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शे'र-ओ-सुख़न | شِعْر و سُخَن
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आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में 'फ़िराक़' जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए। — फ़िराक़ गोरखपुरी

फ़ारस नहीं, अरब नहीं, शाम¹ नहीं है, उर्दू की ज़मीं हिन्द है, इस्लाम नहीं है — राजीव ध्यानी ¹सीरिया का पुराना नाम

डबडबाई आँखों से हर रौशनी सूरजमुखी के फूल की तरह दिखाई पड़ती है। — फणीश्वरनाथ रेणु

कई जवाबों से अच्छी है ख़ामुशी मेरी, न जाने कितने सवालों की आबरू रक्खे।

Those who would give up essential Liberty, to purchase a little temporary Safety, deserve neither Liberty nor Safety. — Benjamin Franklin

है संस्कृति-समाज का विनाश अब तो तय, कहूँगा ये धर्म है अगर तो फिर अधर्म की मैं जय कहूँगा। — पुनीत शर्मा

नाम होंटों पे तिरा आए तो राहत सी मिले तू तसल्ली है दिलासा है दुआ है क्या है — नक़्श लायलपुरी

वहाँ से भागकर पछता रहे हैं, जहाँ सबकुछ लुटाना चाहिए था नदी से वह लिपटकर रो रहा है, उसे तो डूब जाना चाहिए था। — लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता

हाल पूछा न करे हाथ मिलाया न करे मैं इसी धूप में खुश हूं कोई साया न करे — काशिफ़ हुसैन ग़ाएर

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मेरे आगे होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे, मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे — चचा ग़ालिब