बदमाश कहीं का, खिलखिलाकर हँस रहा है,”” तीसरे मन्त्री ने कहा। अपने मन्त्रियों को सारा मामला इतना हल्का बनाते देखकर राजा आगबबूला हो गया। “क्या तुम लोग मेरा नया क़ानून भूल गये हो?”” – वह पूरी ताक़त से चिंघाड़ा। ग़ुस्से के मारे उसकी आँखें बाहर निकली पड़ रही थीं और उसका थुलथुल सीना धौंकनी की तरह चल रहा था। मन्त्रियों ने तुरन्त सिपाहियों को हुक्म दिया कि घरों में घुस जायें और जिस किसी ने भी कोई भी आवाज़ निकाली हो – चाहे वह बूढ़ा, जवान, मर्द, औरत कोई भी हो – उसे पकड़ लायें और जल्लाद के हवाले कर दें। लेकिन तभी ऐसी घटना घटी जिसकी राजा ने सपने में भी आशा नहीं की थी। जब सिपाहियों ने घरों के दरवाज़े तोड़े तो औरतों, पुरुषों और बच्चों का हुजूम बाहर उमड़ पड़ा। वे राजा की ओर झपटे और हाथों को बाज़ के पंजों की तरह ताने हुए उसके शरीर पर टूट पड़े। वे चिल्ला रहे थे, “नोच डालो! इसकी ख़ूनी पोशाक़ को नोच डालो!”” आदमियों ने राजा की बाँहें पकड़कर मरोड़ दीं। औरतें उसकी छाती और पीठ पर मुक्के बरसा रही थीं। दो छोटे बच्चे उसकी बाँहों के नीचे और पेट में गुदगुदी मचा रहे थे। चारों तरफ़ से घिर चुके राजा को भागने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। उसने अपना सिर घुटनों में छिपा लिया और गिलहरी की तरह गुड़ीमुड़ी हो गया, लेकिन सब बेकार। उसकी बगलों में मच रही भयानक गुदगुदी और उसके पूरे बदन में हो रही जलन उसकी बरदाश्त के बाहर हो रहे थे। वह किसी भी तरह इस मुसीबत से छुटकारा नहीं पा सकता था। उसने अपना सिर कंधें में दुबका लिया और उसके मुँह से क्रोध, भय और हैरानी की मिलीजुली ध्वनियाँ निकलने लगीं। उसके भृकुटि तानने और उन्हें डराने-धमकाने के प्रयासों को देखकर लोगों का हँसी के मारे बुरा हाल हो गया। लोगों के घरों से निकलते हुए सिपाहियों ने देखा कि राजा कितना मज़ाकिया लग रहा था – जैसे क्रुद्ध बर्रों से घिरा बन्दर – तो वे भूल गये कि उन्हें उसके प्रति सम्मान दिखाना चाहिए और वे भी सबके साथ हँसी में शामिल हो गये। इसे देखकर पहले तो मन्त्रीगण डर गये, लेकिन फिर उन्होंने कनखी से राजा की ओर देखा और वे सब भी ठहाका मारकर हँस पड़े। हँसते-हँसते दोहरे हुए जाते मन्त्रियों के दिमाग में अचानक यह बात आयी कि वे राजा का क़ानून तोड़ रहे हैं और उन्हें गिरफ़्तार किया जा सकता है। इसके पहले जब जनता राजा की खिल्ली उड़ाती थी तो मन्त्री ही उसे दण्ड दिया करते थे और अब वे खुद उस पर हँस रहे थे। तभी उन्होंने उसकी तरफ़ फिर ध्यान से देखा। उसके पूरे शरीर पर काले-काले चकत्ते पड़े हुए थे और वह गठरी बना हुआ ऐसा लग रहा था जैसे बरसात में भीगा हुआ मुर्गी़ का बच्चा। उसे देखते ही हँसी छूट रही थी। “क्या यह स्वाभाविक नहीं है कि लोग मज़ाकिया चीज़ों पर हँसें? लेकिन राजा ने तो क़ानून बनाकर लोगों के हँसने पर पाबन्दी लगा दी थी। क्या बेहूदा क़ानून है!”” और मन्त्री भी लोगों के साथ मिलकर चिल्लाने लगे “नोच डालो! इसके झूठे कपड़ों को नोच डालो!”” जब राजा ने देखा कि उसके मन्त्री और सिपाही भी जनता से मिल गये हैं और अब वे उससे जरा भी खौफ़ नहीं खा रहे हैं तो उसे ऐसा धक्का लगा जैसे किसी ने उसके सिर पर भारी हथौड़ा दे मारा हो, और वह चारों खाने चित्त, धरती पर जा गिरा। ➖➖➖➖➖➖➖➖ 🖥 प्रस्तुति - Uniting Working Class 👉 *हर दिन कविता, कहानी, उपन्यास अंश, राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक विषयों पर लेख, रविवार को पुस्तकों की पीडीएफ फाइल आदि व्हाटसएप्प, टेलीग्राम व फेसबुक के माध्यम से हम पहुँचाते हैं।* अगर आप हमसे जुड़ना चाहें तो इस लिंक पर जाकर हमारा व्हाटसएप्प चैनल ज्वाइन करें - http://www.mazdoorbigul.net/whatsapp चैनल ज्वाइन करने में कोई समस्या आए तो इस नंबर पर अपना नाम और जिला लिख कर भेज दें - 8828320322 🖥 फेसबुक पेज - https://www.facebook.com/mazdoorbigul/ https://www.facebook.com/unitingworkingclass/ 📱 टेलीग्राम चैनल - http://www.t.me/mazdoorbigul हमारा आपसे आग्रह है कि तीनों माध्यमों व्हाट्सएप्प, फेसबुक और टेलीग्राम से जुड़ें ताकि कोई एक बंद या ब्लॉक होने की स्थिति में भी हम आपसे संपर्क में रह सकें।

*जब तक लोग अपनी स्वतन्त्रता का इस्तेमाल करने की ज़हमत नहीं उठायेंगे, तब तक तानाशाहों का राज चलता रहेगा; क्योंकि तानाशाह सक्रिय और जोशीले होते हैं, और वे नींद में डूबे हुए लोगों को ज़ंजीरों में जकड़ने के लिए ईश्वर, धर्म या किसी भी दूसरी चीज़ का सहारा लेने में नहीं हिचकेंगे।* ✍️ वोल्तेयर So long as the people do not care to exercise their freedom, those who wish to tyrannize will do so; for tyrants are active and ardent, and will devote themselves in the name of any number of gods, religious and otherwise, to put shackles upon sleeping men. ✍️ Voltaire

*फिलिस्तीन मुद्दे पर पुणे में BDS कार्यकर्ताओं के साथ हुई मारपीट की घटना के बाबत महेश पवळे और भाजपा के दावों का पर्दाफाश!* https://www.facebook.com/indianpsp

*जीवन का वृक्ष जानता है कि, चाहे जो भी हो, इसके इर्द-गिर्द नाचता उष्ण संगीत कभी बंद नहीं होगा। चाहे जितनी भी मौत आये, चाहे जितना भी खून बहे, यह संगीत तबतक स्त्रियों और पुरुषों में नृत्य करता रहेगा, जबतक हवा उनकी साँसों में आती-जाती रहेगी, जबतक ज़मीन जुतती रहेगी और उन्हें प्यार करती रहेगी।* ✍️ एदुआर्दो गालिआनो _The tree of life knows that, whatever happens, the warm music spinning around it will never stop. However much death may come, however much blood may flow, the music will dance men and women as long as the air breaths them and the land plows and loves them._ ✍️ Eduardo Galeano


*आशा देहात में एक रास्ते की तरह होती है। शुरू में वहाँ कुछ भी नहीं होता — लेकिन जब लोग बार-बार उस ओर चलते हैं, तो एक पगडंडी बन जाती है।* ✍️ लू शुन _Hope is like a path in the countryside. Originally, there is nothing - but as people walk this way again and again, a path appears._ ✍️ Lu Xun


*एक महत्वपूर्ण पोस्ट* *पूरी पोस्ट जरूर पढ़ें* प्रिय साथियो आज दुनिया भर में एक मुद्दा जिसने हर संवेदनशील इंसान को प्रभावित किया है वह है फ़िलिस्तीन में जारी नरसंहार। दुनिया के हर कोने से उनके समर्थन में आवाज़ें उठ रही हैं और ज़ाहिर सी बात है कि भारत भी इससे अछूता नहीं है। 1948 से जारी दमन, उत्पीड़़न अब एक अलग ही मंजिल में पहुंच चुका है। ज़ायनवादी फ़िलिस्तीनी कौम को उनकी ही जमीन से हटाकर दूसरे देशों में पलायन करवाने के लिए नरसंहार को जारी रखे हुए हैं और अब तक 50000 से ज्यादा लोगों को मार चुके हैं जिसमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं। इसके विरोध में पूरी दुनिया में BDS (बॉयकॉट, डाइवेस्टमेंट और सैंक्शन) मुवमेंट चल रहा है। इस आंदोलन का लक्ष्य है ऐसी तमाम कंपनियों और व्यक्तियों का बहिष्कार करना जो इज़रायली ज़ायनवादियों की मदद करते हैं। इसी की कड़ी में पुणे में IPSP(इंडियन पीपल इन सॉलिडेरिटी विद पेलेस्टाईन) के कुछ नौजवान 10 मई को डोमिनोज रेस्टोरेंट के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे। तभी वहां भाजपा के कुछ गुंडे पहुंचते हैं और उन नौजवानों से मारपीट शुरू कर देते हैं। आजादी से पहले अंग्रेजों के तलवे चाटने वाले और आज अपने आप को राष्ट्रवादी कहने वाले लोगों को यह कैसे बर्दाश्त हो सकता है कि कोई उनके होते हुए उनके इज़रायली आकाओं के बारे में कुछ बोले। दो-चार नौजवानों को घेर कर दर्जनों की भीड़ ने न सिर्फ पीटा बल्कि महिला कार्यकर्ताओं के साथ बदसलूकी की गई और बलात्कार की धमकी तक दी गई। जैसा की आशा होती है पुलिस ऐसे मामलों में उन्हीं के साथ खड़ी रही। मारपीट करने वालों को गिरफ्तार करने की बजाय IPSP के कार्यकर्ताओं को थाने ले जाया गया और उन पर ही मुकदमा दायर कर लिया गया। बहुत कोशिशों के बाद एक काउंटर FIR मारपीट करने वाले गुण्डों पर भी रजिस्टर की गई है। इस पूरे मामले की विस्तृत जानकारी आप आईपीएसपी और बीडीएस के फेसबुक पेज पर जाकर ले सकते हैं। हम मजदूर बिगुल के सभी पाठकों से अपील करते हैं कि वो BDS India के कार्यकर्ताओं का समर्थन करें। भाजपा और संघ से जुड़े तमाम सारे राइट विंग ट्रोल जैसे तजिंद्र बग्गा, सुदर्शन टीवी आदि पूरे आंदोलन को लेकर झूठ बोलते हुए ग़लत-सलत प्रचार कर रहे हैं। आपसे आग्रह है कि उनकी पोस्ट के नीचे जाकर BDS आंदोलन के समर्थन में कमेंट करें और BDS कार्यकर्ताओं पर लादे गए केस मे सहायता के लिए बनाए गए आर्थिक कोष में अपना योगदान दें। अगर आप बीडीएस आंदोलन से जुड़ना चाहते हैं तो फेसबुक पेज पर संपर्क कर सकते हैं जिसका लिंक हमने नीचे दिया है। धन्यवाद इंकलाबी सलाम ✊ सभी लिंक 👇👇 IPSP Facebook page - https://www.facebook.com/indianpsp BDS Facebook page - https://www.facebook.com/BDSInIndia Link for financial contribution - https://www.facebook.com/BDSInIndia/posts/pfbid0RgYNBP7ndrZk7djdRH8v52coNSJSJSomHTGqWUwESGdayocGxCnNwj6KUUUZNmYil


📚 *देश-दुनिया का बेहतरीन साहित्य* 📚 _________________________ *विश्व प्रसिद्ध कथाकार अंतोन चेखव की कहानी - नक़ाब* *इस कहानी को पढ़कर शायद आपको आज के पत्रकारों, बुद्धिजीवियों की याद आ जाये* 📱http://unitingworkingclass.blogspot.com/2018/08/anton-chekhovs-story-the-mask.html 👉 Note - Story 'The Mask' hasn’t been translated into English to date, as far as we have been able to determine. It is absent from all of the English-language anthologies, collections and sites. --------------------------- अमुक सार्वजनिक क्लब में किसी संस्था की सहायतार्थ ड्रेस-बाल या जैसा कि स्थानीय नवयुवतियाँ उसे पुकारती हैं, ‘बाल पारेय’ हो रहा था। आधी रात थी। नाच में भाग न लेने वाले बुद्धिजीवी लोग, जो नक़ाब नहीं पहने थे, वाचनालय में बड़ी मेज़ के चारों ओर बैठे हुए थे। संख्या में वे पाँच थे, उनकी नाकें और दाढ़ियाँ अख़बारों के पन्नों में दबी हुई थीं; वे पढ़ रहे थे, ऊँघ रहे थे और राजधानी के समाचारपत्रों के स्थानीय उदारचेता संवाददाता के शब्दों में “विचारमग्न” थे। हॉल से ‘क्वैड्रिल’ नाच के संगीत की धुन आ रही थी। बैरे बार-बार दरवाज़े के पास से पैर खटखटाते और तश्तरियाँ खनखनाते हुए भाग-दौड़ कर रहे थे। किन्तु वाचनालय के भीतर गम्भीर शान्ति का साम्राज्य था। एक घुटी हुई-सी गहरी आवाज़ ने, जो किसी सुरंग से आयी मालूम देती थी, शान्ति भंग कर दी - “मैं समझता हूँ, हमें यहाँ ज़्यादा आराम रहेगा, चले आओ साथियो! इस तरफ़!” दरवाज़ा खुला और एक चौड़े कन्धों वाला, नाटा, हट्टा-कट्टा व्यक्ति कोचवान की वर्दी पहने,अपनी टोपी में मोरपंख लगाये, नक़ाब लगाये, वाचनालय में घुसा। उसके पीछे नक़ाब लगाये दो महिलाएँ थीं और किश्ती लिये बैरा था। किश्ती में चौड़े पेंदे वाली मदिरा की एक बोतल, लाल शराब की तीन बोतलें और कई गिलास थे। “इस तरफ़, यहाँ ज़्यादा ठण्डा रहेगा,” इस आदमी ने कहा, “किश्ती मेज़ पर रख दो...कुमारियो बैठ जाओ! जे वू प्री आ ल्या त्रीमोन्त्रन! और आप सज्जनो, ज़रा जगह दीजिये, आपका यहाँ कोई काम नहीं।” वह थोड़ा-सा डगमगाया और अपने हाथ से झाड़कर मेज़ पर से कई पत्रिकाएँ गिरा दीं। “रख दो उसे! और आप पढ़ने वाले सज्जनो, रास्ते से हट जाइये! यह आप की राजनीति या अख़बार पढ़ने का वक़्त नहीं है...अख़बार रखिये!” “आप थोड़ा शान्त रहें न!” पढ़ाकू ज्ञानियों में से एक अपने चश्मे से नक़ाबपोश की ओर घूरता हुआ बोला, “यह वाचनालय है, शराबख़ाना नहीं...यह शराब पीने की जगह नहीं है।” “कौन कहता है? क्या मेज़ मजबूत नहीं है? या हमारे ऊपर छत आ गिरेगी? क्या मज़ाक़ है! लेकिन मेरे पास बातें करने के लिए वक़्त नहीं है। आप अपने अख़बार रख दें...बहुत पढ़ चुके आप लोग और यह पढ़ाई काफ़ी है। वैसे ही आप लोग बहुत क़ाबिल हैं। इसके अलावा ज़्यादा पढ़ने से आप लोगों की आँखें ख़राब हो जायेंगी; लेकिन ख़ास बात यह कि मेरी मर्ज़ी नहीं है - बस।” बैरे ने मेज़ पर किश्ती रख दी और झाड़न बाँह पर डाल, दरवाज़े पर खड़ा हो गया। महिलाओं ने तुरन्त लाल शराब उँड़ेलनी शुरू कर दी। “ज़रा सोचो तो! ऐसे भी बुद्धिमान लोग होते हैं जो ऐसी शराब से अख़बार ज़्यादा पसन्द करते हैं,” मोरपंख वाले ने अपने लिए शराब उँड़ेलते हुए कहा। “यह मेरा विश्वास है, आदरणीय महानुभावो, कि आप लोगों को अख़बार इसलिए अधिक प्रिय है कि आपके पास शराब पीने के लिए पैसा नहीं है। क्या मैं ठीक कहता हूँ? हा-हा-हा...इन पढ़ाकुओं की ओर देखो...और आपके अख़बारों में लिखा क्या है? ऐ चश्मेवाले! हमें भी कुछ ख़बर बताओ? हा-हा-हा...अच्छा बन्द करो यह सब! रोब गाँठने की या तकल्लुफ़ बरतने की ज़रूरत नहीं है! लो थोड़ी शराब पिओ!” मोरपंख वाले ने हाथ बढ़ाते चश्मेवाले सज्जन के हाथ से अख़बार छीन लिया। चश्मेवाला भौचक्का हो दूसरे ज्ञानियों की ओर देखता हुआ ग़ुस्से से लाल-पीला पड़ने लगा; दूसरे ज्ञानी भी उसकी ओर देखने लगे। “जनाब! आप अपने आप को भूल गये हैं!” वह चिल्लाया। “आप वाचनालय को शराबियों के अड्डे में बदले डाल रहे हैं, हंगामा कर रहे हैं, लोगों के हाथ से अख़बार छीन रहे हैं! पर मैं यह बरदाश्त नहीं कर सकता! आप जानते नहीं, जनाब, कि आप बात किससे कर रहे हैं! मैं बैंक का मैनेजर जेस्त्याकोव हूँ!” “मुझे खाक परवाह नहीं है कि तुम जेस्त्याकोव हो! और तुम्हारे अख़बार की मैं कितनी इज़्ज़त करता हूँ, वह इसी से साबित हो जायेगा।” यह कहते हुए उसने अख़बार उठा लिया और फाड़कर उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। ग़ुस्से से पागल हुआ जेस्त्याकोव बोला - “सज्जनो! इसके मानी क्या हैं? यह तो बहुत अजीब बात है, यह... यह तो... बस भौचक्का कर देने वाली बात है...” “अब ग़ुस्सा हो रहे हैं!” वह व्यक्ति हँसते हुए बोला, “हाय, मैं कितना डर गया हूँ! देखो, डर के मारे मेरी टाँगें कैसी थर्रा रही हैं...अच्छा, सज्जनो! अब मेरी बात सुनो, मज़ाक़ अलग रहा, मैं आपसे क़तई बात करना नहीं चाहता... मैं इन कुमारियों के साथ एकान्त चाहता हूँ, मैं मौज करना चाहता हूँ, इसलिए मेहरबानी करके गड़बड़ न मचाओ और यहाँ से चुपचाप चले जाओ...वह रहा दरवाज़ा। श्री बेलेबूखिन! निकल जाओ यहाँ से, जाओ जहन्नुम में! तुम इस तरह अपना थूथन क्यों उठा रहे हो? जब मैं कहता हूँ: जाओ, तो फ़ौरन चले जाओ...जल्दी, वरना उठाकर फेंक दूँगा!” अनाथों की अदालत के ख़ज़ानची बेलेबूखिन ने क्रोध से लाल पड़ते हुए और कन्धे मटकाते हुए कहा - “क्या कहा तुमने? मेरी समझ में नहीं आता...कोई उद्दण्ड व्यक्ति कमरे में घुस आये और... एकाएक भगवान जाने क्या-क्या बकने लगे!” “क्या!-क्या? उद्दण्ड?” क्रोध से मेज़ पर घूँसा मारते हुए, जिससे किश्ती में रखे गिलास उछल पड़े, मोरपंख वाला आदमी चिल्लाया, “तुम किससे बात कर रहे हो? क्या तुम समझते हो कि मैं नक़ाब पहने हूँ, तो तुम मुझे जो चाहो कह लोगे? तुम तो बड़े खरदिमाग़ हो! मैं कहता हूँ, निकल जाओ बाहर! और बैंक मैनेजर भी यहाँ से रफ़ूचक्कर हो जाये! तुम सब बाहर निकल जाओ! मैं नहीं चाहता कि एक भी बदमाश इस कमरे में रहे! जाओ जहन्नुम में!” “वह हम देख लेंगे,” जेस्त्याकोव बोला, जिसके चश्मे का शीशा तक धुँधला हो गया था। “मैं तुम्हें अभी दिखाता हूँ। अरे कोई है? अरे, तुम ज़रा किसी मैनेजर-वैनेजर को तो बुलाओ!” एक मिनट बाद, छोटे क़द का लाल बालोंवाला मैनेजर कोट के कॉलर में अपने पद का सूचक नीला फीता लगाये, नाच की मेहनत से हाँफता हुआ कमरे में आया। “कृपा कर इस कमरे को छोड़ दो!” उसने शुरू किया, “यह पीने की जगह नहीं है! मेहरबानी करके जलपान-कक्ष में जायें।” “और तुम कहाँ से आ टपके?” नक़ाबवाला बोला, “मैंने तो तुम्हें बुलाया नहीं था।” “कृपया गुस्ताख़ी न करें और बाहर चले जायें।” “देखिये, जनाब! मैं तुमको एक मिनट का मौक़ा देता हूँ...चूँकि तुम यहाँ के प्रबन्धक हो और एक प्रमुख अधिकारी हो, इन कलाकारों को बाहर ले जाओ। मेरे साथ की ये कुमारियाँ आसपास किसी अजनबी का रहना पसन्द नहीं करतीं... वे शर्माती हैं और मैं अपने पैसे की पूरी क़ीमत चाहता हूँ, और उन्हें बिल्कुल वैसा ही देखता हूँ, जैसा कि उन्हें प्रकृति ने बनाया था।” “निश्चय ही यह सूअर यह नहीं समझ रहा कि वह अपने सूअरख़ाने में नहीं है,” जेस्त्याकोव चिल्लाया, “येवस्त्रत स्पिरिदोनिच को बुलाओ!” “येवस्त्रत स्पिरिदोनिच!” सारे लब में यही आवाज़ गूँज उठी, “येवस्त्रत स्पिरिदोनिच कहाँ है?” और शीघ्र ही वह आ पहुँचा; पुलिस की वर्दी में वह एक बूढ़ा आदमी था। भारी गले से, अपनी डरावनी आँखें तरेरते हुए और ऐंठी हुई अपनी मूँछें हिलाते हुए वह बोला - “मेहरबानी करके कमरा छोड़ दें!” “सचमुच तुमने तो मुझे डरा दिया,” मज़ा लेकर वह व्यक्ति हँसते हुए बोला, “भगवान की क़सम,बिल्कुल डरा दिया! कैसी मज़ाक़िया सूरत है! ख़ुदा की क़सम, बिल्ली की-सी मूँछें! बाहर निकल पड़ रहीं आँखें! ओफ़! हा-हा-हा...” ग़ुस्से से काँपता, अपना सारा दम लगाकर येवस्त्रत स्पिरिदोनिच चीख़़ा - “बहस बन्द करो! निकल जाओ, वरना मैं तुम्हें बाहर फिंकवा दूँगा!” वाचनालय में हंगामा मचा हुआ था। लाल टमाटर बना येवस्त्रत स्पिरिदोनिच चिल्ला रहा था। सभी बुद्धिजीवी चिल्ला रहे थे। पर उन सबकी आवाज़ें नक़ाबपोश की गले से निकली दबी-घुटी,गम्भीर आवाज़ में डूब गयीं। इस होहल्ले में नाच बन्द हो गया और मेहमान लोग हॉल से निकलकर वाचनालय में आ गये। क्लब में जितने पुलिसवाले थे, असर डालने के लिए उन सबको बुलाकर येवस्त्रत स्पिरिदोनिच रिपोर्ट लिखने बैठा। “लिख डालो,” नक़ाबवाले व्यक्ति ने क़लम के नीचे उँगली घुसेड़ते हुए कहा, “अब मुझ बेचारे का क्या होगा? हाय, मुझ ग़रीब का क्या होगा? आप लोग क्यों अनाथ ग़रीब को बरबाद करने पर तुले हुए हैं? हा-हा-हा... अच्छा तो क्या रिपोर्ट तैयार हो गयी? क्या सब लोगों ने इस पर दस्तख़त कर दिये? अब देखो! एक...दो...तीन!” वह उठ खड़ा हुआ, अपनी पूरी ऊँचाई तक तन गया और अपनी नक़ाब उतार फेंकी। अपना शराबी चेहरा दिखाने और उससे पड़े असर का मज़ा लूटने के बाद वह आरामकुर्सी में धँस गया और ख़ूब ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा। सचमुच ही देखने लायक़ असर हुआ था। सभी बुद्धिजीवी हैरान नज़रों से एक-दूसरे की तरफ़ देखने लगे और डर से पीले पड़ गये, कुछ तो अपने सिर खुजलाते भी देखे गये। अनजाने में कोई भारी ग़लती कर डालने वाले व्यक्ति की तरह येवस्त्रत स्पिरिदोनिच ने खखारकर अपना गला साफ़ किया। सबने पहचान लिया था कि झगड़ालू व्यक्ति पुश्तैनी इज़्ज़तदार नागरिक स्थानीय करोड़पति प्यातिगोरोव है जो हुल्लड़बाज़ी व उदारता के लिए मशहूर है, और जिसके शिक्षा-प्रेम के बारे में स्थानीय समाचारपत्र लिखते थकते नहीं थे। “क्या अब आप लोग यहाँ से जायेंगे या नहीं?” थोड़ा रुककर प्यातिगोरोव ने पूछा। पंजों के बल चलते हुए, बिना एक भी शब्द कहे, बुद्धिजीवी लोग कमरे के बाहर निकल आये और उनके पीछे प्यातिगोरोव ने दरवाज़ा बन्द कर ताला लगा लिया। “तुम जानते थे कि वह प्यातिगोरोव है,” येवस्त्रत स्पिरिदोनिच ने कुछ देर बाद वाचनालय में शराब ले जाने वाले बैरे के कन्धे झँझोड़ते हुए भारी आवाज़ में कहा, “तुमने कुछ कहा क्यों नहीं?” “उन्होंने मुझे मना जो किया था।” “मना किया था! ठहरो, बदमाश! मैं तुम्हें जब एक महीने के लिए जेल में ठूँस दूँगा, तब तुम्हें पता चलेगा कि ‘मना किया था’ के क्या मानी होते हैं। निकल जाओ!” फिर बुद्धिजीवी लोगों की ओर मुड़ते हुए बोला - “और आप लोग भी ख़ूब हैं! हुड़दंग मचा दिया, जैसे, दस मिनट के लिए आप वाचनालय छोड़ न सकते हों! ख़ैर, सारी गड़बड़ और मुसीबत आपकी ही लायी हुई है और आप लोग ही अब निपटिये इससे। अरे साहब, भगवान के सामने कहता हूँ, मुझे ये तरीक़े पसन्द नहीं हैं, क़तई पसन्द नहीं हैं।” मायूस, परेशान, पछताते हुए बुद्धिजीवी लोग एक-दूसरे से फुसफुसाते हुए क्लब में इधर-उधर घूम रहे थे, उन लोगों की तरह जिन्हें आने वाली मुसीबत का पता लग गया हो...उनकी बीवियों और बेटियों पर यह सुनकर ख़ामोशी छा गयी कि प्यातिगोरोव बुरा मान गये हैं, नाराज़ हैं, और वे अपने घर चल दीं। नांच बन्द हो गया। रात दो बजे प्यातिगोरोव वाचनालय के बाहर निकला। वह नशे में झूम रहा था। हॉल में आकर वह बैण्ड की बग़ल में बैठ गया और बाजों की धुन पर ऊँघने लगा। ऊँघते-ऊँघते उसका सिर सन्तप्त मुद्रा में लटक गया और वह खर्राटे लेने लगा। “बन्द करो बाजे!” बैण्डवालों को इशारा करते हुए मैनेजर बोला, “श्-श्-श्-श् येगोर नीलिच सो गये हैं...” “क्या मैं आपको घर तक पहुँचा आऊँ, येगोर नीलिच?” करोड़पति के कान तक झुकते हुए बेलेबूखिन ने पूछा। प्यातिगोरोव ने होंठ बिचकाये, मानो गाल पर बैठी कोई मक्खी उड़ा रहा हो। “क्या मैं आपको घर तक पहुँचा आऊँ?” बेलेबूखिन ने फिर कहा, “या आपकी गाड़ी लाने को कह दूँ?” “क्या? तुम...तुम क्या चाहते हो?” “आपको घर पहुँचाना... सोने जाने का समय हो गया है न...” “घर! मैं घर जाना चाहता हूँ... मुझे घर ले चलो!” ख़ुशी से दमकता हुआ बेलेबूखिन प्यातिगोरोव को सहारा देकर उठाने लगा। बाक़ी बुद्धिजीवी लोग भी भागते हुए आ पहुँचे और ख़ुशी से मुस्कुराते हुए उन सबने मिलकर खानदानी इज़्ज़तदार नागरिक को उठाया और बड़ी सतर्कता के साथ उसे गाड़ी तक पहुँचाया। “कोई कलाकार, कोई अत्यन्त प्रतिभाशाली व्यक्ति ही हम सबका ऐसा मज़ाक़ उड़ा सकता,”करोड़पति को गाड़ी में बैठाते हुए प्रसन्नचित्त जेस्त्याकोव बड़बड़ाया। “मैं तो सचमुच आश्चर्यचकित हूँ, येगोर नीलिच! मैं हँसी नहीं रोक पा रहा, अब भी नहीं...हा-हा-हा...और हम-सब इतने उत्तेजित हो गये और गड़बड़ करने लगे! हा-हा-हा...आप विश्वास करें, मैं नाटक में भी इतना कभी नहीं हँसा! हास्य की इतनी गहराई! ज़िन्दगी-भर यह अविस्मरणीय साँझ मुझे याद रहेगी!” प्यातिगोरोव को विदा करने के बाद बुद्धिजीवी लोग प्रसन्न व आश्वस्त हो गये। जेस्त्याकोव ने ख़ुशी से डींग मारी: “उन्होंने मुझसे हाथ मिलाया! तो अब सब ठीक है, वह नाराज़ नहीं हैं।” लम्बी साँस लेकर येवस्त्रत स्पिरिदोनिच बोला - “भगवान करे न हो! वह बदमाश है, ख़राब आदमी है, पर वह हमारा हितकारी है। हमें होशियारी बरतनी चाहिए!” (1884) ➖➖➖➖➖➖➖➖ 🖥 प्रस्तुति - Uniting Working Class 👉 *हर दिन कविता, कहानी, उपन्यास अंश, राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक विषयों पर लेख, रविवार को पुस्तकों की पीडीएफ फाइल आदि व्हाटसएप्प, टेलीग्राम व फेसबुक के माध्यम से हम पहुँचाते हैं।* अगर आप हमसे जुड़ना चाहें तो इस लिंक पर जाकर हमारा व्हाटसएप्प चैनल ज्वाइन करें - http://www.mazdoorbigul.net/whatsapp चैनल ज्वाइन करने में कोई समस्या आए तो इस नंबर पर अपना नाम और जिला लिख कर भेज दें - 8828320322 🖥 फेसबुक पेज - https://www.facebook.com/mazdoorbigul/ https://www.facebook.com/unitingworkingclass/ 📱 टेलीग्राम चैनल - http://www.t.me/mazdoorbigul हमारा आपसे आग्रह है कि तीनों माध्यमों व्हाट्सएप्प, फेसबुक और टेलीग्राम से जुड़ें ताकि कोई एक बंद या ब्लॉक होने की स्थिति में भी हम आपसे संपर्क में रह सकें।
